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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 106 !!
जब वृन्दावन में दाऊ पधारे
भाग 2
मैं चन्द्रावली अब रुक नही सकती थी राधा के पास…….मेरे नेत्र बहनें के लिए आतुर थे ….और राधा के आगे मैं रोना नही चाहती थी ।
मैं चल दी ………..राधा से मिलकर मेरी दशा ही अलग हो चली थी ।
मेरे कदम कहाँ पड़ रहे हैं मुझे पता नही था………मेरे शरीर में रोमांच हो रहा था………कि तभी मैने सामनें देखा …..मथुरा के मार्ग में देखा –
रथ आरहा है !
हे वज्रनाभ ! चन्द्रावली सखी नें देखा ……….वो रुक गयीं ।
कौन है रथ में ? ध्यान से देखनें की कोशिश की ।
रथ तीव्रता से दौड़ते हुए आरहा था …………..चन्द्रावली नें देखा ।
पर…………..रथ तो वायु की गति से चल रहा था ……..सामनें से निकल गया ……..रथ में कौन ये देख नही पाई थी चन्द्रावली ।
रथ नन्दभवन में ही गया था ……..और वहीं रुका ।
गौर वर्ण का कोई सुन्दरपुरुष है…………पहचाना सा लगता है ।
चन्द्रावली गयी थी नन्दभवन में देखनें की कौन आया ?
झुककर प्रणाम किया था मैया यशोदा को उस पुरुष नें …………..
कौन ? कन्हाई ?
मैया को कन्हाई के सिवा और कुछ स्मरण ही नही है ।
नहीं मैया ! मैं तेरा दाऊ ……..बलराम !
ओह ! दाऊ……….चन्द्रावली ख़ुशी से झूम उठी थी ।
दाऊ ! मैया यशोदा के नेत्रों से अश्रु बह चले ………हृदय से लगा लिया ।
ओह ! कैसा है तू ? मेरा कन्हाई नही आया ?
“नही आया”………………..दाऊ नें कहा ।
अच्छा ! आजाता तो ये बूढी आँखें उसे देख लेतीं ………….
पर नही आया…..अच्छा , अच्छा एक बात बता दाऊ ! महर्षि शाण्डिल्य कह रहे थे कि ………तुम लोग मथुरा से चले गए हो ……पर कहाँ गए ?
“द्वारिका” बलराम नें कहा ।
दाऊ ! द्वारिका दूर है ?
आगे आगयी थी चन्द्रावली …………..और दाऊ से पूछनें लगी थी ।
दूर है ………….समुद्र के मध्य है ।
मेरा कन्हाई समुद्र में रहता है ……………..मैया नें आश्चर्य से पूछा ।
नगरी बसाई है कृष्ण नें …….द्वारिका नाम की………बलराम नें ये बातें बताईं ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल
🌸 राधे राधे🌸


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