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July 2, 2025 6:49 am

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रथ यात्रा, जो कि भगवान जगन्नाथ की यात्रा के रूप में प्रसिद्ध है, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस यात्रा के दौरान विशेष रूप से 5वें दिन लक्ष्मी जी का भगवान जगन्नाथ से मिलने का महत्त्व है। : अंजली नंदा

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!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )-!! : Niru Ashra

!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )-!! : Niru Ashra

!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!

( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )

!! अति आनन्द उछाह !!

गतांक से आगे –

वो श्रीराधा आज दुलहिन बनी हैं ….जो सुख तरंगिनी हैं , अपने श्याम सुन्दर के रंग रंगिनी हैं ।

दुलहा वो बने हैं ….जो अखिल प्रेमामृत सार सर्वस्व हैं ….और उस प्रीत सर में निरन्तर निमज्जन करते रहते हैं ….इसलिए ये श्रीराधा सौन्दर्य के लम्पट कहे जाते हैं ।

निकुँज का उत्साह आज चरम पर है …..उत्सव ही ऐसा है कि सब कुछ नृत्यमय हो उठा है ।

सखियों का हृदय आज रस से भर गया है …भाव के कारण ये कुछ बोल नही पाती हैं ….बस कभी निहारती हैं युगल को , तो कभी नृत्य करने लगती हैं तो कभी गाने लग जाती हैं । प्रत्येक सखी ने आज लाल या पीली साड़ी पहनी हुई है ….ऐसे अनुपम उत्सव में हमारा भी मन लगे ।

चलिए – नित्य निकुँज में ।

॥ दोहा ॥

मोपै जात न कहि कछू, भाँवरि भेद सुहाय ।
बना बनी राजैं दोऊ, मंगल मोद मुहाय ॥
मंगल भाग सुहाग के, चंदमुखी चहुंओर ।
गावत रैनि सुहावनी, सुखको नाहिंन छोर ॥
छोर न ओर न अमित सुख, अति आनंद छ्यौ ।
मंगल बरषत रैनि रस, सब मन मोद भयौ ॥

॥ पद ॥

आजु की मंगल रैनि सुहाई।
भयो सबनि मन मोद। रस बरषत चहुँकोद ॥
अति आनंद उछाह । उमगे उरनि उमाह ॥
श्रीहरिप्रिया रंग भरे । मनबंछित सब सरे ॥ १५८ ॥

****श्रीहरिप्रिया कहती हैं ….हे सखियों ! तुमने देखा ना कि श्रीतुंगविद्या जू ने कैसे वेदमन्त्रों के द्वारा हमारे इन नवल दम्पति की भाँवरी करवाई …..दोनों उस समय कितने सुन्दर लग रहे थे ….एक नीलमणि और एक पीतमणि …..ऐसा लग रहा था कि आनन्द और आह्लाद का मिलन होने जा रहा है । हरिप्रिया सखी अपनी सखियों को अपने हृदय की बात बता रही हैं । हे सखियों ! मेरे हृदय से तो वो झाँकी जा ही नही रही …..भाँवरी के समय इन के साथ साथ सखियाँ भी चल रहीं थीं और सखियाँ अद्भुत सौन्दर्य से भरी थीं ….सब की सब चन्द्र से आनन की थीं । और सब मंगल गीत गाते हुए चल रहीं थीं । ओह ! सखियों उस सुख का तो कोई ओर छोर ही नही है । क्या कहूँ सखी ! सुख की झरी लग गयी थी जब हमारे प्राण धन भाँवरी ले रहे थे ।

श्रीहरिप्रिया के ये कहने के बाद ही वहाँ सन्ध्या हो गयी …और देखते ही देखते निकुँज के नभ में चन्द्रमा उदित हो आते हैं । श्रीहरिप्रिया के साथ सारी सखियों हर्षोन्माद के कारण जै जै जै की ध्वनि करने लगीं । तब हरिप्रिया ने कहा ….ये उत्सव तो और मादक हो गयी क्यों की रस भरी रात्रि ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है ….अरी सखियों ! ये रैन मंगल बरसाने वाली है ….चारों ओर अब मंगल ही मंगल होगा । देखो देखो तो , सबके मन में मोद भर गया है । श्रीहरिप्रिया के इस कथन को सुनकर सखियाँ और आनन्द रस में डूबने लगीं थीं ।

रात्रि हो गयी …किन्तु नभ में चन्द्रमा के पूर्ण खिलने से निकुँज चमक उठा …छोटे छोटे तारे अनगिनत नभ में खिल गये …इतना ही नही ….मुख्य मुख्य सखियों ने मशाल जला दिये …और उन्हें पकड़ कर खड़ी हो गयीं मण्डप के पास । अन्य सखियों ने घी के दीये जलाने शुरू कर दिये …और देखते ही देखते अनन्त दीपक जल उठे …ये देखकर हरिप्रिया सखी कहती हैं …सखियों ! आज की रात्रि तो मंगल रूप धारण करके ही पधारी है …कितनी सुहावनी है ये रात ….इस रात्रि में और चन्द्र के प्रकाश में हमारे दम्पति का रूप और दमक रहा है …ये देखकर तो मुझे लगता है मैं इन पर तन मन प्राण वार दूँ । हरिप्रिया इतना कहकर फिर युगल सरकार को ही मुस्कुराते हुए देखना आरम्भ कर देती हैं । ये रंग भरी रात है ….इसने तो आज रंग रस की वर्षा ही कर दी निकुँज में ….हरिप्रिया फिर बोलने लग जाती हैं ….युगलवर की यही इच्छा थी इसलिए रात्रि हो गयी ….ये रात्रि भी कोई सखी ही है ….जो युगलवर की कामना को पूरा करने के लिए रात्रि बनी है । आहा ! इच्छा युगलवर की ही नही …हम सबकी भी इच्छा पूरी हुयी है ….दिन के प्रकाश में प्रेम खिलता कहाँ है ….प्रेमियों के लिए तो ये रात ही सुहानी है ।

ये कहते हुए श्रीहरिप्रिया अपनी सखियों के संग नव दम्पति के ऊपर पुष्प बरसाने लग जाती हैं ।

“आजु की मंगल रैन सुहाई”

यही कहकर निकुँज की अनंत सखियाँ एक साथ नाच उठी थीं ।

वो झाँकी अद्भुत थी ।

क्रमशः….
Niru Ashra: !! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!

( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )

!! ब्याह की बधाई !!

गतांक से आगे –

दुलहन प्यारी श्रीराधिका जू …आज जो अनुराग के तरंग मद से विह्वल हैं । और दुलहा श्रीश्यामसुन्दर मनौं आनन्द सिन्धु में ज्वार आगया हो । अजी ! दोनों अभिन्न हैं …दोनों एक वय के हैं …दोनों श्याम वर्ण के हैं और दोनों ही गौर वर्ण के हैं ….सखियों के लिए तो ये कल्पतरु हैं …जो कामना करती हैं सखियाँ , ये पूरी कर देते हैं । निकुँज में चारों ओर से सुख की वर्षा हो रही है क्यों न हो सुख की वर्षा जहाँ मंगल मूर्ति ये युगल विराजमान हों …वहाँ सुख ही सुख है ।

और हाँ , इन दिनों विशेष है ….क्यों कि इन सुख निधान जोरी का ब्याह उत्सव चल रहा है ।

देखो जी ! जब आनन्द सीमा पार कर जाये …तब व्यक्ति नाचता है , गाता है ….ये सब तो चल ही रहा था ….किन्तु अब सखियों ने बधाई गानी और शुरू कर दी । ब्याह की बधाई ।

आरम्भ की है अपनी श्रीहरिप्रिया सखी जू ने …इनकी मत्तता देखते ही बनती है । ये इस उत्सव को लेकर माती हो गयी हैं …इनका रोम रोम अति आनन्द के कारण पुलकित है ….और क्या कहें …ये सबको प्रेरित कर भी रही हैं कि – क्या ऐसे ही बैठी हो …नाचो , गाओ , बधाई गाओ ।

श्रीहरिप्रिया की बात सुनकर सखियों ने बधाई गानी आरम्भ कर दी ….और देखते ही देखते उस रँग भरी रैन में ….बधाई चल पड़ी , चारों ओर उसी की धूम । लताएँ इतनी आनंदित हैं कि उन्होंने पुष्प बरसाने शुरू कर दिये ….रात्रि में निकुँज की छटा अलग ही लग रही है …..छोटे छोटे कुँज में प्रकाश ….उस प्रकाश में चमक रहे मणि आदि की झिलमिलाहट । कोई सखी वीणा बजा रही है …तो कोई मृदंग …कोई सारंगी लेकर बैठी है …तो कोई शहनाई । क्या बतायें ! सखियों का स्वर ऐसा कि स्वर्ग के गन्धर्व की कौन कहे …देवि सरस्वती भी लज्जित हो जायें ।

ब्याह मण्डप में मंद मंद मुस्कुराते हुए ये दोउ छैल छबीले गुन गरबीले …बैठे हैं ।

!! दोहा !!

सरै सबै बंछित सुफल, सोभा सहज सुहाहिं।
अलकलड़े दोउ लाड़िले, महामुदित मन माहिं ।।

मुदित महारस रँग रह्यो, सो सुख कह्यौ न जाय ।
मंगलमनि राजैं जहाँ, बाजैं क्यों न बधाय ॥

॥ पद ॥

मंगलमनि मोहन राजैं जहाँ क्यों न बधाई बाजैं री।
दोउ साँवरे दोउ गोरे दोउ एक छबि छाजैं री ॥
एकहि बैस प्रान मन एकहि एकहि सुख सुख-साजैं री।
बने बनाये बना बनी अति लखि रतिपति मति लाजैं री ॥
प्रिया प्रसन्नबदनी को बैभव भाँतिन भाँतिन भ्राजैं री।
रंगबेदी में रंगभरे दोउ श्रीहरिप्रिया बिराजैं री ॥१५९॥

आहा ! रंग भरी रैन है ….इस रस रंग भरी रैन में देखो तो ! हमारे दुलहा दुलहिन कितने सुन्दर लग रहे हैं ….सही बात ये है कि इनकी कामना पूरी हुयी । हरिप्रिया जू ! कैसे ? सखियों ने रस मत्त हरिप्रिया जू से पूछा । अरी सखियों ! ये दोनों उत्सवप्रिय हैं …इन्हें अगर रिझाना है तो उत्सव करो …उत्सव से इन दोनों को सुख मिलता है …उस पर भी ये रंग भरी रैन ! ये रैन है ना …यही प्रेमियों को अपेक्षित होता है । क्यों की दोनों का महामिलन इस रंग भरी रैन में ही तो होगा । युगलवर कैसे फूल गए हैं अति आनन्द के कारण …प्रसन्न होकर इधर उधर देख भी रहे हैं हम सबको …और हम सब बधाई गा रही हैं …उधर देखो ..सखियाँ उधर भी नाच रहीं हैं ..और इधर भी ..हरिप्रिया चारों दिशाओं में दिखा रही हैं ..और स्वयं अति आनन्द के कारण उछल रही हैं ।

क्यों न हो बधाई ? हरिप्रिया अन्य सखियों से पूछती हैं । जब रसराज, रसीली रस भरी , इन जोरी का ब्याह हो रहा हो ..तो क्यों न बाजे बधाई ?

ये सुनकर सब सखियाँ हंस पड़ीं ।

ठीक ही तो है …..जहाँ मंगल मूर्ति युगल जोरी विराजमान हो ….जहाँ मंगल का भी मंगल करने वाले हमारे मंगलमय सरकार विराजमान हों …वहाँ क्यों न बधाई बाजे ?

हरिप्रिया ये कहते हुए उछल रही हैं ….प्रिया जू लाल जू को दिखाती हैं कि देखो ! हरिप्रिया को क्या हुआ ? उसका आनन्द तो हिय में समा भी नही रहा । लाल जू देखते हैं तो हंसते हैं ।

हरिप्रिया कुछ नही देख रहीं इधर उधर ….वो बस नाच रही है ….एक सखी ढोल बजा रही थी उसी के पास जाकर ये भी ढोल बजाने लगीं । कोई सखी शहनाई बजा रही थी तो उसके पास जाकर हरिप्रिया शहनाई बजाने लगी । फिर अनन्त सखियाँ तो एक ही ताल में एक लय में नाच रही थीं उनके साथ जाकर ये भी पद ताल मिलाने लगीं ।

अरी सखियों ! क्या कहें ! ये दोनों दम्पति एक समान हैं …दोनों की वय एक है …दोनों का रंग रूप एक है …..हरिप्रिया ये कहते हुए रात्रि के प्रकाश में दुलहा दुलहन को दिखाती हैं…हाँ , दोनों ही श्याम लग रहे हैं और दोनों ही गौर लग रहे हैं ।

ये कैसे ? अन्य सखियों ने श्रीहरिप्रिया से पूछा ।

दुलहन की परछाईं दुलहा पर पड़ती है तो दोनों गौर ….और दुलहा की परछाईं दुलहन पर जब पड़ती है तो श्याम । ऐसे दोनों का रंग भी एक ही हो गया है ।

श्रीहरिप्रिया अपनी छाती में हाथ रखकर आह भरते हुये कहती हैं …..अरी ! रंग ही एक नही है …ये दोनों भी एक ही हैं ….वो तो हम सब सखियों को सुख देने के लिए ये दो बने हैं ।
ये हमारे ऊपर इनकी दया है ….जो दुलहा दुलहन बनकर हमारे नयनों और हृदय को शीतल कर रहे हैं …..हे सखियों ! ये जो हमारी दुलहन प्यारी जू विराजमान हैं ना , इनका सौन्दर्य थोड़ा देखो …ऐसा लगता है जैसे मावस के बाद पूनौं तक चन्द्रमा बढ़ता रहता है ना , ऐसे ही हमारी प्यारी जू का सौन्दर्य पल पल में बढ़ता ही जा रहा है ….हरिप्रिया कहती हैं ….रति का पति कामदेव भी इनको देखेगा तो मूर्छित ही हो जाएगा । ये सुनते ही सखियां उल्लास से भर गयीं थीं ।

ये तो सौन्दर्य के भी सौन्दर्य हैं ..इनकी क्या तुलना कामदेव से, अरे ! इनके एक सौन्दर्य की बिन्दु में कोटि कोटि काम को मूर्छित करने का सामर्थ्य है , ये बात भी हरिप्रिया ही थोड़ी देर में बोली थीं ।

राग ,रंग, नृत्य , उल्लास उमंग के बीच …..हरिप्रिया सबको कहती हैं ये झाँकी दर्शनीय है ….सब इस झाँकी का दर्शन करो ….देखो ! क्या अद्भुत है कि …प्रेम के ये दो देवता ,प्रेम की वेदी में बैठकर, प्रेम के रँग में स्वयं रँगने वाले हैं । इनकी शोभा का इससे ज़्यादा वर्णन किया नही जा सकता …क्यों की वाणी उस सौन्दर्य माधुर्य का कहाँ तक बखान करे !

इतना कहकर हरिप्रिया नाचने लगीं …..सखियाँ नाच ही रहीं थीं ….सखियाँ ही क्यों पूरा निकुँज नाच उठा था ….मोर आदि पक्षी भी अपना अलग रंगमंच बनाकर नृत्य कर रहे थे ।

अब श्रीहरिप्रिया नृत्य करते करते देह सुध भूल गयीं ।

क्रमशः….

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