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July 20, 2025 6:54 pm

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*श्रीकृष्णचरितामृतम्* *!! पनघट पे छेड़ गयो री….!!* *भाग 2* : Niru Ashra

*श्रीकृष्णचरितामृतम्* *!! पनघट पे छेड़ गयो री….!!* *भाग 2* : Niru Ashra

*श्रीकृष्णचरितामृतम्*
*!! पनघट पे छेड़ गयो री….!!*
*भाग 2*
क्या तू मेरी बहन की मटकी भी फोड़ेगा ?     
श्रीदामा नें  छेड़ और दिया  ।
कहाँ हैं  ?    आनन्दित होकर मुड़े  नन्दनन्दन  ।
सामनें से आरही हैं …….बृषभान नन्दिनी साथ में सखियाँ है   ।
हट् श्रीदामा !       वो कूदे  कदम्ब वृक्ष से ……………आगे   आगये  ……और अपनी लकुट  अड़ा दी ……….”.कर”  देनों पड़ेगो  ? 
गम्भीर मुद्रा में  बोले थे  नन्दनन्दन  ।
ये  पनघट तुम्हारा कब से हुआ  ?         ललिता अकड़कर  बोली  ।
क्यों की यहाँ बरसानें वारिन को प्रवेश वर्जित है ……..मात्र नन्दगाँव,  ……कन्हाई भी अड़ गए   ।
बरसानें में भी तो पनघट हैं  वहीँ जाओ    ……ये केवल  नन्दगाँव के,   हम “कृष्ण कन्हैया” ,   और “दाऊ जी के भैया”  का पनघट है ……ये पीछे से ग्वाल सखा सब बोले थे   ।
“कर देनो ही पड़ेगो” ……फिर वही बात कन्हाई ठसक से कह रहे हैं ।
“हए !    बृजरानी  की  बहु बन जाएँ ये बृषभान की लली”……
यही “कर” माँग ले  लाला  ! 
पीछे से  वो प्रभावती सखी  बोली …..श्रीराधा जी तो  शरमा कर वहाँ से चली गयीं ।
पर  ललिता –    अरे सोच विचार के बोलो ……..ये कहाँ माखन चोर !  और वो कहाँ  बरसानें की राजदुलारी ………कोई तुलना ही नही है ।
“तेरो कहा चुराय लियो” ……..ये कहते हुए कन्हाई नें   ललिता की मटकी में एक कंकड़ मारा ……….निशानें पर लगा था  फूट ही गया …..नहा गयी ललिता सखी…….उधर  सखियाँ भी हँस पडीं   ।
“चार दिना है गए हैं  तेनें मेरी मटकी फोड़ी नही है “….पीछे,   पनघट से जल ले जा रही थी ….. ……..बेचारी प्रभावती !
अब मैं बूढी है गयी हूँ  ?       पूछती है  कन्हाई से  ।
“ले आज तेरी मटकी भी  गयी”………एक कंकड़  उठा कर  तक कर मारी प्रभावती की मटकी में भी कन्हैया ने …….इसको यही तो करना है………बाबरी  नाच उठती है जब उसकी मटकी फूटती  है   उफ़ !  चार दिन से  ये दुःखी थी  ।
ये सब लीलाओं का दर्शन जब  तात !    अपनें हृदय में करोगे ना …..तब रस  उछलेगा ……दिव्य   !
उद्धव नें   विदुर जी को कहा  ।
एक गोपी तो  नित्य  चार चार चार घड़े लाती है …….और उसे पता है फूटेंगे…….पर ये गोपियाँ  भी तो यही  चाहती हैं……..मेरे  बड़े भैया यमराज कहते हैं……कि    उसे  तुम जो दोगे ,  देते हो…..वह तुम्हे  वापस  दुगुना करके देता है ।…..मैं  धन्य हूँ   इन लीलाओं का दर्शन करते हुए ।
मैं अब कहीं नही जाऊँगा ……….बृजराज भी जब जब अपनें कोषागार की ओर   जाते हैं  तब मैं भी पीछे से उनकी चरण धूलि को माथे से लगा  लेता हूँ…….मैं शनिदेव बृज का वास पाकर धन्य हो गया हूँ  ।

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