श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “पनघट पे”- एक प्रेम प्रसंग 2 !!
भाग 2
“कन्हाई बैठे हुए हैं…….बड़े प्रसन्न हैं…..राधिका जु की मुद्रिका को बारबार चूम रहे हैं…….और बड़े आनन्दित हो रहे हैं ।
तभी सामनें से आती हुई देखीं राधिका जु और साथ में कई सखियाँ उनकी ………
तुरन्त फेंट में मुद्रिका छुपा ली ………….और खड़े हो गए ।
कहाँ है श्याम सुन्दर ?
ललिता सखी नें पास में पहुँचते ही पूछ लिया था ।
मेरे पास नाँय सखी ! कन्हाई भी बोल दिए ।
ललिता हँसी……खूब हँसी ……क्या नही है तुम्हारे पास ?
मोय का पतो, तेनें कही, कहाँ है ?
तो मैने भी तुक मिलाय दियो कि – मेरे पास नाँय ।
तुक मत मिलाओ ……अब तो मुद्रिका सीधे सीधे दे दो ।
मेरे पास में कहाँ तिहारी मुद्रिका सखी !
कन्हाई हँसनें लगे ।
मेरी नहीं मेरी स्वामिनी जु की मुद्रिका ………..दे दो ।
मेरे पास में नही है ……..बाकी तोय जो करनी होय कर ले ।
अब तो राधिका जु को आगे आना ही पड़ा ………हे प्यारे ! अगर आपकुँ हमारी मुद्रिका मिली होय तो दे दो ……नही तो हम जा रही हैं ।
बड़ी विनम्रता से राधिका जु नें कहा था ।
ललिता ताली बजाकर हँसी …………हे मेरी भोरी स्वामिनी ! चोरन ते ऐसे बात नही कियो जाय !
हम चोर हैं ? कन्हाई थोड़े क्रोधित से हुए ।
नही ….आप चोर नही ….चोरन के सरदार हो …….अब बातन कुँ मत बनाओ चुपचाप मुद्रिका दे दो ।
मेरे पास नही ……….दो टूक बोले ।
राजा से शिकायत कर देंगी …………कन्हाई बोले वो तो हमारे पिता जी हैं ………….ललिता बोली – नहीं कंस राजा से …….कन्हाई हँसते हुए बोले वो तो मेरे मामा हैं …………।
तलाशी दो अपनी……….कन्हाई से फिर ललिता बोली ।
अब रहनें दे ललिता ! इन के पास नही है मेरी मुद्रिका ……चल !
राधिका जु नें ललिता का हाथ पकड़ा और चलनें का आग्रह करनें लगीं ।
मुद्रिका तो लेकर जाऊँगी मैं …………….
चलो ! अपनें हाथ दिखाओ ………….कन्हाई नें जान बूझकर मुट्ठी बांध ली………..मुठ्ठी खोलो …….ललिता बोली ।
ले खोल दिया ………कन्हाई की मुठ्ठी में कुछ था ही नही ……
दूसरी मुठ्ठी खोलो ……….दूसरी मुठ्ठी में भी कुछ नही था ।
ललिते ! ज्यादा अपमान मत कर उनका ……..तू चल अब घर ।
राधारानी फिर बोलीं ।
*क्रमशः ….


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