श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! ब्रह्मा को जब मोह हुआ….!!
भाग 6
“विधि” , ये नाम है ब्रह्मा जी का…..क्यों की यही तो विधान बनाते हैं ।
शास्त्रीय विधि, श्रोत स्मार्त विधि, हर क्रिया का विचार विवेक ……
ये सब ध्यान में रखते हैं ब्रह्मा जी ।
तात ! नन्दनन्दन की लीला का दर्शन करनें आगये थे यहाँ, सृष्टी का कार्य छोड़कर आये थे ……….
देवता सब “जय हो नन्दनन्दन की”…..कहकर जयघोष कर रहे थे ।
हंस में विराजे ब्रह्मा नें भी देखना चाहा कन्हैया को ……..पर उस समय तो इनका “वन भोज” चल रहा था……..और उस वन भोज में कोई विधि नही थी…….न कोई विधान था ।
कन्हैया खा रहे हैं…….ग्वाल सखा अपनें घरों से लाई हुई वस्तुएँ कन्हैया के मुख में दे रहे हैं…….कन्हैया भी खा रहे हैं……..यहाँ तक ब्रह्मा को कोई दिक्कत नही थी…….कन्हैया अपनी जूठन प्रसादी ग्वाल सखाओं को दे रहे हैं……..या उनके मुख में डाल रहे हैं ।
पर ब्रह्मा को दिक्कत यहाँ हुयी कि ……ग्वाल बालों नें अपनें मुख का जूठा जब कन्हैया को देना आरम्भ किया ।
उद्धव कहते हैं – तात विदुर जी ! ब्रह्मा कुछ समझ नही पा रहे हैं ……ये स्वयं कर्म में लिप्त हैं ……..सृष्टि का कार्य कर्म बन्धन ही तो है …..रजोगुण के बिना सृष्टी होगी कैसे ?
पर ये तो त्रिगुणातीत लीला है……..ये तो विधि निषेध से परे की लीला है…….ये प्रेम की लीला है ।
तात ! जब तक आप ईश्वर से विमुख हो ……आपको विधि निषेध की आवश्यकता है ……….पर जो ईश्वर के सदैव सन्मुख है …….जिसका मन बुद्धि चित्त में बस ईश्वर ही समा गया हो …….उसे क्यों पड़ी है विधि निषेध की ? उद्धव नें विदुर जी को बताया ।
आहा ! ये लड्डू कितना बढ़िया है …………मधुमंगल लड्डू खाते हुये प्रसन्न है ……..फिर उसके मन में आता है ……….धत् ! ये लड्डू तो कन्हैया को खिलाना था ……….मुँह से निकाल कर कन्हैया के मुख में दे देता है मधुमंगल ।
“ये मठरी है”……कोई ग्वाल सखा कह रहा है…..कन्हैया कहते हैं – मुझे दे ……..नही दूँगा पहले मैं चखूंगा ………..कहीं नमक या मिर्च ज्यादा तो नही है ! ये कहते हुए वो सखा मठरी को चखता है ………हाँ ……बढ़िया है ……..वो चखा हुआ फिर कन्हैया के मुख में ।
क्रमशः …
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