*श्रीकृष्णचरितामृतम्*
*!! “वो भूरी बछिया” – अद्भुत भाग्य पाया इसनें !!*
*भाग 1*
आकाश देवों के विमान से भरा हुआ है आज……..सब दर्शन करनें के इच्छुक हैं कि कब नन्हे नन्दलाल गोदोहन करेंगें ।
स्वर्ग की कामधेनु गाय आज तरस रही है ……..मैं क्यों गोपाल के गोष्ठ की गाय न बनी ……..आहा ! नन्दनन्दन स्वयं दुह रहे हैं , अपनें नन्हे नन्हे करों से …………..
नही कामधेनु ! दुह मात्र नही रहे ………पी रहे हैं ………एक थन को मुँह में लगा लिया है नन्दनन्दन नें ……….कामधेनु इस दृश्य को देखकर दुःखी हो रही है ……..”मैं क्यों नही बनी गोपाल की गाय” ।
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ये मैने दुही है ………ये मेरा दुहा हुआ दूध है …………..
सखा भद्र आज सुबह से ही खूब हल्ला मचा रहा है ……….छोटे से लोटे में दूध क्या दुह लिया …..इसे तो लग रहा है …….मैने बहुत बड़ा काम कर लिया ।
“कन्हैया दुह के दिखाये”……….मनसुख को बोल दिया भद्र नें ।
सो रहे थे कन्हैया ………..सुन लिया ।
उठ गए….आँखों को मला…बिखरी हुयी अलकें, कपोलों पर फैला काला काजल, कछनी का कोई पता नही…डगमग करते हुये बाहर आ गए थे ।
दिखा तो ! तू गाय का दूध दुह लेता है ?
भद्र सखा छोटा है कन्हैया से ।
हाँ ! मैं तो दुह लेता हूँ ……….पर तुम नही दुह पाओगे ।
क्यों ? मैं अभी दुहता हूँ ……..और तुझ से ज्यादा दुह के लाऊँगा ।
गैया पैर मार देगी तो ? भद्र नें डरानें दिया ।
मुझे नही मारती गैया……….चल ! अब ………ऐसा कहते हुये एक बार भीतर गए और सुवर्ण का एक छोटा सा लोटा ले आये ।
चल ………..अब चल ……भद्र भी साथ है …….और मनसुख भी साथ ही है ……………..
गए गोष्ठ में …………..पर वहाँ तो गाय है नही ……………
गाय कहाँ गयी ? इधर उधर देखा कन्हैया नें ।
तुम्हारे लिए गाय बैठी थोड़े ही रहेगी ! वो तो गयी चरनें ।
“पर मुझे तो गाय दुहनी है”……अजीब जिद्द पकड़ के बैठ गए हैं आज ये ।
*क्रमशः….


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