Manilal Par <editorpar@gmail.com> | 8:20 PM (4 minutes ago) |
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*श्रीकृष्णचरितामृतम्*
*!! “वन भोज” – एक झाँकी !!*
*भाग 2*
नन्दनन्दन तो पहले से तैयार हैं ……………आहा ! मोर पंख है सिर में ……..लकुट है हाथ में ………बाँसुरी है फेंट में …….एक तरफ बाँसुरी फेंट में खोस ली है…….और दूसरी तरफ श्रृंगी …………..पीताम्बरी धारण किये हुये हैं………मोतिन की माला ………माथे में गोरोचन का तिलक……..चरण अत्यन्त कोमल हैं ……पर कुछ लगाना नही है इन चरणों में ……….क्यों की इनकी “भूरी” कहाँ लगाती है पादुका ।
सब चल पड़े आज अतिउत्साह से………..बछिया बछड़े लेकर …आगे आगे ये सब हैं इनके पीछे हैं कन्हैया बलराम, फिर सब सखा हैं ………….क्या रूप है क्या सौन्दर्य है …..क्या छटा है ! देवता गण आनन्दित हैं ऊपर नभ में , ये रूप माधुरी कहाँ मिलेगी ?
वृन्दावन में पहुँचते ही बछिया बछड़े कोमल कोमल दूब चरनें लग गए थे …………इधर ग्वाल सखाओं नें कन्हैया को बिठाया ………सुन्दर पीताम्बरी श्रीदामा नें अपनी उतार कर बिछा दी थी ।
गन्दी हो जायेगी तेरी पीताम्बरी ! कन्हैया नें श्रीदामा को कहा ।
हो जानें दे ना ………कोई बात नही ……तू बैठ इसमें ।
कन्हैया को सखाओं की बात माननी ही पड़ती है …..बैठ गए ।
मनसुख आया हँसता हुआ……….वनों के फूलों की माला इसनें अभी अभी बनाई है ………एक माला में वृन्दावन के सारे पुष्प थे ।
कदम्ब के भी , मोरछली के भी , गुलाब कमल, जूही, सब सब ।
हँसते हुए मनसुख नें ये माला कन्हैया को पहनाई …….
सब सखाओं नें आनन्द से करतल ध्वनि की ।
अब सब सखा कन्हैया को घेर कर बैठ गए हैं………..चारों ओर सखा हैं …मध्य में कन्हैया हैं ।
हँस रहे हैं ………..हँसा रहे हैं सब को ।
अपनी पूँछ तो सम्भाल मनसुख !
कन्हैया नें देखा मनसुख के धोती की लांग निकल गयी थी ।
सब सखा खूब हँसे …….पेट पकड़ पकड़ कर हँस रहे हैं ।
“मुझे भूख लगी है”…….कन्हैया के कहनें की तो देरी थी …………
सब सखाओं नें अपनी अपनी सामग्रियाँ निकालीं ……..
“ये दही भात”……….पहले दही भात ही निकाला एक सखा नें ।
इसे कहाँ रखूँ ? सखा सोच ही रहा था कि कन्हैया नें अपनें छोटे छोटे हाथ आगे कर दिए …………
हथेली में दही भात रख दिया …………..लड्डू है ये , दूसरे सखा नें …….उसी के ऊपर लड्डू डाल दिया ………….कन्हैया नें कहा ……ये तो खट्टा मीठा हो जायेगा ………..तभी तो वन भोज है ये ……तू समझता नही है कन्हैया ……….भद्र झुंझला गया है ।
हाँ …हाँ भद्र ठीक कहता है ………..खट्टा मीठा अच्छा लगेगा ।
कन्हैया को तो उसके सखा जो दें , वही अच्छा लगता है ।
“ये रबड़ी है”……….मनसुख दोंना बनाकर लाया है वन से …..वनों के पत्तों का क्या सुन्दर दोना बना दिया ।
रबड़ी रख दी उसमें ………..
“ये मठरी है”………..मठरी को हाथ में ही ले लिया …………
आहा ! दोनें की संख्या ही पचास से भी ज्यादा हो गए हैं ………..
तुम सब खाओ ……आओ ! कन्हैया नें कहा ।
मनसुख मुँह बनाकर बोला ……तू खा ले …….तेरे खानें से हमारा पेट भर जाएगा………मनसुख कुछ भी कहता है ।
कन्हैया नें भी लिया दही भात और आरोगनें लगे …..हँस रहे हैं ……..दही भात मुँह में लग गया है……….बीच बीच में लड्डू भी खा लेते हैं ……..ओह ! ये क्या …..खाँसी कैसे हुयी कन्हैया को ।
रुक रुक …..अभी मत खाना………ये कहते हुए यमुना जल एक दोनें में भर कर ले आया मनसुख ………यमुना जल पिलाया उसनें ………विचित्र है ये तो ……कन्हैया के पीठ में दो थप्पड़ भी मारा …….फिर बोला …..कन्हैया अब खा …..तुझे खाँसी नही होगी ।
कन्हैया फिर खाने लगे………”नजर मत लगाओ मेरे कन्हैया को”…….
नभ में देखते हुए बोला था मनसुख ….. किसी ओर को नही ……सीधे विधाता ब्रह्मा को देखते हुये बोला था ।
ब
्रह्मा तो थोडा सकपका गए थे .
….ये पृथ्वी का ग्वाला हमें कैसे देख पारहा है …….पर ये सखा तो अनादि है………..ये रहस्य ब्रह्मा नही समझ पा रहे अभी ।
यज्ञभुग् इन की बाल केलि देखकर मुग्ध हैं ।
…… जय जय हो नन्दनन्दन की ।
यही बार बार कह रहे है सब ।
क्रमशः…
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