*श्रीकृष्णचरितामृतम्*
*!! वत्सपाल कन्हैया !!*
*भाग 1*
हे भगवन् ! कन्हैया के “वत्स चारण” का मुहूर्त निकाल दीजिये ।
प्रातः ही महर्षि शाण्डिल्य की कुटिया में बृजराज पधारे थे ।
कौन चरायेगा वत्स ? क्या कन्हैया ? महर्षि नें चकित होकर पूछा ।
जी ! कल से हठ पकड़ कर बैठ गया है ……..कुछ खाता पीता भी नही है ……माखन फेंक देता है ……आप जानते ही हैं वो कितना हठी है ।
ऋषि मुस्कुराये……ठीक है …..ये कहते हुये ऊँगली में कुछ गणित बैठानें लगे ……..कल , कल का मुहूर्त उत्तम है ………ऋषि नें कहा ।
पर हुआ क्या ? ऋषि नें बृजराज से रूचि लेकर पूछा ।
तात ! ऋषि शाण्डिल्य भी सुनना चाहते हैं कि नन्दनन्दन नें क्या लीला की अब । उद्धव विदुर जी से बोले ।
बृजराज नें सुनाना आरम्भ किया ऋषि शाण्डिल्य को ।
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“भद्र नें ही चढाया है कन्हैया को” …….बृजरानी आज क्रोधित हैं ।
सुबह से ही रट लगा रहा है गौ चारण करनें जाऊँगा ।
सुनो ! तुम लोग क्या क्या सिखाते रहते हो कन्हैया को !
सखाओं को डाँट रही हैं बृजरानी ।
नही ….मैने नही ! …..फिर मनसुख भद्र की ओर इशारा करके बताता है ।
मैं जानती हूँ तुम सब मिले हुए हो ………..
“मुझे जाना है गौ चरानें”
कन्हैया बस यही कह कह कर रो रहे हैं…..अपनें नन्हे नन्हे चरण पटक रहे हैं ।
सुन ! मेरे लाल ! गैया चरानें बड़े बड़े जाते हैं ।
मैया समझा रही है ………पर ऐसे कैसे मान जाएंगे !
“मैं भी तो बड़ा हो गया हूँ” , फिर अपनी लम्बाई नापनें लगे ।
तू समझता क्यों नही है ……….नुकीली सींगें हैं गैयाओं की ………..उसके खुर कितनें कठोर हैं……..और तू कितना माखन की तरह कोमल ……
ये कहते हुए मैया नें गोद में उठा लिया कन्हैया को ……….और माखन खिलानें लगीं ……क्यों कि अभी तक इसनें कुछ भी नही खाया ।
मैं नही खाऊँगा ! फेंक दिया माखन ……..हटा दिया मैया का हाथ ।
“मैं पिटूँगी तुझे”…….बस इतना ही बोलीं थीं मैया, कि जोर से रोना शुरू ……गोपियाँ सब इकट्ठी हो गयीं थीं ……क्या हुआ , क्या हुआ ?
हमारा कलेजा ही फट जाएगा ऐसा लगा इसका रुदन सुनकर ……….क्या कह रहा है ये बृजरानी ? गोपियों नें पूछना आरम्भ कर दिया था ।
*क्रमशः ….


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