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July 22, 2025 2:32 am

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श्रीजगन्नाथ मंदिर सेवा संस्थान के अध्यक्ष श्रीमती अंजली नंदा जी तथा संस्थान के अन्य भक्त जनो सहीत श्री सुरेशभाई गुंडीचा मंदिर सभी ने संयुक्त रुप मेंउपस्थित रहकर श्रीमहेशभाई आगरीया को भगवान श्रीजगन्नाथ जी की मुल छबी भेट की ।

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !!-कोयला भई न राख भाग 1: Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !!-कोयला भई न राख भाग 1: Niru Ashra

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !!

कोयला भई न राख
भाग 1

हे वज्रनाभ ! प्रेम जिन क्रमिक दशाओं को पार करता हुआ शुद्ध तत्व में प्रकट होता है ……..उस रहस्य को “श्रीराधाचरित” के माध्यम से मैं तुम्हे बता रहा हूँ …….शायद पूर्व में भी मैने तुम्हे कहा हो ……पर सुनो –

स्नेह, मान, प्रणय, राग, अनुराग, भाव महाभाव ।

और श्रीराधारानी उसी “महाभाव” की एक दिव्य प्रतिमा हैं ।

महर्षि शाण्डिल्य आज देहभान से परे हैं……..उनके देह में शुद्ध सात्विक भावों का उदय हो रहा है…….उनके नेत्र बह रहे हैं ….।

हे वज्रनाभ ! श्रीराधा ज्वलन्त आस्तित्व है……श्रीराधा गति है , श्रीराधा यति है , श्रीराधा लय है , श्रीराधा परम संगीत है , श्रीराधा परम सौन्दर्य है , श्रीराधा एक रोमांचक अभिव्यंजना है, श्रीराधा समस्त साहित्य की अधिष्ठात्री है , श्रीराधा समस्त कलाओं की स्वामिनी हैं ।

श्रीराधा पूर्णतम हैं ……श्रीराधा ब्रह्म की आल्हादिनी हैं……श्रीराधा आनन्ददायिनी हैं ।

क्या क्या कहूँ हे वज्रनाभ ! श्रीराधा क्या हैं ?

मैं तो इतना ही कहूँगा ……….श्रीराधा क्या नही हैं ?

ये कहते हुए महर्षि शाण्डिल्य के मुखमण्डल में एक दिव्य तेज़ छा गया था ।


आइये महर्षि ! बड़ी कृपा की आपनें जो हमारे महल में पधारे ।

मैं आज बरसानें निकल आया था……….फिर मन में विचार किया क्यों न बृषभान जी से भी मिल ही लिया जाए ………..

साधुपुरुष हैं वो तो…………ऐसा विचार करते हुए मैं बृषभान जी के महल में चला गया………सच ये है कि मेरे मन में लोभ था – उन महाभाव स्वरूपा श्रीराधारानी के दर्शन करनें का ।

आइये महर्षि ! बड़ी कृपा की आपनें जो हमारे …………..

मुझे देखते ही वो द्वार पर आगये थे ……..और बड़े प्रेम से मेरे पाँव में अपनें सिर को रखकर प्रणाम किया था ।

बृषभान जी ! बस ऐसे ही आगया …….कोई विशेष कार्य नही था ।

मेरे सामनें फल फूल दुग्ध इत्यादि , बड़े आदर के साथ कीर्तिरानी नें रख दिए थे …….बृषभान जी हाथ जोड़कर प्रार्थना करनें लगे थे …..आहा ! कितना सरल और साधू स्वभाव है …….क्यों न हो श्रीराधारानी के पिता बननें का सौभाग्य ऐसे थोड़े ही मिलता है !

आप कुछ तो ग्रहण करें ! हमारे ऊपर आपकी बड़ी कृपा होगी ।

मैने दुग्ध लिया………..दोनों दम्पति प्रसन्न थे मेरा सत्कार करके ।

कृष्ण कहाँ गए ?

 बहुत धीमे स्वर में  कीर्ति रानी नें मुझ से ये प्रश्न किया था ।

आप को सब पता है महर्षि ! बताइये ना ! मेरा पुत्र श्रीदामा कह रहा था कि मथुरा छोड़ दिया नन्दनन्दन नें ?

हस्त प्रक्षालन करके महर्षि नें कीर्तिरानी को कहा –

हाँ मथुरा में अब जरासन्ध का शासन है …………..कृष्ण मथुरा को छोड़कर चले गए………महर्षि नें इतना ही कहा ।

पर महर्षि ! वो गए कहाँ ? कहाँ रह रहे हैं यदुवंशी ? नन्दनन्दन नें अपना ठिकाना कहाँ बनाया है ? बृषभान जी नें अधीर होकर पूछा ।

मेरे मित्र नन्द कितनें दुःखी हैं……..मुझ से उनकी दशा देखी नही जाती…….भीतर से रोते रहते हैं ….. बाहर से मुस्कुराते हैं …..और जब कृष्ण के बारे में पूछो तो कहते हैं……..”वो खुश हैं ना तो हम भी खुश हैं…….वो जहाँ रहे खुश रहे “………बस यही कहते हैं वो …….मैं उनके सामनें ज्यादा देर रुक नही सकता ……क्यों की फिर मेरा रोना शुरू हो जाता है ………ओह ! विधाता तूनें ये कैसा दुःख दे दिया ।

हे बृषभान जी ! आपका कहना सत्य है ………कृष्ण के प्रेम को भला कौन भुला सकता है ? कृष्ण हैं हीं ऐसे व्यक्तित्व की सब उनसे प्रेम करते हैं ………चराचर समस्त उनसे प्रेम करता है ।

द्वारिका जाकर रह रहे हैं समस्त यदुवंशी ? उनके नायक हैं श्रीकृष्ण ?

कीर्तिरानी नें आगे आकर ये और पूछा – द्वारिका कहाँ है ?

समुद्र के किनारे ये कृष्ण नें ही बसाया है…….महर्षि नें उत्तर दिया ।

क्रमशः…
शेष चर्चा कल –

🌷 राधे राधे🌷

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