!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
।। भूमिका ।।
साधकों ! मार्गशीर्ष का महीना कल से आरम्भ हो जाएगा ।
बड़ी सजी धजी श्रीराधाबल्लभ मन्दिर में गौरांगी जा रही है …वहाँ उत्सव है ….मैं भी श्रीबाँके बिहारी मन्दिर दर्शन करके लौट रहा था …कि …
हरि जी ! कहाँ हो ? वैसे ही चहकती हुई मुझे वो मिली ।
मैं मौन था …..इसलिये उससे बोल नही पाया …किन्तु उसने मुझ से बहुत कुछ कहा …..उसने मुझे कहा ….आप श्रीमहावाणी जी पर कुछ क्यों नही लिखते ? लिखिए । मैं मौन था नही तो उसे कहता कि ….गौरांगी ! महावाणी पर लिखने की मेरी हिम्मत नही है । वो बोली …रसोपासना का मूल ग्रन्थ महावाणी जी ही हैं । मैं इस बात को नकार कहाँ रहा हूँ ….हरि जी ! तो लिखिए ना !
गौरांगी ! मैं क्या करूँ ! मेरी लेखनी चलाने की बहुत इच्छा होती है महावाणी जी पर , पर मैं अपने आपको अनधिकारी मानता हूँ …..मेरा यही कहना था ….ये बात मैंने मन ही मन कही थी । पर वो समझ गयी थी …..आप तो बस प्रिया लाल जू को स्मरण करो और लिखो । मेरे मन ने कहा …नही गौरांगी ! आज भी माईक में नही गाये जाते महावाणी जी के पद …..और वैसे आज से बीस तीस वर्ष पहले तो श्रीधाम वृन्दावन से भी बाहर नही ले ज़ाया जाता था महावाणी जी को । और मैं उस पर कुछ लिखूँ ? अपराध होगा । हरि जी ! कोई अपराध नही होगा ..आप अपने आपको तो प्रचारित कहते नही हो…बात तो प्रियालाल जू की ही करोगे …फिर दिक्कत क्या है ?
इसके आगे भी गौरांगी ही बोली …..जिसे दिक्कत है उन्हें तो कुछ न लिखो फिर भी होगी ….आप लिखो …आपकी अपनी वस्तु है …इस पर खूब लिखो । ये अमूल्य निधि है हम रसिकों की ।
मैंने हाथ जोड़े गौरांगी के …..और वहाँ से चल दिया था ।
साधकों ! हमारे पूर्वज नेपाल से श्रीधाम वृन्दावन आए थे और यहाँ आकर बस गये थे ….नही , धन कमाने के लिए या नाम कमाने के लिए वो यहाँ नही आये थे …बस श्रीधाम वास करने के लिए ….गुप्त रूप से अपने आपको छिपाकर भजन करने के लिए ।
मेरे पिता जी भागवत जी का पाठ श्रीबाँके बिहारी जी को सुनाने लगे थे ….श्रीचिरंजीलाल श्रीमानजी …जो श्रीबाँके बिहारी जी की व्यवस्था देखते थे …उन्होंने मेरे पिता जी को भागवत पाठ के लिए श्रीबिहारी जी में रख लिया था ….नित्य भागवत जी के पाठ से ही श्रीबाँके बिहारी जी जागते थे ….और मेरी भुआ जी …जो महावाणी जी के पद नित्य सुनाती थीं बिहारी जी को , इनको भी श्रीमान जी ने ही रखा था …..हर उत्सवों में चाव लेकर जाती थीं बिहारी जी ….तो हम भी जाते थे …..रविवार या उत्सव के दिनों में स्कूल की छुट्टी होती थी तो भुआ जी के साथ हम भी महावाणी जी के गायन में सम्मिलित हो जाते थे ….( आज कल की तरह बिहारी जी में भीड़ नही होती थी ) ….बचपन के वो संस्कार , मुझे महावाणी जी के पद लगभग याद हो गये थे ।
हे साधकों ! महावाणी जी में कुल मिलाकर पाँच “सुख” की चर्चा है ….प्रथम सुख है “सेवा सुख” , दूसरा सुख है ..”उत्साह सुख” तीसरा सुख है …”सुरत सुख” चौथा सुख है ….”सहज सुख” और पाँचवा सुख है …”सिद्धांत सुख” ।
मुझे इन पाँचों सुख के मुख्य मुख्य पद कण्ठस्थ ही थे …और महावाणी जी के “समाज गायन” से तो मेरा जुड़ाव घनिष्ठ ही रहा । मैं मूल रूप से श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय का परम्परागत शिष्य हूँ ….और मुझे जब पागलबाबा मिले जो श्रीराधावल्लभ सम्प्रदाय के होने के बाद भी उन्होंने मेरी श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय से आत्मीयता और बढ़ा दी थी ।
मैं उन दिनों रसोपासना-प्रेमोपासना से दूर जा रहा था….ओशो , जे, कृष्णमूर्ति , स्वामी योगानन्द जैसे नीरस ज्ञानियों के वाक्चातुर्य में , मैं फंस रहा था …तब पागलबाबा ने मुझे सम्भाला ….उन्होंने मुझे होली के अवसर में , एक पद गाने के लिए कहा ….जो महावाणी जी का था , जिसे मैंने बचपन में बिहारी जी में अपनी भुआ जी के साथ बहुत गाया था , “श्यामा जू खेलत रंग भरी”……जिसने मेरे हृदय की सोई सरसता को जाग्रत किया । पागलबाबा की कुटिया में श्रीराधाबल्लभ जी के ब्याहुला गाये जाते थे …उन्होंने मुझे प्रेरणा दी कि …एक दिन तुम्हारे द्वारा …महावाणी जी में जो ब्याहुला का वर्णन है उसका तुम गान करो । मैंने गान किया …गान करने में त्रुटि हुयी तो उन्होंने मुझे सम्भाला ।
ये कृपा ही थी मेरे ऊपर श्रीप्रिया लाल जू की ।
साधकों ! मुझे प्रेरणा हो रही है कि इसमें मैं अपनी लेखनी चलाऊँ ….और समय भी शुभ है …अगहन मास है ….इसी मास में तो हमारी श्रीकिशोरी जी और श्रीरघुवर का विवाह उत्सव सम्पन्न हुआ था …..इतना ही नही इसी मास में हमारे श्रीबाँके बिहारी लाल प्रकटे थे । मैंने कभी कोई संकल्प नही किया ….जो मेरी स्वामिनी की प्रेरणा हुई उसे ही लिखता गया …आज मेरी स्वामिनी मुझ जैसे नीरस व्यक्ति से ये रस से ओतप्रोत रस ग्रन्थ “महावाणी जी” पर कुछ लिखवा रही हैं ….लिखवाएँ …मुझे क्या दिक्कत है …मशीन को क्या दिक्कत ….बस आप चलाती रहो ….तो हे प्रिया जू ! हम चलती ही रहेंगी ।
हम सब तो तुम्हारी अलियाँ हैं …….अब सम्भाले रहना ।
साधकों ! आनन्द आयेगा अब …..अगहन मास में , “महावाणी में ब्याहुला उत्सव”…इस नाम से मैं लिख रहा हूँ ….वैसे तो गौरांगी और शाश्वत भी बोला था कि …पूरी महावाणी पर , अद्योपान्त लिखिए ….किन्तु ….आगे और लिखायें प्रिया लाल जू …तो लिखेंगे …खूब लिखेंगे जी । अभी तो “महावाणी में ब्याहुला उत्सव” इसी पर विषय लिखा जाएगा ….बाकी आगे जो वो लिखायें ।
हरि जी ! अब बहुत आनन्द आयेगा । गौरांगी ने फोन पर यही कहा था मुझे ।
“जै जै श्रीहितु सहचरी , भरी प्रेम रस रंग ।
प्यारी प्रियतम के सदा , रहत जु अनुदिन संग ।।”
क्रमशः ….


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