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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 114 !!
जब निकुञ्ज दर्शन के लिये तड़फ़ उठे थे अर्जुन
भाग 3
फिर ? मैं क्या करूँ ? क्या मुझे दर्शन नही होंगें उस दिव्य निकुञ्ज के ? फिर चरणों में गिर गए अर्जुन ……..आप चाहें तो कुछ भी कर सकते हैं ………..कीजिये ना ?
पर कुछ नही बोले श्रीकृष्ण………….अर्जुन प्रार्थना करते रहे ।
अर्जुन ! तुम भी चलो हमारे साथ ……………..
हस्तिनापुर से विदा हो रहे थे कृष्ण बलराम द्वारिका के लिये ।
पर चलते समय अर्जुन को पूछा था …….नही नही पूछा नही था ……आदेश था ।
अन्य पाण्डव देखते रहे ………कुछ बोले नही ……….अर्जुन के लिये तो कृष्ण का आदेश ही सब कुछ है……..तुरन्त ही रथ में चढ़ गये अर्जुन …….और सबको प्रणाम करते हुए कृष्ण, चल दिए द्वारिका के लिये ।
वृन्दावन में उतार देना अर्जुन को .!
……अपनें प्रिय सारथि दारुक से कहा था कृष्ण नें ।
पर क्यों, वृन्दावन में अर्जुन क्यों जाएगा ?
बलराम बड़े होनें का रौब दिखाते ही हैं ।
पर कृष्ण नें बलराम की बात का कोई उत्तर नही दिया……अर्जुन से ही बोले –
अर्जुन ! मेरे भाई ! कन्धे में हाथ रखा कृष्ण नें अर्जुन के ……..और बड़े प्रेम से बोले………हम द्वारिका चले जायेंगें ….पर अब वृन्दावन आनें वाला है तुम्हे वहाँ उतरना है …………
हे गोविन्द ! मुझे निकुञ्ज के दर्शन होंगें ना ?
अर्जुन नें फिर प्रार्थना की ।
अर्जुन ! तुम मेरे प्रिय हो……..मैं इस “प्रेम तत्व” से तुम्हारा साक्षात्कार कराना चाहता हूँ…….इसको नही जाना तो सब कुछ जानना व्यर्थ ही है………..इसलिये अब तुम मेरी बात ध्यान से सुनो ।
रथ रुका………….वृन्दावन की सीमा में ही रथ रुका था ।
कृष्ण नें हाथ जोड़कर प्रणाम किया उस दिशा को, जिस दिशा में बरसाना था ।
हे अर्जुन ! अब मेरी बात ध्यान से सुनो ………..यह “सर” है …….जिसका नाम है “मान सरोवर” ……नेत्र सजल हो उठे कमल नयन के …………मेरी राधा यहाँ मान करती थीं ……….मैं उन्हें मनाता था ……….प्रेम की रीत अनूठी होती है ………..ये प्रेम की सिद्ध भूमि है………इसलिये तुम यहीं बैठो …….और त्रिपुरा सुन्दरी की आराधना करो ………..हाँ वही त्रिपुरा सुन्दरी जो भगवान शिव के हृदय में रहती हैं ………उन्हीं की आराधना करो ।
अर्जुन हाथ जोड़कर खड़े रहे ……….रथ में बैठ गए थे कृष्ण ………बलराम और दारुक सारथि चकित भाव से कृष्ण अर्जुन की ये अबुझ लीला देख रहे थे ।
त्रिपुरा सुन्दरी, मेरी राधा की सखी ललिता हैं……..रथ जब चला ….तब कृष्ण को लगा बता दूँ अर्जुन को……..इसलिये, चलते चलते बता दिया ……..पर बता रहे थे अर्जुन को…….चकित हो गए थे बलराम जी ।
क्या ललिता सखी भगवती त्रिपुरा सुन्दरी हैं ?
अर्जुन वहीं बैठ गए……….ध्यानस्थ हो कर बैठे थे मान सरोवर में ।
और अपनें हृदय में भगवती त्रिपुरा सुन्दरी का ध्यान करनें लगे थे ।
शेष चरित्र कल –
🌸 राधे राधे🌸


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