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November 23, 2024 8:23 am

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्”” 113 !!-“श्रीराधाभाव” की चर्चा – बलराम जी द्वारा भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्”” 113 !!-“श्रीराधाभाव” की चर्चा – बलराम जी द्वारा भाग 3 : Niru Ashra

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 113 !!

“श्रीराधाभाव” की चर्चा – बलराम जी द्वारा
भाग 3

अश्रु बहते जा रहे थे बलराम जी के ……….और बोलते जा रहे थे –

मुझ से कहा उन देवतुल्य नन्दबाबा नें ……… ..दाऊ ! मत आनें को कहना उसे वृन्दावन ……………

मैने पूछा – क्यों ? क्यों न आनें को कहूँ ?

क्यों कि जरासन्ध शत्रु है मेरे लाला का ……….घात लगाकर बैठा है ….वो आएगा यहाँ तो कहीं ……………हम तो रक्षा भी नही कर पायेंगें अपनें लाला की ………………

अपनें आँसू पोंछते हुए बलराम जी नें कहा – राधा ……..वो तो साक्षात् प्रीति की प्रतिमा हैं …………..मुझ से कह रही थीं – दाऊ भैया ! श्याम सुन्दर प्रसन्न हैं तो वो वहीं रहें ………..हमें उनकी प्रसन्नता से मतलब है ………हम तो उनकी ख़ुशी में ही खुश हैं ।

बताओ कन्हैया ! यहाँ कौन है ऐसा ? जो तुमसे इतना प्रेम करता है …………..कन्हैया ! मैं भी तुम्हारे साथ ही जन्मा बृज में , खेला, कूदा ………पर मैं इतना समझ नही पाया था उन लोगों को ……..

पर इस बार जब मैं गया………..वो मैया यशोदा ……….अभी भी कहती हैं ………..कि “गैया चरानें गया है मेरा कन्हैया” ।

दाऊ ! बलराम के हृदय से लगते हुए हिलकियों से रो पड़े थे कृष्ण ।

वृन्दावन के रज की सुगन्ध आरही थी बलराम के वस्त्रों से…………

बलराम महक रहे थे वृन्दावन के प्रेम से …………कृष्ण उसे ही महसूस कर रहे हैं ।

दाऊ भैया ! तुमनें निकुञ्ज दर्शन किये ?

ये प्रश्न क्या किया कृष्ण नें ……..बलभद्र तो हिलकियों से रो पड़े ।

नही ……अहंकार को त्याग नही पाया मैं……..और बिना अहंकार को त्यागे निकुज्ज का दर्शन कहाँ मिलता ! हाँ कुञ्ज तक मैं गया …..मैने कुञ्ज की उन दिव्य लताओं के दर्शन किये……जो चिन्मय थीं ।

पर निकुञ्ज के दर्शन का सौभाग्य मुझे नही मिला ………बलराम नें बृज की सारी बातें बतायीं ।

अर्जुन भी उठ गए थे…..अब वो भी सुननें लगे थे वृन्दावन की महिमा ।

पर चकित हैं अर्जुन……….हाँ, बलभद्र जब जब “श्रीराधा” का नाम लेते हैं तब अर्जुन के मुख मण्डल में हल्की मुस्कुराहट आजाती है ……क्यों की इतना तो सबको पता ही था कि …….श्रीकृष्ण की प्रेयसि हैं ये श्रीराधा ……….पर जब श्रीराधा नाम लेते हुए कृष्ण को रोते देखा अर्जुन नें ………तब वो चकित हो गया था ।

वो मेरी सर्वेश्वरी हैं दाऊ ! वो मेरी स्वामिनी हैं ……..वो मेरी प्राणाधार हैं……राधा हैं तभी कृष्ण है ……………….मेरी आल्हादिनी श्रीराधा !

हिलकियाँ चल पडीं कृष्ण की ……….राधा ……हा राधा !

सम्भाल लिया बलभद्र नें ……….नही तो गिर जाते ………….देह सुध भूल गए थे श्रीकृष्ण …………….

कृष्ण और बलराम की ये स्थिति देख कर अर्जुन स्तब्ध थे ।

शेष चरित्र कल –

🍁 राधे राधे🍁

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