Explore

Search

November 21, 2024 4:08 pm

लेटेस्ट न्यूज़

श्रीसीतारामशरणम्मम(27-2),”श्रीबलभद्र की रासलीला”भागवत की कहानी – 50, भक्त नरसी मेहता चरित (51) & श्रीमद्भगवद्गीता : नीरु आशरा

श्रीसीतारामशरणम्मम(27-2),”श्रीबलभद्र की रासलीला”भागवत की कहानी – 50, भक्त नरसी मेहता चरित (51) & श्रीमद्भगवद्गीता : नीरु आशरा

🙏🥰 #श्रीसीतारामशरणम्मम 🥰🙏

#मैंजनकनंदिनी…. 2️⃣7️⃣
भाग 2

( #मातासीताकेव्यथाकीआत्मकथा )_
🌱🌻🌺🌹🌱🌻🌺🌹🥀💐

कोहवरहिं आनें कुँवर कुँवरि सुआसिनिन्ह सुख पाइ कै…..
📙( #रामचरितमानस )📙
🙏🙏👇🏼🙏🙏

#मैवैदेही ! ……………._

………कोहवर के द्वार पर पहुँच गए थे हम दोनों …..पर चन्द्रकला और चारुशीला ये सखियाँ द्वार को रोक कर खड़ी हो गयीं …………..

अब जानें भी दो कोहवर में ? मेरे श्रीरघुनन्दन नें सखियों से कहा ।

नेग चाहिये ………..कुँवर ! बिना नेग लिए जानें नही देंगीं ………।

अब सखी ! हम तो सीधे विवाह मण्डप से यहाँ आये हैं ………हमारे पास तो कुछ है नही ……………

तो खड़े रहिये ……………..इतना कहकर चन्द्रकला और चारुशीला मुँह मटकाते हुये द्वार पर ही खड़ी रहीं ……।

अब जानें भी दो ना …………………मेरे पास कुछ नही है ।

मेरे श्रीरघुनन्दन के चरण दूख रहे थे …………….

मुझ से भी रहा नही गया ………..मुझ से माँगों क्या चाहिए नेग में ?

इतना क्या कह दिया मैने !…………अहह ! हमारी बहन को आपकी बड़ी चिन्ता लगनी शुरू हो गयी …………पर आज कुँवर ! हम अपनी बहन की भी नही सुनेगीं ……….हमें तो नेग चाहिए वह भी तुमसे……तभी इस कोहवर में प्रवेश मिलेगा ………बोलो ।

अच्छा ! सालियों ! माँगों। क्या चाहिये ?

मेरे श्रीरघुनन्दन नें हँसते हुए सखियों से कहा ।

आपकी कोई बहन है ? चारुशीला नें पूछा ।

ये क्या प्रश्न हुआ ? मैने आँखों से मना किया अपनी सखियों को …….कोई उल्टा सीधा प्रश्न मत करना ……………।

पर मेरी बातें आज क्यों सुननें लगीं थीं ये सखियाँ ……………

बताइये कुँवर ! आपकी कोई बहन है ?

हाँ है तो ………….मेरे भाई से व्याह करवा दो ……………..

सारी सखियाँ हँस पडीं ……………….।

पर सखी ! मेरी बहन की तो शादी हो गयी …………………

मेरे श्री रघुनन्दन नें कहा ।

ओह ! अच्छा किसके साथ हुयी ? सखी नें फिर पूछा ।

श्रृंगी ऋषि के साथ मेरी बहन शान्ता का विवाह हुआ है ।

चारुशीला जोर से हँसी ……….बाबा जी के अलावा और कोई नही मिला आपको अपनी बहन के लिए ?

श्रीरघुनन्दन चुप हो गए …।

खड़े खड़े बहुत देर हो गई…………………..

तब सारी सखियाँ बोलीं …………..एक काम कर दो …..यही हमारा नेग है …….और हमें कुछ नही चाहिये ।

हाँ हाँ …कहो …….क्या चाहिये तुम्हे नेग में ?

हे कुँवर ! बस एक बार हमारी किशोरी जू के आगे झुक जाओ ।

ये क्या माँग लिया ! मेरे श्रीरघुनन्दन भी कुछ बोलनें की स्थिति में नही रह गए थे …………

क्रमशः ….
शेष चरिञ अगले भाग में……….


💐🥀🌹🌺🌻🌱💐🥀🌹🌺🌱
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥

ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥
💐🥀🌹🌺🌻🌱💐🥀🌹🌺🌱

“श्रीबलभद्र की रासलीला”
भागवत की कहानी – 50


हे कृष्ण ! मुझे बृज वृन्दावन की बहुत याद आरही है , मैं जाना चाहता हूँ , तुम क्या कहते हो ?

आज प्रातः ही श्रीबलभद्र ने अपने छोटे भाई श्रीकृष्ण से ये पूछा था ।

हाँ भैया ! जाना तो मुझे भी था ….किन्तु अभी पाण्डवों की समस्याओं को लेकर मैं जा नही पाऊँगा ….भैया ! आप जाओ …और मेरे प्यारे बृज-वृन्दावन को सम्भालकर आना ।

श्रीबलभद्र जाते हैं बृज ….फिर वहाँ की स्थिति देखते हुए ये श्रीवृन्दावन पहुँचते हैं …..ओह ! बृज तो उजड़ सा गया है ….श्रीबलराम देख रहे हैं …..वृक्ष वृद्ध हो गए हैं ….वो मानों श्रीबलराम जी से पूछते हैं ….हमारा कन्हैया आगया ? लताएँ पूछती हैं ….बलराम ! हमारा कन्हैया आगया ? गौएँ दौड़ कर आती हैं ….और नेत्रों से अश्रु बहाते हुये पूछती हैं ……कन्हैया आएगा ? ग्वाल बाल रोते हुए पूछते हैं …इस ओर न देखने का ही कन्हैया ने प्रण ले लिया है क्या दाऊ ? श्रीबलराम क्या कहें …वो यहाँ की स्थिति को देखकर स्वयं विचलित हो उठे थे । ग्वाल बाल सब श्रीबलभद्र का हाथ पकड़ कर अति आत्मीयता से नन्द महल में ले जाते हैं ….सामने यशोदा मैया हैं ….पूज्य चरण नन्द बाबा हैं ।

दाऊ ! मैया यशोदा ने देखा…. वो तो खुशी से पागल सी हो गयी थी । नन्द बाबा के चरणों में और मैया यशोदा के चरणों में दाऊ ने वन्दन किया ….किन्तु ये पूछते हुये मैया यशोदा दुखी दिखाई दीं …..दाऊ ! तुम लोगों ने मथुरा छोड़ दिया ? हाँ , मैया ! श्रीबलभद्र बोले ।

सुना है सागर किनारे गए हो ? हाँ मैया ! द्वारिका गये हैं । यशोदा जी इतनी भावुक हो उठती हैं कि दाऊ को अपनी गोद में बिठा लेती हैं उनके हृदय से वात्सल्य की धारा बह चली थी । श्री नन्दबाबा द्वारिका के विषय में पूछते हैं …..फिर मैया यशोदा दाऊ को चूमते हुये कहती हैं ….कन्हैया को ब्याह है गयो ? सोलह हजार एक सौ आठ …..मैया तेरी बहु हैं ये ……अब तो तू खूब अपने पाँव दबबायो करियो । मैं तो दब जाऊँगी …..ये कहकर मैया बहुत हंसती हैं ….उनकी हंसी आज खूब गूंजती रही है । अब कुछ देर बाद गोपियाँ यहाँ आजाती हैं …..उन्होंने हंसी की आवाज़ सुनी और वर्षों बाद सुनी तो ये आगयीं । पहले तो श्रीबलभद्र इन्हें श्रीकृष्ण लगे पर बाद में देखने पर ……..घूँघट करके गोपियाँ बैठ जाती हैं …..श्याम सुन्दर कैसे हैं ? भैया ! श्याम सुन्दर को हमारी याद नही आती क्या ? विवाह हुए होंगें ? विवाह की बात सुनकर मैया हंसीं ….बोलीं ….बहुत विवाह कर लिए वो रंगीले ने । अब तो उन्हें सुख मिल रहा होगा ना ! गोपियाँ पूछती हैं । आज्ञाकारी होंगी पत्नियाँ तो ? यही सब पूछते हुए दिन बीत गये ।

अब सन्ध्या होने को आयी तो दाऊ जी निकले श्रीवृन्दावन के भ्रमण में …..उस समय दाऊ जी को पसंद करने वाली , श्रीबलभद्र को विशेष प्रेम करने वाली गोपियाँ मिलीं । शुकदेव कहते हैं ….दो गोपियों का वर्ग है बृज में …….एक वर्ग है ….जो श्रीकृष्ण का है …जो श्रीकृष्ण को ही चाहती हैं और एक वर्ग दाऊ जी का भी है ….इन्होंने जब श्रीबलदाऊ जी को देखा तो बड़ी शरमाई …..दाऊ जी एक सुन्दर से वन में जाकर बैठ गये हैं ……श्रीबलदाऊ को चाहने वाली गोपियाँ वहाँ भी पहुँच गयीं …और मुस्कुराकर श्रीबलभद्र को निहारने लगीं …….दाऊ जी ने उन गोपियों को अपने पास बुलाया और बड़े प्रेम से उनकी कुशल क्षेम पूछी ….वो उत्तर दे रही हैं ….तभी एक वानर उधर से आया और गोपियों को छेड़ता हुआ चला गया ….वो गोपियाँ डर गयीं क्यों कि ये सामान्य वानर नही था …इसका नाम था – द्विविद । बड़ा शक्तिशाली था …..डरती क्यों हो …मैं हूँ ना ? श्रीबलराम जी ने कहा ….तभी उस वानर ने एक विशाल वृक्ष को उखाड़ कर गोपियों की ओर फेंक दिया ….श्रीबलराम जी ने गोपियों को बचा लिया ….लेकिन वानर अपनी उद्दण्डता पर उतर आया था ….डर गयीं गोपियाँ और श्रीबलभद्र के हृदय से लग गयीं ….ये देखकर दाऊ जी को उस वानर पर बड़ा क्रोध आया ….इन अबलाओं को डरा कर ये वीर बन रहा है …सामने के एक विशाल पाषाण उठाकर जैसे ही दाऊ जी ने उस वानर पर मारा वो तो चीखता हुआ धरती पर गिरा और उसके प्राण निकल गए । उसी समय देवों ने आकाश से सुमन वृष्टि करी ….भगवान संकर्षण की जय हो …भगवान श्रीबलभद्र की जय हो …..गोपियों को ये सब बहुत अच्छा लगा वो अब और श्रीबलभद्र के हृदय से लग गयी थीं ।


सुन्दर श्रीवृन्दावन में शीतल मंद सुगंध पवन बह रहा है ….वहाँ के लताओं में खिले पुष्पों की गंध को लेकर समीर बह रही है …..जिससे वातावरण और प्रेमपूर्ण हो गया है ….श्रीबलभद्र ने गोपियों को अपने आलिंगन में लिया था , गोपियाँ मुग्ध हो गयीं ….अपने आपको विस्मृत कर उठीं । उन्हें कुछ भान नही रहा । चन्द्रमा की चाँदनी में श्रीवन और सुन्दर लग रहा था । तभी श्रीबलभद्र को प्यास लगी है….जल आस पास था नही ….यमुना दूर हैं । कुछ सोचकर श्रीबलराम ने यमुना को आग्रह किया कि …..यमुने ! तुम आओ मेरे पास , मुझे प्यास लग रही है । इस तरह आग्रह करने के बाद भी यमुना नही आयीं ….श्रीबलराम जी ने फिर आग्रह किया लेकिन फिर भी नही आयीं तो संकर्षण को क्रोध आगया …उन्होंने नेत्र बन्दकर अपने हल का ध्यान किया ही था कि उनके हाथों में हल प्रकट हो गया था । शुकदेव कहते हैं …..परीक्षित ! उसी हल से यमुना को दाऊ जी ने खींचा ….यमुना अब डरती हुयी दाऊ जी के पास आयीं …..क्षमा माँगी यमुना ने ….बलराम जी ने जल पीया ….यमुना को क्षमा कर दिया था …..फिर इस श्रीवृन्दावन ने दाऊ भैया की रास लीला का पूरा रस लिया ….दाऊ जी अपनी गोपियों के संग पूरी रात नाचते थिरकते रहे । यहाँ शुकदेव कहते हैं …ये गोपियाँ भिन्न थीं ..ये श्रीकृष्ण की गोपियाँ नही थीं । शुकदेव आनंदित होते हुए कहते हैं ….भगवान संकर्षण का वह रास भी अतिदिव्यातिदिव्य था ।
[

Niru Ashra: भक्त नरसी मेहता चरित (51)


कृष्णा गोबिंद गोबिंद गोपाल नन्दलाल,

हम प्रेम नगर की बंजारन,
जप तप और साधन क्या जाने,
हम श्याम के नाम की दीवानी,
व्रत नेम के बंधन क्या जाने,
हम बृज की भोरि गवालनियाँ,
ब्रह्म ज्ञान की उलझन क्या जाने,
ये प्रेम की बातें हैं ऊधो,
कोई क्या समझे कोई क्या जाने,
मेरे और मोहन की बातें या मैं जानू या वो जाने,

मैंने स्याम सुंदर संग प्रीत करी,
जग में बदनाम मैं होय गई,
कोई एक कहे कोई लाख कहे,
जो होनी थी सो तो होय गई,
कोई साँच कहे कोई झूठ कहे,
मैं तो श्याम पिया की होये गई,
मीरा के प्रभू कब रे मिलोगे,
मैं तो दासी तुम्हारी होये गई

कूँवरबाई ने उत्सुकता पूर्वक पूछा – “अच्छा पिताजी ! संग की बात जाने दीजिये । बतलाइयये, मेरी सास, ननद और अन्य कुटुम्बियों के लिए आप चीर किस प्रकार के लाये है ? ” ।

“पुत्री ! तुम तो जानती हो कि तुम्हारा यह कंगाल पिता कुछ भी करने की शक्ति नहीं रखता , जो कुछ करना होगा, वही दीनदयालु करेंगे ।” भक्त राज ने निश्चिन्तता पूर्वक उतर दिया ।

” पिताजी ! कल ही तो सीमन्त का मुहूर्त है और आप साथ में कुछ भी लाये नहीं, फिर भगवान किस प्रकार पहुँचा जायेंगे । वह कहाँ रहते है, यह भी तो निश्चित नहीं ?” अधीर होकर कुँवरबाई ने कहा।

“‘बेटी ! तुम यह क्या कह रही हो? तुम इतना घबड़ा क्यों रही हो ? तुमने तो उन प्रभु की दीनदयालुता प्रत्यक्ष देखी है । तुम्हारे भाई शामलदास के विवाह -कार्य में उन्होने कितना परिश्रम किया था ? तुम्हारी बिदाई स्वयं भगवान ने ही तो की थी । फिर तुम्हारे हृदय में ऐसी शंका क्यों उत्पन्न हुई, उनका निवास तो जङ़ -चेतन, आकाश-पाताल और पृथ्वी में सर्वत्र हैं । अतः तुम निश्चिन्त होकर अपने घर जाओ, भगवान सब कुछ अच्छा ही करेंगे ।” भक्त राज ने कुँवरबाई का समाधान करते हुए कहा।

कुँवरबाई कुछ आश्वस्त होकर अपने घर वापस चली गयी और गृह कार्य में प्रवृत हो गयी । इधर नरसिह मेहता भगवान को नैवेद्य प्रदान करके साधु-मण्डली के साथ श्रीरंगधर मेहता के घर आये । वहाँ जाति भर के लोग एकत्र हुए थे और भोजन की तैयारी हो रही थी । लोग स्नान कर- करके भोजन के लिये बैठ रहे थे ।

नरसि़ंहराम भी स्नान करने बैठे, परंतु जल इतना अधिक गरम था कि उसे स्पर्श करना भी कठिन था । उन्हें क्या पता कि परीक्षा के लिये जान-बूझकर इतना गरम जल दिया गया है । उन्होंने सरलता पूर्वक थोड़ा -सा ठण्डा जल माँगा।

इस पर कुँवरबाई की सास ने परिहास करते हुए कहा-‘आप तो भगवान के प्यारे भक्त है, आकाश से वृष्टि कराकर भगवान से ठण्डा जल ले लीजिए । वहाँ पर जितने नागर उपस्थित थे, सबने व्यंग में एक स्वर से कहा, हाँ, हाँ ठीक तो है, भक्त राज जी के लिये यह कौन बड़ी बात हैं ।

भक्त बङे पेशोपेश में पड़े । सोचा, ‘सब लोग भोजन के लिये तैयार बैठे है, जब तक वृष्टि नहीं होगी तबतक सब लोग बिना भोजन के ही रहेंगे और इधर ये लोग जल भी नहीं देना चाहते । खैर, भगवान की जैसी इच्छा ; इतना सोचकर ‘भक्तराज नरसीराम ने अपनी करताल मँगायी और द्वारिकाधीश का स्मरण करके भगवन यह एक परीक्षा ही है ? और मल्हार राग में भगवान का कीर्तन शुरू कर दिया ।’

श्याम नाम रस पी ले मनवा बून्द बून्द गुणकारी है,
कितने पी कर अम्र हो गए इस रस के बलिहारी है,
श्याम नाम रस पी ले मनवा बून्द बून्द गुणकारी है,

ये अनमोल रसायन है जो पैसो से नहीं दीखता है,
दुनिया के बाजारों में ये ढूंढे से नहीं मिलता है,
प्रेम तराजू तोल के देता सांवरियां व्यपारी है
कितने पी कर अम्र हो गए इस रस के बलिहारी है,

श्याम सुधा का स्वाद निराला पीता किस्मत वाला है
हो जाता पी कर मत वाला ये एसी मधुशाला है
दिन दुनि रात चौगनी बढ़ती रहे खुमारी रे
कितने पी कर अम्र हो गए इस रस के बलिहारी है,

जिसने ये रस पान किया है चमका भगये सितारा है,
जी भर के पीया करो ये तो अमृत की धारा है ,
बिन्नू जो पीते है उनकी शाम प्रभु से यारी है,
कितने पी कर अम्र हो गए इस रस के बलिहारी है,

क्रमशः ………………!

🌼🌻मीरा माधव 🌻🌼


Niru Ashra: श्रीमद्भगवद्गीता

अध्याय 10 : श्रीभगवान् का ऐश्वर्य
💜💜💜💜💜💜💜
श्लोक 10 . 21
💜💜💜💜

आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंश्रुमान् |
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी || २१ ||

आदित्यानाम् – आदित्यों में; अहम् – मैं हूँ; विष्णुः – परमेश्र्वर; ज्योतिषाम् – समस्त ज्योतियों में; रविः – सूर्य; अंशुमान् – किरणमाली, प्रकाशमान; मरीचिः – मरीचि; मरुताम् – मरुतों में; अस्मि – हूँ; नक्षत्राणाम् – तारों में; अहम् – मैं हूँ; शशि – चन्द्रमा |

भावार्थ
💜💜
मैं आदित्यों में विष्णु, प्रकाशों में तेजस्वी सूर्य, मरुतों में मरीचि तथा नक्षत्रों में चन्द्रमा हूँ |

तात्पर्य
💜💜
आदित्य बारह हैं, जिनमें कृष्ण प्रधान हैं | आकाश में टिमटिमाते ज्योतिपुंजों में सूर्य मुख्य है और ब्रह्मसंहिता में तो सूर्य को भगवान् का तेजस्वी नेत्र कहा गया है | अन्तरिक्ष में पचास प्रकार के वायु प्रवहमान हैं, जिनमें से वायु अधिष्ठाता मरीचि कृष्ण का प्रतिनिधि है |
.
नक्षत्रों में रात्रि के समय चन्द्रमा सर्वप्रमुख है, अतः वह कृष्ण का प्रतिनिधि है | इस श्लोक से प्रतीत होता है कि चन्द्रमा एक नक्षत्र है, अतः आकाश में टिमटिमाने वाले तारे भी सूर्यप्रकाश को परिवर्तित करते हैं | वैदिक वाङ्मय में ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत अनेक सूर्यों के सिद्धान्त की स्वीकृति प्राप्त नहीं है | सूर्य एक है और सूर्य के प्रकाश से चन्द्रमा प्रकाशित है, तथा अन्य नक्षत्र भी | चूँकि भगवद्गीता से सूचित होता है कि चन्द्रमा नक्षत्र है, अतः टिमटिमाते तारे सूर्य न होकर चन्द्रमा के सदृश है |


admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग