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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 117 !!
या में दो न समाहीं – अद्भुत सखीभाव
भाग 2
यहाँ ग्वालों का प्रवेश है….गोपियों का भी प्रवेश है…..देखो ! अर्जुन ! सखी नें अर्जुन को दिखाया…….अर्जुन आनन्दित हो उठे थे ……..वो कुञ्ज बड़ा ही दिव्य था……नाना जाति के वृक्ष, लता, पुष्प अनगिनत खिले हुए थे……..उनकी सुगन्ध से पूरा कुञ्ज महक रहा था………पक्षियों का कलरव ! आहा ! कितना मधुर ……..मोर नाच रहे थे………..वो सखी मुझे लेकर आगे बढ़ती रही ।
मैं उन दिव्य कुञ्जों की शोभा देखते हुये उस सखी के पीछे पीछे चल रहा था……तभी मेरी दृष्टि एक प्रकाश में जाकर ठिठक कर रह गयी ।
वो अद्भुत था……..वो एक दिव्यातिदिव्य सिंहासन था………
मैं चकित भाव से प्रेमपूर्ण होकर देखता रहा………….
उस सखी की मधुर आवाज मेरे कानों में घुली थी………..
यहाँ सिद्धों की गति नही है……..पार्थ ! ये कुञ्ज है ……बड़े बड़े योगियों की, ज्ञानियों की गति भी यहाँ तक नही है ………….
ये प्रेम के परमाणुओं से भरा एक दिव्य प्रेम लोक है……..इस लोक के अधिपति श्रीराधामाधव के दर्शन करनें के लिये अब आगे चलो ।
अर्जुन की बुद्धि काम नही कर रही थी………वो बस सखी के पीछे पीछे ही चले जा रहे थे ।
तभी सामनें देखा – आँखें चुधियाँ गयीं थीं अर्जुन की ……….
दिव्य सिंहासन था………उस सिंहासन में युगलवर श्रीराधामाधव विराजमान थे………
श्रीराधामाधव के दर्शन करते ही अर्जुन भाव में आगये ……..और मूर्छित होकर गिर पड़े थे
राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे,
राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे !!
ये मन्त्र स्वयं ही अर्जुन के रोम रोम से प्रकट हो रहा था ।
उनके साँसों की गति में ये मन्त्र चल रहा था …………..
पार्थ ! उठो ! उठो अर्जुन ।
ललिता सखी प्रकट हो गयीं थीं मान सरोवर में …………और अर्जुन के सिर में हाथ रखा था ………उठो पार्थ !
आँखें खोलीं अर्जुन नें …………..उठकर बैठ गए ………..चारों ओर देखनें लगे ………..जब कुछ दिखाई नही दिया तब बिलख उठे थे –
ललिता जू ! मुझे निकुञ्ज के दर्शन करनें हैं ………..मुझे निकुञ्ज में उस “सुरतकेलि” का दर्शन करना है …………मुझे निकुञ्ज में श्रीराधामाधव का अद्वैत होना, फिर द्वैत में परिवर्तित होकर लीला करना ……फिर लीला करते हुए अद्वैत में ही स्थित हो जाना ।
हे ललिता सखी जू !
प्रेम, दो से एक बननें की विलक्षण लीला का नाम है ।
मुझे निकुञ्ज की उसी लीला का दर्शन करना है ।
हँसी ललिता सखी ………..अर्जुन ! ये सम्भव नही है ।
क्यों सम्भव नही है ? आप चाहें कुछ भी कर सकती हैं ……..
अर्जुन नें प्रार्थना की ।
पर……..निकुञ्ज में पुरुष का प्रवेश नही है……वहाँ मात्र “सखी भाव” से भावित जीव ही जा सकता है ।
क्यों की विशुद्ध प्रेम में ……….अहंकार पूर्णतः प्रतिबंधित है ।
क्रमशः….
शेष चरित्र कल –
🌷 राधे राधे🌷


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