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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 112 !
द्वारिका लौटे बलराम
भाग 2
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जी ! धन्य हो गए हम लोग ……..तपस्या पूरी हो गयी ……….
पर हम तो कुछ मास यही बितानें का विचार कर रहे हैं……..ऋषि मुनि कहते ………तब उद्धव जी बड़ी विनम्रता से कहते – हे पूज्य ऋषियों ! यहाँ क्या है ? इस द्वारिका में क्या है ? बस श्रीकृष्णचन्द्र जू के दर्शन हैं ……पर आपको “वास” ही करना है …..तो आप श्रीधाम वृन्दावन जाओ ………….उद्धव जी समझाते ।
“वृन्दावन” का नाम लेते ही उद्धव का मुखमण्डल खिल गया ……..पर कुछ ही देर में नेत्र सजल हो उठे ……श्रीराधा ! श्रीराधा ! श्रीराधा ! ।
कुछ नही करना है ऋषि मुनियों ! बस उस प्रेम की भूमि में “वास” करना है …….रहना है …….बाकी सब अपनें आप श्रीधाम ही करेगा …….वो भूमि है ही ऐसी !
तो हे उद्धव ! तुम ये कहना चाहते हो कि ………हम लोग वहाँ जाकर तप साधना करें ….? ऋषियों ने पूछा ।
नही ….नही …..वहाँ तप करनें की जरूरत ही नही है ……….वहाँ के रज में वास करना ही, तप है ………..वहाँ की गोपियों के दर्शन …….वहाँ के गोप बृजवासियों के पावन दर्शन ………..श्रीराधारानी का वो दिव्य दर्शन ……….जाओ ! ऋषियों जाओ ।
कुछेक वर्ष से, द्वारिका से वृन्दावन, आनें वालों की संख्या एकाएक बढ़ गयी थी ……..आने वाले यात्रियों में ऋषि मुनि तपश्वी ही ज्यादा होते थे ।
बलराम द्वारिका लौटनें से पहले एक बार श्रीराधारानी के दर्शन करना चाहते हैं.. ……और उनका सन्देश लेना भी आवश्यक है ।
बलराम बरसाना चले थे ।
कुञ्ज में ही मिलेगी राधा !
कीर्तिरानी और बृषभान जी नें सत्कार किया बलराम का ......और बता भी दिया कि राधा अपनें कुञ्ज में ही हैं इस समय ।
बलराम प्रणाम करके कुञ्ज की ओर चल दिए थे ।
तुम द्वारिका जा रहे हो दाऊ ? कीर्ति रानी नें पूछा था ।
हाँ ….आज ही जा रहा हूँ……इसलिये आप सबके दर्शन करनें आगया ।
श्यामसुन्दर आएगा ? कीर्तिरानी ये पूछते हुए रो गयीं ।
रुके दाऊ …….कीर्ति मैया को देखा ……सजल नयनों से देखा …….फिर बिना कुछ उत्तर दिए चल पड़े ………….हाँ क्या उत्तर देते ?
मेरे धन्यभाग हैं !
…….कि आप जैसे ऋषि मुनि मेरे पास मुझे दर्शन देनें आगये ।
आज कुञ्ज में ऋषि मुनियों की भीड़ लगी है ……सत्कार कर रही हैं स्वयं श्रीराधारानी …….सखियाँ इधर उधर कार्य में जुटी हैं ।
फल फूल मेवा सुन्दर सुन्दर दोनें में सजाकर सामनें रख दिया है श्रीराधा रानी नें ।
हे राधिके !
हमनें जब श्रीकृष्ण चन्द्र जू के दर्शन किये ……..बड़ा सुख मिला ।
ऋषियों नें श्रीराधारानी से बड़े प्रेम से कहा था ।
कौन श्रीकृष्ण चन्द्र जू ?
ओह ! ये इतना बड़ा नाम था कि श्रीराधा भूल गयीं ।
“श्यामसुन्दर” का नाम ले रहे हैं ये ऋषि मुनि ……ललिता सखी नें श्रीराधिका जू के कान में कहा था ।
आप लोग नन्दगाँव से आरहे हैं ? श्रीजी को फिर विस्मरण हो गया ।
नही हम द्वारिका से आरहे हैं ………द्वारिका में श्रीकृष्ण ……….
मेरे श्याम सुन्दर द्वारिका चले गए ? श्रीराधारानी बोल उठीं ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
🍃 राधे राधे🍃


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