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July 5, 2025 2:11 pm

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!!”श्रीराधाचरितामृतम्” 115 !! भाग 2 & ૩ : Niru Ashra

!!”श्रीराधाचरितामृतम्” 115 !! भाग 2 & ૩ : Niru Ashra

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 115 !!
भाग 2

मैं यहाँ ये भी उद्धृत करना उचित समझता हूँ कि …….”राधाभाव” की साधना करनें वाले गोरखपुर के श्रीराधा बाबा जी …………उन्होंने अपनी ये घटना स्वयं बताई है ……..”उन्हें युगलसरकार नें आज्ञा दी इस नवरात्रि में ……कि भगवती त्रिपुरा सुन्दरी की साधना करो ………और विधि विधान से करो” ।

..विधि कर्मकाण्ड के लिये , काशी में रहनें वाले महामहोपाध्याय प. गोपीनाथ कविराज जी नें मार्गदर्शन किया था ……श्री राधा बाबा के लिये नित्य एक सौ आठ कमल के फूल भगवती त्रिपुरा सुन्दरी की पूजा के लिये ……पूज्य भाई जी ( हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ) नें व्यवस्था कर दी थी ।

बाद में इस रहस्य का उद्घाटन स्वयं राधा बाबा जी नें ही किया था ………कि भगवती त्रिपुरा सुन्दरी ही ललिता सखी हैं …….इसलिये मुझे युगलवर नें त्रिपुरा की आराधना करनें को कहा ।

“श्रीकृष्ण प्रसंग” नामक अपनें ग्रन्थ में श्री गोपीनाथ कविराज लिखते हैं …….स्वयं श्रीकृष्ण नें भी अपनी ही आल्हादिनी श्रीराधा के साथ मिलन के लिये त्रिपुरा सुन्दरी की उपासना की थी ।

और वैसे भी हम “बृजलीला” में देखते ही हैं – ललिता सखी की कितनी हा हा खाते थे श्रीकृष्ण…और कहते थे – मेरी राधा से मिला दे ललिते ! ।

क्यों की इन दोनों को मिलानें वाली भी ललिता ही हैं ।

अच्छा ! एक साधक नें कल मुझ से मेरा अनुभव पूछा है …….कि आप क्या कहेंगें इन “आल्हादिनी शक्ति” की यात्रा के बारे में ? ………..प्रश्न कर्ता अच्छे साधक हैं …………विद्वान हैं ……………

“आल्हादिनी ब्रह्म की शक्ति हैं ………….जैसे – ब्रह्म , फिर परमात्मा फिर भगवान ………अब मेरा जो अनुभव रहा ……..परमशान्त ब्रह्म है …..उस शान्त ब्रह्म से होती हुयी …शक्ति ………….भगवान, जो आकार लेकर प्रकट हुआ है ………और सबको अपनें हृदय से लगा रहा है …….यहाँ तक “आल्हादिनी” की जो यात्रा है ……वो कितनी विलक्षण है ……….मैं साधारण रूप से आपको बता रहा हूँ ……….ताकि आप समझ सकें ।

आप लोगों नें डेम देखा है ? नदी को रोककर जो डैम बनाये जाते हैं वो देखे होंगें ना ? बहुत जल होता है उसमें ……अगाध जल राशि होती है …..पर .शान्त होता है ………..उसमें भी विद्युत तो रहती ही है पर शान्त ….जल कणों में ही एक होकर रहती है………अब विद्युत अभियन्ता यन्त्रों के माध्यम से पानी से विद्युत उत्पन्न कर …………मोटे मोटे तारों के माध्यम से उस बिजली को पावर हाउस में सुरक्षित रखा जाता है ……..फिर उसी पावर हाउस से ………….घरघर तक , कल कारखानें तक, पँखा हीटर रेफ्रिजरेटर सब चलाते हैं ।

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –

🌺 राधे राधे🌺
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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 115 !!

आल्हादिनी शक्ति का रहस्य
भाग 3

आप लोगों नें डेम देखा है ? नदी को रोककर जो डैम बनाये जाते हैं वो देखे होंगें ना ? बहुत जल होता है उसमें ……अगाध जल राशि होती है …..पर .शान्त होता है ………..उसमें भी विद्युत तो रहती ही है पर शान्त ….जल कणों में ही एक होकर रहती है………अब विद्युत अभियन्ता यन्त्रों के माध्यम से पानी से विद्युत उत्पन्न कर …………मोटे मोटे तारों के माध्यम से उस बिजली को पावर हाउस में सुरक्षित रखा जाता है ……..फिर उसी पावर हाउस से ………….घरघर तक , कल कारखानें तक, पँखा हीटर रेफ्रिजरेटर सब चलाते हैं ।

मेरे साधकों ! ब्रह्म में, शक्ति शान्त थी ( ब्रह्म यानि जो सर्वत्र है) …….परमात्मा ( परमात्मा यानि जो योगी के हृदय में प्रकट है ) में जाकर कुछ हलचल हुयी …….पर भगवान ( भगवान यानि निराकार आकार लेकर प्रकट हो गया ) तक आते आते वो शक्ति जन जन में आल्हाद को, आनन्द को प्रकट करनें लगी………बस यही है आल्हादिनी शक्ति……..और इसी का नाम है श्रीराधा.।

………श्रीराधा भाव सर्वोच्च भाव है …….ये प्रेम साधना है …….रस का उपनिषद् है ……….हाँ इस रस साधना में काम, क्रोध द्वेष, राग इन्हीं सबका प्रयोग करके उस उच्च भाव में पहुँचना है ……….इन्हीं कामक्रोधादि से ही सीढ़ी बनाकर चढ़ना है …….अद्भुत है ये साधना !

काम यानि इच्छा ………..इच्छा प्रियतम की ही हो ……..क्रोध ……..प्रियतम नही …..तो क्रोध …….प्रिय क्यों नही ….इस बात पर क्रोध …….प्रिय का स्मरण क्यों नही हुआ …..क्रोध । ……..अब लोभ …….लोभ, उसको निहारनें का लोभ ……उसे छूनें का लोभ ……उसे चूमनें का लोभ …………..इस तरह से इन दुर्गुणों को त्यागना नही है ……..अपितु दुर्गुणों का ही सही प्रयोग करके पहुँचना है प्रिय के धाम …..यानि निकुञ्ज ………..पर अंतिम एक बाधा है ……..क्या ?

अहंकार छोडो………यानि सखी भाव की प्राप्ति …….

कैसे ? कैसे ………….यही प्रश्न किया था मान सरोवर में साधना करते अर्जुन नें भगवती त्रिपुरा से ……….तब जो उत्तर दिया …..।

साधकों ! आज मैने अपनें हृदय की बात कही …….श्रीराधाभाव के सम्बन्ध में ……………..आपके भाव यात्रा में ये सहयोगी बनें ……..इसलिये कुछ अनुभव शेयर कर दिए ।

Harisharan


मान सरोवर में अर्जुन साधना कर रहे हैं……..दिव्य वन हैं वहाँ …….मोर अनेक, पक्षी आनन्दित हो कलरव कर रहे हैं……..भगवती त्रिपुरा सुन्दरी अर्जुन की साधना से प्रसन्न हो, प्रकट हो गयीं ।

क्रमशः….
शेष चरित्र कल –

🌺 राधे राधे🌺

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Author: admin

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