*श्रीकृष्णचरितामृतम्*
*!! “जब सब सखा कन्हैया बनें” – बकासुर उद्धार !!*
*भाग 1*
प्रेम तो इन बृजवासियों का है……सब कन्हैया से प्रेम करते हैं ।
तात ! गोकुल त्याग कर वृन्दावन आना ये अपनें आप में प्रेम का प्रमाण था इन बृजवासियों का ।
प्रत्येक बृजवासी , चाहे वो बालक हो या वृद्ध , चाहे पशु हों या पक्षी ……..यहाँ तक की बहती हुयी यमुना की धारा भी कन्हैया से प्रेम करती थी ………प्रेम अद्भुत है इस बृज का …..इसीलिये तो नन्दनन्दन यहाँ अवतरित हुये हैं ।
पर आज रात हो गयी है ……….किन्तु बरसानें का ये युवराज अभी तक सोया नही है ………क्यों ?
श्रीदामा भैया ! तुम सोते क्यों नही हो ?
श्रीजी नें बाहर घूमते अपनें भाई श्रीदामा से पूछा था ।
राधा ! क्या बताऊँ ! आज मैनें अपनी आँखों के सामनें जो देखा उससे मैं विचलित हूँ ……..बहुत विचलित ।
पर आज ऐसा हुआ क्या भैया !
बरसानें की वो लाडिली बात जानना चाहती है ।
वो दैत्य था……बछड़ा बनकर आगया था………हम सबनें उसे देखा………काला बछड़ा ।
ओह ! तो डर रहा है बरसानें का युवराज ! अपनें भाई को छेड़ा श्रीजी नें ।
नही …….लाली ! नही …….हमें डर नही लगता………पर झुठ नही बोलूंगा…….हाँ अपनें सखा कन्हैया को लेकर डर अवश्य लगता है ।
काँप गयीं थीं श्रीजी ।
क्या “उनको” कुछ हुआ ?
नहीं, हुआ नही, कन्हैया नें उस दैत्य को घुमाकर मार भी दिया ……..पर अन्य सखा कह रहे थे ………..गोकुल में तो आये दिन आते रहते थे अपनें कन्हैया को मारने के लिये दैत्य ……..जैसे – पूतना आयी थी …..शकटासुर कागासुर ………..और इन सबको राजा कंस ही भेजता है ………..ये लोग कन्हैया को मारना चाहते हैं ………श्रीदामा नें अपनी बहन राधिका को ये सारी बातें बता दीं थीं ।
कुछ होगा तो नही “उनको”………राधिका का हृदय काँप रहा है ।
सोच रहा हूँ क्या किया जाए……..जो भी हो हमारा कन्हैया बचा रहे ………बाकी तो हम रहें या न रहें…….अद्भुत प्रेम से भरे थे ये लोग ।
कुछ देर सोचनें के बाद ……श्रीदामा के मुखमण्डल में एक चमक आगयी थी ………………..हाँ …….ख़ुशी से उछल पड़े थे श्रीदामा ।
क्या हुआ श्रीदामा भैया ? राधिका नें पूछा ।
राजा कंस नें कन्हैया को तो देखा नही है …………वो अपनें दैत्यों को क्या बताता होगा ……….कि पीताम्बरी धारण करता है कन्हैया ……..बाँसुरी खोंस लेता है अपनी फेंट में …………वनमाला गले में रहती है उसके ……और मोर पंख सिर में लगाता है ।
श्रीदामा प्रसन्नता से बोला ……..अगर यही रूप हम सब सखा धारण कर लें ……तो कन्हैया तक राजा कंस के दैत्य पहुँच ही नही पाएंगे ।
छ वर्ष के हैं श्रीदामा …………..सब छोटे छोटे ही तो हैं ……..पर बालक मन को ये उपाय सूझा अपनें सखा की रक्षा के लिये ।
बस ……..”अब नींद आरही है ……..कल सुबह ही मैं सब सखाओं का यही श्रृंगार कराऊंगा …….जो कन्हैया करता है ……फिर तो किसी को कन्हैया तक पहुंचनें ही नही देंगे …………पहले हम से मिलो …..फिर हमारे कन्हैया से …………..ये कहते हुए हँसा श्रीदामा ……….और अपनें महल में चला गया ……..श्रीजी भी अपनें “प्रिय” का स्मरण करती हुयी अपनें महल में जाकर सो गयी थीं ।
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