!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 19 !!
“बरसानें की देवी सांचोली”- एक अद्भुत कहानी
भाग 2
पूरक कुम्भक रेचक ………योगी क्या सिद्ध करेगा ………..प्रेमी का सहज सिद्ध होता है …ये प्राणायाम ……..जब प्रेम की उच्च अवस्था में पहुँचता है प्रेमी ……तब साँस की गति, क्या किसी प्राणायाम सिद्ध योगियों की तरह नही होती ? त्राटक, सिद्ध योगी क्या करेगा ……प्रेमी का सहज सिद्ध होता है त्राटक …..प्रेमी की हर इन्द्रियाँ प्रियतम में ही त्राटक करती हैं ………..क्या इस बात में सच्चाई नही है ?
चलो ! आज ही चलते हैं ………कम से कम तुम्हारी देवी के दर्शन तो कर लें …………कृष्ण नें मुस्कुराते हुये श्रीराधा रानी से कहा ।
पर अभी ?
अजी ! चलो ना ! हाथ पकड़े कृष्ण नें श्रीराधा के ….और दौड़ पड़े पर्वत की ओर ………फिर उतर गए नीचे ………..
ओह ! दोनों की साँसे फूल गयीं थीं…………हँसते हुये मन्दिर के द्वार पर ही बैठ गए दोनों ………..साँसों की गति जब सामान्य हुयी …….तब उठे ……..और मन्दिर के भीतर चले गए ।
पर यहाँ देवी कहाँ हैं ? कृष्ण नें उस मन्दिर को देखा ……पर वहाँ कोई विग्रह नही था ………
ये शिला ही सांचोली देवी हैं ……..इन्हीं शिला को हमारे पूर्वज देवी मानकर पूजते आरहे हैं ।
तुम नही आईँ कभी इस मन्दिर में ? श्रीकृष्ण नें पूछा ।
मेरे लिए तो तुम्ही देवी हो ……..और देवता भी तुम हो …….मेरे ईश्वर तुम हो ……मेरे सर्वस्व तुम हो …………इतना कहते हुये कृष्ण को छू रही थीं श्रीराधा । अपनी बाहों में भर लिया था कृष्ण नें अपनी प्राण बल्लभा श्रीराधारानी को ।
अब तो नित्य का नियम ही बन गया इन दोनों सनातन प्रेमियों का… …….सांचोली देवी के मन्दिर में आना …….और प्रेमालाप में मग्न हो जाना ।
पर उस दिन क्या पता था….अमावस्या थी । …….और पूर्णिमा अमावस्या को इन विशेष काल में तो बृषभान जी और कीर्तिरानी अपनी कुलदेवी की पूजा करनें आते ही थे ।
राधे ! मैं तुम्हे देखता हूँ तो ऐसा लगता है ….देखता रहूँ …….युगों तक ….अनन्त काल तक ………
तुम अघा जाओगे प्यारे !
नही राधे ! तुम्हारे रूप की यही तो विशेषता है ……जितना देखूँ लगता है – और देखूँ और देखूँ ……….. नया नया सौन्दर्य प्रकट होता है ……..मैं अपनें आपको भूल जाता हूँ ।
फिर उठकर बैठ गए कृष्ण ………..और श्रीराधा रानी के लटों से खेलते हुए बोले …………कभी कभी मुझे लगता है …….मैं राधा हूँ और तुम कृष्ण ……………श्रीराधा हँसी ………मुझे भी लगता है मैं कृष्ण बन गयी और तुम मेरी राधा ।
कीर्तिरानी !
चलो मन्दिर आगया..........पर पद पक्षालन करके ही मन्दिर में जायेंगें .........बृषभान जी और कीर्तिरानी मन्दिर में आज आपहुँचे थे पूजा अर्चना के लिये । बगल में ही सरोवर था उसमें पद पक्षालन करनें चले गए ।
श्रीराधारानी नें देख लिया ….
मेरे बाबा आगए ! श्रीराधारानी घबडा के उठीं ……..अपनें केशों को सम्भाला ……….अब क्या करें ?
क्रमशः …
शेष चरित्र कल ….
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