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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 111 !!
वो ममता की मारी – यशोदा मैया
भाग 2
पर तू कन्हाई नही है………..गम्भीर होकर सोचनें लगीं ।
दाऊ ……….दाऊ भैया ! हँसी यशोदा जी ।
तू नही गया वन ? गैया चरानें नही गया ? अकेले अपनें छोटे भाई को भेज दिया ………..बलराम ! तेरा भाई छोटा है ……अकेले नही भेजना था ।
अब तू यहाँ खड़ा क्यों है ! जा बाहर जाकर देख ….कहाँ गया तेरा छोटा भाई ।
फिर मेरा हाथ पकड़ लेती हैं ………..
“बलराम ! वो जो कार्तिक में वर्षा हुयी थी ना ! जब तेरे भाई कन्हाई नें गिरिराज उठाया था…..याद है तुझे ? वैसी ही वर्षा हो रही है आज भी……देख ! कहीं बिजली न गिर जाए….तेरा छोटा भाई असुरक्षित है वन में…..तू जा दाऊ ! जल्दी जा । यशोदा मैया का उन्माद विचित्र था ।
बिजली फिर चमकी…इस बार जोर से चमकी थी, फिर गर्जना भी हुयी ।
मैं आज उसे, उसे पर्वत उठानें नही दूंगी …….ना ! मेरा कोमल सुकुमार कन्हाई …..हाय हाय ! सात दिन तक उठाया उसनें पर्वत को ।
पर आज ? गम्भीर हो गयीं मैया यशोदा ………..अपनें दोनों मुठ्ठी भींच कर ऊपर उठाते हुए बोलीं …….आज चाहे कुछ भी हो जाए …..पर मैं अपनें लाला को पर्वत”……….ये कैसा उन्माद है – उफ़ ।
मेरा हाथ पकड़ कर बारबार जिद्द कर रही थीं……….तू भी मना करना उसे पर्वत उठानें मत देना ।
पर उसी समय किसी गोपी नें यशोदा मैया के कान में कह दिया ……..”कन्हाई तो द्वारिका में है”
और ये दाऊ द्वारिका से ही आये हैं ……….गोपी नें कह दिया ।
जैसे ही सुना – “कन्हाई द्वारिका में है” … आनन्दित हो गयी थीं मैया ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
🌸 राधे राधे🌸
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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 111 !!
वो ममता की मारी – यशोदा मैया
भाग 3
पर आज ? गम्भीर हो गयीं मैया यशोदा ………..अपनें दोनों मुठ्ठी भींच कर ऊपर उठाते हुए बोलीं …….आज चाहे कुछ भी हो जाए …..पर मैं अपनें लाला को पर्वत”……….ये कैसा उन्माद है – उफ़ ।
मेरा हाथ पकड़ कर बारबार जिद्द कर रही थीं……….तू भी मना करना उसे पर्वत उठानें मत देना ।
पर उसी समय किसी गोपी नें यशोदा मैया के कान में कह दिया ……..”कन्हाई तो द्वारिका में है”
और ये दाऊ द्वारिका से ही आये हैं ……….गोपी नें कह दिया ।
जैसे ही सुना – “कन्हाई द्वारिका में है” … आनन्दित हो गयी थीं मैया ।
मैं समझ नही पा रहा था …..मेरी बुद्धि जबाब दे रही थी…….
सच, कन्हाई यहाँ नहीं है ? वन में नही गया वह ?
नही …….वो द्वारिका में हैं । मैने आगे बढ़कर बताया ।
फिर ठीक है ………..अब मैं निश्चिन्त हो गयी………अब मैं प्रसन्न हूँ ……द्वारिका में है वो , तो सुरक्षित होगा…..वहाँ मकान पक्के हैं ना ? फिर ठीक है………यहाँ नही है वो, ये अच्छा हुआ………
मन ही मन बोलती रहीं यशोदा मैया………..
आकाश में फिर बिजली चमकी और भयानक गर्जना……
इस बार फिर हँसी मैया, आकाश में देखते हुये…….अब बरस…….खूब बरस…….चमक …….बिजली चमक तू ! अब मुझे कोई डर नही है …….आकाश ! गिरा वज्र…….मार दे मुझ बुढ़िया को……मुझे अब कोई परवाह नही है …….मैं मर जाऊँ यही अच्छा रहेगा ।
कुछ देर गर्जना रुकी ……..वर्षा कुछ कम हुयी ………..मगर चौमासा की बारिश है ……..फिर शुरू हो गयी …..और फिर गर्जना ।
आज कर ही ले तू अपनी कसर पूरी ……..उस दिन तो डुबाना ही चाहता था तू ……..पर मेरे कन्हाई नें तुझे ऐसा करनें नही दिया …….पर आज कर ले …..कोई कुछ नही कहेगा ……डुबो दे आज हम सबको ……गिरा दे वज्र, हम सब वृन्दावन वासियों के ऊपर ।
अकेले आकाश की ओर देखकर बोलती रहीं मैया यशोदा……..
दाऊ ! वो आएगा ना ! एक गोपी नें पूछा………..
हाँ आएगा …….मेरा लाला आएगा ………मैं कह रही हूँ ……अरे ! बहुत बड़ा राज्य है मेरे लाला का ……..काम बहुत है द्वारिका में ……..अब ऐसे द्वारिका को दोनों भाई छोड़ भी नही सकते ना ……..दाऊ जाएगा तब मेरा कन्हाई आएगा …………….
मैनें ऐसा कुछ नही कहा है ……पर यशोदा मैया स्वयं ही कह रही हैं ।
क्यों ? क्यों नही आना चाहिये मेरे कृष्ण को इस प्रेम की भूमि में ?
मैं लाऊँगा ……..मैं कहूँगा उसे ………तू जा कन्हैया ! द्वारिका में कुछ नही है ……..रस-प्रेम तो भरा है वृन्दावन में ……..यहाँ !
बलराम जी भी प्रेम रस में डूबकर उन्मत्त हो उठे थे ।
शेष चरित्र कल –
🌸 राधे राधे🌸


Author: admin
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