*श्रीकृष्णचरितामृतम्*
*!! “पनघट पे” – एक प्रेम प्रसंग 3 !!*
*भाग 5*
श्याम की सुन्दरता को देखती रहीं राधा रानी ……….देह भान भूल गयी थीं ………अपनें आपको भूल गयी थीं ।
स्वामिनी जु ! एक काम करें …………अति उत्साहित होती हुयी ललिता सखी बोली …………..इन्होनें हमारी मुद्रिका चुराई हम इनकी बाँसुरी चुरा लेती हैं ……….ये ठीक रहेगा ………..हँसी ललिता ये कहते हुए – हिसाब बराबर ।
नही ललिता ! ये काम ठीक नही है ………….ये मत करो ………राधारानी नें रोका…….पर ललिता सखी आज मान नही रही …….चुपके से उसनें श्याम सुन्दर के फेंट में से बाँसुरी निकाल ही ली ।
स्वामिनी जु ! अब इनकूँ पतो चलेगी कि बरसानें वारिन ते उलझनों कितनों टेढ़ो काम है ।
आप रखो इसे …….ललिता सखी नें वो बाँसुरी राधा जी को दे दी ।
वे आएंगे माँगनें, तो मैं दे दूंगी ………….
नही ………..ऐसे नही देना है ………..नही तो उलटे हम चोर कहलाएंगी स्वामिनी जु ! आप इस बाँसुरी को छुपा कर रख लो ।
राधा रानी कुछ नही बोलीं…..बस बाँसुरी को रख लिया अपनें पास ।
सन्ध्या होनें को आरही है …….सूर्य अस्ताचल को जा रहे हैं ।
कन्हाई उठे …………अंगड़ाई ली ………….इधर उधर देखा ……..जम्हाई लेते हुये चुटकी बजाई ।
मन ही मन कहनें लगे ………..आज तो मैं बहुत सोय गयो ………देखो तो साँझ है वे वारी है …………..चलो अब घर चलूँ ।
अरे ! मेरी बाँसुरी कहाँ है ? कन्हाई नें जब देखा इधर उधर तो बाँसुरी गायब थी …………
‘चरोरन घर चोरी है गयी”………….हँसें कन्हाई ………..या बृज को सबते बड़ो चोर मैं हूँ ………पर मेरो भी चोर कौन है !
सोचनें लगे ………तभी , श्याम सुन्दर सब समझ गए ।
ओह ! तो राधारानी नें मेरी बाँसुरी चुराई है …….ललिता नें उकसाये के मेरी बाँसुरी चुराय लिनी है ………वो बाँसुरी तो राधा रानी के पास है अब ………….
नींद नही आवे बिना बाँसुरी के ………चैन नही पड़े बिना बाँसुरी के ।
कन्हाई उठे ………….और चल दिए श्रीराधारानी के पास ।
क्रमशः….


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