श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! वत्सासुर का उद्धार !!
भाग 2
पर मैं तुझे लाठी नही मार सकता ।
आँसुओं को पोंछते हुये कन्हैया नें कह दिया ।
कन्हैया ! कन्हैया। ! उधर जोर से चिल्लाया सुबल सखा ।
हाँ ……..सब सखाओं के साथ कन्हैया सुबल के पास पहुँचे। ।
देख तो ये बछड़ा ! कितना सुन्दर है ना ? सुबल नें उस बछड़े की पीठ में हाथ फेरते हुए कहा ।
पर सुबल ! ये हमारा बछड़ा नही है…….ये तो किसी और का है !
मनसुख नें आगे बढ़कर बछड़े को देखा ………हाँ ….इसके गले में कन्हैया की पहनाई माला भी नही है……..ये आया कहाँ से ?
सब सखा सोच रहे हैं ………….
तभी कन्हैया नें देखा……..उस बछड़े की आँखों में देखा……सब समझ गए.।…….ये नही समझेंगें तो कौन समझेगा ।
तात ! बात है त्रेता युग की …………..मुर नामक राक्षस का बेटा था प्रमिल, वशिष्ठ जी की गाय नन्दिनी को माँगनें चला था ये …….
उद्धव कहते हैं ……..तात ! विश्वामित्र कहते रह गए “नन्दिनी गाय” मुझे दे दो ……पर वशिष्ठ जी नें दी नही ……..क्यों की ये समस्त कामनाओं की दात्री है , और वशिष्ठ जी को लगा था कि सृष्टी में ब्रह्मा को ललकारनें वाले विश्वामित्र कहीं नन्दिनी गाय का दुरूपयोग न करें । ……..फिर इस असुर को अपनी गाय वशिष्ठ जी कैसे दे देते ।
छल किया इसनें ……….ब्राह्मण का रूप धारण करके माँगनें चला गया वशिष्ठ जी की कुटिया में …………
मुझे नन्दिनी गाय दे दें………इससे मेरा परिवार पल जाएगा और मैं तप साधना निश्चिन्त होकर कर सकूँगा !
वशिष्ठ जी कुछ बोलते उससे पहले ही नन्दिनी गाय बोल पडीं ………तात ! बोलीं नहीं ….सीधे श्राप ही दे दिया ……..
दुष्ट ! तू असुर होकर भी ब्राह्मण का भेष धारण कर रहा है …छल कर रहा है …..तू जा बछड़ा हो जा ।
नन्दिनी गाय के श्राप देते ही , वो तो उसी समय काला बछड़ा हो गया ।
ऋषि वशिष्ठ जी के चरणों में प्रणाम किया ……नेत्रों से अश्रु टप् टप् बह रहे थे…..नन्दिनी गाय को भी प्रणाम किया उस बछड़ा बनें असुर नें ।
जाओ ! गोपाल ही तेरा उद्धार करेंगें ……….वशिष्ठ जी के मुख से निकल गया ………गोपाल ? नन्दिनी नें वशिष्ठ जी की ओर देखा ।
हाँ …..मेरे राघव गोपाल बनकर आयेंगें द्वापर में ….वही इसका उद्धार करेंगे ।
उद्धव कहते हैं ……..तात विदुर जी ! वही बछड़ा बना असुर पृथ्वी में घूमता रहा …….पर द्वापर में इस वत्सासुर को कंस मथुरा में ले आया था……और आज कन्हैया को मारने के लिये कंस नें इसे भेज दिया वृन्दावन. …….इस बात को कन्हैया समझ गए थे ।
कन्हैया उस बछड़े को देख रहे हैं ……….पर ये क्या ! उसनें अपनी लात से कन्हैया को मारने का प्रयास किया …… कन्हैया नें तुरन्त पूँछ समेत उसके पैरों को पकड़ा …….और जोर से घुमानें लगे …….स्वयं भी घूमनें लगे तीव्रता से ।
“ये तो दैत्य है” ……..सब बालक चिल्लाये ।
पर कन्हैया उसे घुमा रहे हैं………….और स्वयं भी विद्युत गति से घूम रहे हैं ।………पर ऐसे कब तक घुमाएगा हमारा कन्हैया ?
सखाओं को कष्ट होनें लगा ……”छोटा है हमारा कन्हैया ” ।
किन्तु कन्हैया नें भी कुछ समय बाद ही उसे घुमाकर दूर फेंक दिया था ………एक विशाल बरगद के पेड़ से वो असुर टकराया और वर्षों पुराना वो पेड़ टूटकर गिर गया – और……….
तात ! वत्सासुर का ये शरीर शान्त हो गया…..उसका उद्धार हो गया ।
वशिष्ठ जी स्वयं आकाश में उपस्थित थे उस समय ..अपनी नन्दिनी गाय के साथ……..उन्होंने नन्दनन्दन के ऊपर पुष्प बरसाते हुये आनन्द से यही कहा था ……
नन्दनन्दन ! आपकी जय हो ! जय हो ! 🌹


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