🌸🙏🌸🙏🌸
!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 112 !
द्वारिका लौटे बलराम
भाग 3
💕💕💕💕💕💕
कौन श्रीकृष्ण चन्द्र जू ?
ओह ! ये इतना बड़ा नाम था कि श्रीराधा भूल गयीं ।
“श्यामसुन्दर” का नाम ले रहे हैं ये ऋषि मुनि ……ललिता सखी नें श्रीराधिका जू के कान में कहा था ।
आप लोग नन्दगाँव से आरहे हैं ? श्रीजी को फिर विस्मरण हो गया ।
नही हम द्वारिका से आरहे हैं ………द्वारिका में श्रीकृष्ण ……….
मेरे श्याम सुन्दर द्वारिका चले गए ? श्रीराधारानी बोल उठीं ।
बलराम देख रहे हैं………..उनके नेत्र बहनें लगे ………वो कुञ्ज रन्ध्र से देख रहे हैं…………श्रीराधा रानी मूर्छित हो जातीं ……….पर उन्होंने स्वयं को सम्भाला ……..सहायता की ललिता सखी नें ।
हे राधिके ! हे कृष्णप्रिया ! हे बृषभान नन्दिनी ! हे कीर्ति सुते !
आपके चरणों में हमारा बारम्बार प्रणाम है………..
ऋषि मुनियों नें स्तुति करनी शुरू कर दी थी श्रीराधा रानी की ।
दिव्य स्वरूप हो गया था श्रीजी का ………तपते हुए सुवर्ण की तरह जिनका रँग है……..दिव्य आभा से जिनका मुख दमक रहा है ………..
ब्रह्मा रूद्र विष्णु आकाश से इनके ऊपर पुष्प बरसा रहे हैं ……….
ये दृश्य देखते ही …….ऋषि मुनि जयजयकार करनें लगे थे ।
हे राधिके ! श्रीकृष्ण दर्शन करके हमें आनन्द तो आया था …..पर ऐसा लग रहा था कि कुछ अधूरा रह गया है ……..हे ब्रह्म आल्हादिनी ! आपके बिना कृष्ण दर्शन भी पूर्ण नही होता ………..आप के बिना पूर्णब्रह्म भी अधूरा है ………..आपका साथ मिलनें पर ही ……..वो पूर्ण होता है ……………
हे राधिके ! द्वारिका में हमनें श्रीकृष्णचन्द्र के दर्शन किये थे ….पर आज आपके दर्शन करके ही पूर्णता का अनुभव हो रहा है ।
इतना कहकर वो सब ऋषि मुनि वहाँ से जानें लगे ………तब –
हे ऋषियों ! ये राधा आज आप लोगों से कुछ माँगना चाहती है ।
अचरा पसार कर ऋषियों से श्रीजी नें माँगा ।
हमसे आप माँग रही हैं ? हे श्रीराधा ! हमें आपसे माँगना चाहिये ।
“क्या नही दोगे मुझ दुखियारन को ? रो गयीं श्रीराधा रानी ।
आप क्या लीला कर रही हैं …….हम नही जानते ?
जैसे ब्रह्म अगोचर है ……..वो मन इन्द्रियों का विषय नही हैं ……..ऐसे ही आप भी उन्हीं की आल्हादिनी शक्ति हैं …………फिर कैसे ये जड़ मन आपको समझ सकेगा ? आप कहिये आपको क्या कहना है ? ऋषियों नें कहा ।
बस मुझे यही दे दो ……..कि द्वारिका में मेरे श्यामसुन्दर सुखी रहें ।
वो प्रसन्न रहें…….और ! रो गयीं श्रीराधा रानी……..और “हे ऋषियों ! श्याम सुन्दर को मेरी याद कभी न आये” ……ये वरदान दे दो ।
ऋषियों नें मात्र साष्टांग प्रणाम किया श्रीजी के चरणों में और चले गए ।
बलराम कुञ्ज रन्ध्र से सब देख रहे थे…….जब ऋषि मुनि चले गए तब बलराम बाहर आये ……और श्रीराधा जी के पास में ही बैठ गए थे ।
पर भाव दशा ऐसी थी श्रीराधारानी की……..कि बलराम को पहचान ही नही पाईँ ।
मैं जा रहा हूँ ललिता ! बलराम नें ललिता सखी को कहा ।
उफ़ ! इस ललिता का भी यही प्रश्न…….
…दाऊ भैया ! आयेंगें श्याम सुन्दर ?
आयेंगें ! अवश्य आयेंगें ………..बलराम नें इतना कहा और जानें के लिए उठे…………पर –
ये क्या कर रहे हो ? मत करो ऐसा ? बुरा लगेगा हमारी स्वामिनी को ….दाऊ भैया ! ये मर्यादा नही है ! ललिता बोलती रहीं ….पर बलराम नही माने……….और श्रीराधा रानी के चरण रज , अपनें उत्तरीय में बाँध लिया ……..और प्रणाम करके ……..सबको प्रणाम करके बलराम चल दिए ……………बरसानें से नन्द गाँव ।
फिर नन्दगाँव में मैयायशोदा, नन्दबाबा ……ग्वाल बाल सबसे मिलते हुये ……..हस्तिनापुर के लिए चल दिए थे ।
फिर हस्तिनापुर में पाण्डवों से मिलते हुए दो दिन बाद द्वारिका के लिये निकल पड़े थे ।
शेष चरित्र कल –
🍃 राधे राधे🍃
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877