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July 5, 2025 5:06 am

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 114 !!-जब निकुञ्ज दर्शन के लिये तड़फ़ उठे थे अर्जुन भाग 1 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 114 !!-जब निकुञ्ज दर्शन के लिये तड़फ़ उठे थे अर्जुन भाग 1 : Niru Ashra

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 114 !!

जब निकुञ्ज दर्शन के लिये तड़फ़ उठे थे अर्जुन
भाग 1

कौन हैं ये श्रीराधा ? हे वासुदेव ! मैने इस नाम को बहुत बार सुना है ……….पर कभी आपसे पूछनें की हिम्मत नही हुयी ……….आज जब बलराम जी नें वृन्दावन और श्रीराधा का उल्लेख किया तब मैं आपसे पूछना चाहता हूँ ………हे वासुदेव ! मुझे आपनें अपना सखा माना है ….अगर मैं आपका सखा हूँ ……तो इस “श्रीराधा” नामक रहस्य से परदा हटाइये ! ये कहते हुए अर्जुन नें श्रीकृष्ण चरणों में प्रणाम किया था ।

बलराम जी नें श्रीकृष्ण से कहा …………..मैं थक गया हूँ ……..इसलिये विश्राम करनें के लिये जा रहा हूँ ……और हाँ ……कल हम द्वारिका के लिये निकल रहे हैं ……….बलराम जी नें कहा और अपनें अतिथि कक्ष में जाकर विश्राम करनें लगे थे ।

“श्रीराधा”………….ये तो बहुत गोप्य प्रश्न किया है तुमनें अर्जुन !

भाव जगत में डूब गए वासुदेव ।

ब्रह्मा, रूद्र, विष्णु ………ये भी श्रीराधा रहस्य को नही जान पाते ।

पार्थ ! मानव मात्र में प्रेम की पावन शक्ति का संचार करनें के लिये मैं इस धरा पर अवतरित होता हूँ ………..पर हे पार्थ ! मेरी जो अपनी शक्ति हैं ………आल्हादिनी शक्ति ……..जो प्रेम उमंग को बढ़ानें वाली शक्ति है ………मुझे निरन्तर आनन्द प्रदान करनें वाली शक्ति है …….उसी को आल्हादिनी शक्ति कहते हैं ………वह श्रीराधा हैं ।

यानि पार्थ ! मुझ में और श्रीराधा में कोई अंतर नही है ……हम दोनों एक ही हैं ……हाँ ये लीला है मेरी……..इसलिये लगता है कि हम दोनों अलग अलग हैं ………पर ऐसा नही है ………हम दोनों अलग हो ही नही सकते ……..अलग होकर रह ही नही सकते, बाकी जो विरह और वियोग दिखाई दे रहा है………वो मात्र लीला है ।

हे पार्थ अर्जुन ! सर्प की कुण्डली……..क्या कुण्डली और सर्प अलग अलग हैं ? सर्प जब चलनें लगता है ……तब कुण्डली कहाँ गयी ?

ऐसे ही हम दोनों लगते हैं अलग अलग …..पर हैं नहीं …….हैं एक ही ।

कृष्ण नें समझाया “श्रीराधातत्व” को ……प्रेम ही आकार लिया हुआ है श्रीराधा के रूप में ………..वो राधा ! मेरी राधा ….मेरी निकुंजेश्वरी श्रीराधा ।

ये तो अवतारकाल की लीला है ………जिसमें संयोग वियोग की लीला चलती ही रहती है ……..पर हे अर्जुन ! एक लीला है, निकुञ्ज की लीला …….जो अनादि है अखण्ड है …………

सूर्य मिट जाएँ, चन्द्र मिट जाए ………प्रलय हो जाए …….महाप्रलय आजाये …….जिसमें सारे लोक जलमग्न रहते हैं …………उस समय भी दिव्य वृन्दावन के निकुञ्जलीला में कोई व्यवधान नही पड़ता ।

प्रेम की बातें, वो भी कृष्ण के मुख से ………आहा ! अर्जुन गदगद् हो रहे हैं……और कृष्ण भी बड़े उमंग-उत्साह के साथ बताते जा रहे हैं ।

हे वज्रनाभ ! अर्जुन कोई साधारण तो हैं नहीं……….ये भी ईश्वर के अनादि सखा हैं ………नर नारायण की जोड़ी तो सनातन ही है ।

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –

🌸 राधे राधे🌸

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