!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! सरबस मंगल मूल !!
गतांक से आगे –
“श्रीराधाकृष्ण विवाह सुख , सरबस मंगल मूल ।
नित नित रचत सहेलियाँ , भरी प्रेम परफूल ।।”
आज प्रातः से ही विवाह की तैयारियाँ आरम्भ हो गयीं हैं…सब सखियाँ सजी धजी कुँज में चहल पहल कर रही हैं …..इन सखियों में दो प्रकार हैं ….एक साँवली हैं और दूसरी गौर हैं ….वैसे तो सब प्रिया जू की ओर ही हैं ….अजी ! हमारे लाल जू भी तो प्रिया जू की ओर हैं …फिर सखियाँ तो आत्मीय हैं । किन्तु फिर भी लीला रचाने के लिए …साँवरी सखियाँ श्याम सुन्दर की ओर से खड़ी होती हैं और गौर वर्ण की सखियाँ प्रिया जू की ओर से । चारों ओर फूल ही फूल हैं ….उनकी सुगन्ध से महक रहा है पूरा निकुँज । उन पुष्पों की विविध मालायें कोई तैयार कर रही हैं तो कोई बंदनवार बाँध रही हैं ….तो कोई लाल जू के लिए सेहरा बना रही हैं तो कोई प्रिया जू के लिए घेरदार लहंगा लेकर आयी है …जो सबको दिखाकर कह रही है ….हमारी लाड़ली इसमें कितनी सुन्दर लगेंगी । कोई रंगोली बनाने में ही मत्त है …तो कोई वाद्ययन्त्र को बजाने की तैयारी में है । सब आनंदित हैं ….आनन्द उनमें समा नही रहा । इसलिये वो कभी कभी जुगल के इस विवाह उत्सव के विषय में सोचकर ही उन्मत्त हो जाती है ।
सब तैयारियाँ कैसी हो रही हैं ? हरिप्रिया सखी जू पधारीं तो सबने आसन दिया …नही नही बैठने का समय नही है मेरे पास …ये कहते हुए वो फिर पूछने लगीं ।
आप स्वयं आदेश दीजिए ……ये मैंने माला बनाई है , एक सखी ने दिखाई …हरिप्रिया सखी देखती हैं और थोड़ी बड़ी बनाने की आज्ञा देती हैं …..कोई प्रिया जू की लहंगा दिखा रही है …..बहुत सुंदर जरी का काम है ……घेर बहुत है उसमें । “ये भारी है” हमारी किशोरी जू फूल सुकुमार हल्की हैं इस भारी लहंगा को सम्भाल नही पाएँगी ….कितनी सुकोमल हैं वो …वो सखी उस लहंगा को लेगयी ….दूसरा बनाने लगी । अब हरिप्रिया सखी सबको बड़े प्रेम से आह्लादित होते हुए कहती हैं …..हे सखियों ! ये श्रीराधाकृष्ण विवाह सुख है ….ये ऐसा महासुख है …जिसकी कोई कहीं तुलना नही है …..क्यों ? सखियाँ आनंदित होकर पूछती हैं ….तो हरिप्रिया सखी उत्तर देती हैं ….ये सभी मंगलों का भी मंगल है …मंगल इसी मिलन से ही प्रकट होते हैं …..दोउ का मिलना …यही हम सबके लिए मंगल है ….इन दोनों का एक परिणय सूत्र में बंधना हम सबके लिए मंगल का मूल है …..इससे शुभ और कुछ हो नही सकता , आहा ! इससे लाभ और क्या होगा कि हम इन नयनों से अनादि दम्पति को परिणय सूत्र में बंधे देखेंगे – और बाँधेंगे , हरिप्रिया सखी ये कहते हुए गदगद हैं …..उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु बह रहे हैं …..ये अपने और समस्त अलियों के भाग की सराहना कर रही हैं ।
क्या ये प्रथम बार निकुँज में ब्याहुला उत्सव हो रहा है ?
नई नवेली हरिप्रिया की सखियाँ ने उनसे ही ये प्रश्न किया था ।
नहीं , यहाँ तो जब इच्छा हो हम सखियों की तब ही ये ब्याहुला उत्सव हो जाता है ….फिर हंसते हुए हरिप्रिया कहती हैं ….कल मैंने नही कहा था …आल्हादिनी श्रीप्रिया जू हैं …आनन्द स्वरूप श्रीलाल जू हैं ….इनकी विहार स्थली श्रीवृन्दावन है …और इनकी “इच्छाशक्ति” हम सखियाँ हैं ….वैसे हमारी कोई इच्छा नही है …न होती ….क्यों की हमारा मन ही नही है ….हमारा मन जुगलवर के पास है …इसलिए उनकी इच्छा ही हमारी इच्छा है ….जब जुगल की इच्छा होती है कि विवाह हो ….तब हम भी कहने लग जाती हैं कि अब विवाह उत्सव हो …..फिर हम तैयारियों में जुट जाती हैं ……हम सब प्रेम से भरी हैं ….यहाँ प्रेम की ही चलती है …हे सखियों ! यहाँ प्रेम ही आकार लेकर चारों ओर फैला है ….तो वही प्रेम हम सबके हृदय में भर जाता है ….फिर हम उसी के अनुसार रचना करती हैं …..सुन्दर सुन्दर रचना ! सुन्दर से सुन्दर क्या हो सकता है …वही हम सबके माध्यम से हो जाता है ….इतना कहते हुए हरिप्रिया सखी मौन हो जाती हैं …क्यों की उनका हृदय अब गदगद है …उनके हृदय में दूल्हा रूप में श्याम सुन्दर और दुल्हन रूप में लाड़ली श्रीजी आकर विराज गयीं हैं ….इसलिए यहाँ हरिप्रिया सखी मौन हैं …..चारों ओर श्रीवन प्रफुल्लित है ….श्रीवन लता पत्रों से अपने आपको सजा रहा है …उसमें नाना प्रकार के पुष्प खिल गये हैं ……भवरों का झुण्ड गुनगुन कर रहा है ………
“भरी प्रेम परफूल , सब हित की अलबेली ।
ब्याह विनोदनि सुख सच्यो, हिल मिलि सबै सहेली ।”
ओह ! चारों ओर से सखियों का झुण्ड आने लगा था …..सब सजी धजी सुन्दरतम स्वरूप वाली थीं ……सब उत्साहित थीं …सब रंग और रस भरी थीं …..सब हित की सखी थीं यानि प्रेम से बनी थीं ये सब …प्रेम ही प्रेम था इनमें …..सब हंस रहीं थीं ….उनकी हंसीं मधुरातिमधुर थी ….उनकी बोली कोयल को भी मात दे रही थी ।
हरिप्रिया सखी ये सब देखकर …अपनी सखियों से कहतीं हैं ….”ये श्रीराधाकृष्ण विवाह सुख सर्व मंगल का मूल है” ।
अरी सखियों ! आज पूरा श्रीवन सज रहा है ।
क्रमशः ….


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