!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 21 !!
“कंस जब सखी बना ” – एक अनसुना प्रसंग
भाग 3
तू कौन है री ? कहाँ से आयी है तू ?
बरसानें में जब कंस घूँघट डालकर चलता था ……..तब महिलायें पूछती ही थीं ………….बड़ी पहलवान है ये तो …..कहाँ से आयी है ये ?
अरी ! बता तो दे ! कहाँ से आयी है ? कंस क्या उत्तर दे …….कुछ नही बोलता था वो बेचारा ।
पर अब तो बरसानें में सब छेड़नें लगे ……….बारबार पूछनें लगे ।
तब गौशाला में जाकर रहनें लगा कंस ……और गोबर फेंक कर वहीँ कुछ खा लेता था ……..और वहीँ सो जाता था ।
देवर्षि ! बताइये ना ! हमारे महाराज कंस कहाँ गए ?
1 महीना बीत चुका था ……….मथुरा में खलबली मच गयी ……महाराज कंस कहाँ गए ……..राक्षस परेशान रहनें लगे थे ……….।
तब परम कौतुकी देवर्षि नारद जी पहुँचें मथुरा. ……….बस नारद जी को देखते ही राक्षस तो चरणों में गिर पड़े ……आपका ही सब किया धरा है …..अब आप ही बताइये की हमारे कंस महाराज कहाँ हैं ?
देवर्षि नारद जी नें आँखें बन्द कीं ……….फिर जोर जोर से हँसे ।
इतना हँसे की उनका मुख मण्डल लाल हो गया था ……।
आप हँस रहें हैं ? हमारे प्राण निकले जा रहे हैं …..प्रजा को कौन संभालेगा देवर्षि ? चाणूर मुष्टिक सब नें कहा ।
अच्छा ! अच्छा ! मैं लेकर आता हूँ ……देवर्षि जानें लगे …………तो दो कंस के ये राक्षस भी चल पड़े ………..
“नही तुम नही जाओगे …….मैं ही लेकर आऊंगा ……….तुम लोग बस अपनें महाराज के आनें की प्रतीक्षा करो ……..इतना कहते हुए देवर्षि हँसते हुए चल पड़े थे ।
“जय हो बरसानें के अधिपति बृषभान जी की” !
बृषभान जी की गौशाला में ही पहुँच गए थे देवर्षि नारद ।
ओह ! देवर्षि !
उठकर स्वागत किया ..चरण वन्दन किया देवर्षि का .बृषभान जी नें ।
कैसे पधारे प्रभु ! हाथ जोड़कर पूछा ।
वो आज कल आपकी गौशाला में कोई नई सेविका आयी है …..
ये कहते हुए इधर उधर देखनें लगे थे देवर्षि ।
नही …….हमारे यहाँ कौन आएगा ?
बृषभान जी के संज्ञान में अभी तक ये बात आयी ही नही थी ।
…..एक आई है ……..काली है ….कुरूप है ….और मोटी है ……ये कहते हुये फिर इधर उधर देखनें लगे देवर्षि ।
हाँ ..हाँ ……..एक है …….पर पता नही वो आयी कहाँ से है ?
पहले उसे बुलाइये तो ………..मैं बता दूँगा वो कहाँ से आयी है ।
देवर्षि हँसते हुये बोले ।
देखिये वो रही आपकी मोटी ताज़ी सखी………बृषभान जी नें दिखाया ……..कंस गोबर की परात उठाकर फेंकनें के लिये जा रहा था ।
देवर्षि नें कंस को जैसे ही देखा ………अब तो हँसी और न रुके ।
ए सखी !
इधर आ ! इधर आ ! जोर से चिल्लाये नारद ।
कंस को अब कुछ उम्मीद जागी…….वो खुश हुआ देवर्षि को देखते ही ।
नही तो कंस नें समझ लिया था कि ……….इसी गोबर को फेंकते हुए अब जीवन बिताना पड़ेगा ।
ये पुरुष है बृषभान जी ! देवर्षि नें समझाया ।
क्या ये पुरुष है ? चौंक गए …….पर इसे सखी किसनें बनाया ?
आपकी लाडिली श्रीराधा नें ………..हँसी को रोकते हुए बोले ।
बुलाओ श्रीराधा को …………बृषभान जी को कुछ रोष हुआ ।
कुछ ही देर में अपनी अष्ट सखियों के साथ श्रीराधा रानी वहाँ उपस्थित थीं ………बाबा ! ।
ये क्या है ? ये कौन है ?
ललिता सखी हँसीं ……..ये मोटी सखी है ……….सब सखियाँ हँसी ।
तुम सब हँस रही हो ? ये पुरुष हैं और तुमनें इसे नारी बना दिया ।
पर ये हमारे निकुञ्ज में प्रवेश करके हमारी लीलाओं को देख रहा था !
बड़े मासूमियत से श्रीराधा रानी नें कहा ।
पर ये है कौन ? तुम्हे पता है ? बृषभान जी नें फिर पूछा ।
“हाँ …पता है….ये मथुरा नरेश कंस है”
श्रीराधा रानी नें ही उत्तर दिया ।
क्या ! चौंक गए बृषभान जी ।
क्या ये सच है देवर्षि नारद जी ! बृषभान जी नें देवर्षि से पूछा ।
हाँ …ये सच है ……..देवर्षि नें सहजता में कहा ।
अब जब बृषभान जी नें कंस को देखा …….तब उनके भी भीतर से हँसी फूट रही थी …..पर हँसे नही ……………
चलो ! इनको वापस पुरुष बना दो …………श्रीराधा को आज्ञा दी बृषभान जी नें ।
ठीक है बाबा ! मैं बना तो दूंगी ………पर एक शर्त है ……ये कंस अब इस बरसानें में कभी आएगा नही ………..इस बरसानें की सीमा का अतिक्रमण नही करेगा ………….बोलो ?
बड़ी ठसक से बोलीं थीं बृषभान दुलारी ……।
तुरन्त चरणों में गिर गया कंस ……हे राधिके ! मैं कभी आपके बरसानें में नही आऊंगा …………मैं आपसे सच कहता हूँ ………चरणों में अपनें मस्तक को रख दिया था कंस नें ।
कृपालु की राशि “श्रीजी” नें तुरन्त अपनी सखी ललिता को आज्ञा दी ……और कंस वापस पुरुष देह में आगया ।
देवर्षि मुस्कुराये …….और श्रीराधा रानी के चरणों में प्रणाम करते हुये ………कंस को लेकर मथुरा चले गए थे ।
हे वज्रनाभ ! ये श्रीराधा हैं ………बाहर से देखनें में लगता है कृष्ण लीला कर रहे हैं …….हाँ लीला तो कृष्ण ही करते हैं ….पर उस लीला में जो शक्ति काम कर रही होती है वो ये आल्हादिनी श्रीराधा ही होती हैं ………….ये कृपा की राशि हैं…..।
सहज स्वभाव पर्यो नवल किशोरी जू को,
मृदुता दयालुता कृपालुता की राशि हैं ।
शेष चरित्र कल …..
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