श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “सर्वरूप कन्हैया”- विधि मोह !!
भाग 9
क्यों ? ब्रह्मा चौंके ……..मेरा लोक और मैं नही जा सकता , क्यों ?
द्वारपालों नें कहा ………नकली हो आप …..ये मुखौटा , चार मुख का मुखौटा लगानें से कोई ब्रह्मा नही हो जाता ……..जाओ जाओ , आप नकली ब्रह्मा हो ……….।
ब्रह्मा चकित हैं ………ब्रह्मा कुछ समझ नही पा रहे हैं कि ये हो क्या रहा है ! मेरे ही लोक में ये मेरे ही द्वारपाल मुझे रोक रहे हैं ।
अपनें आपको शान्त किया ब्रह्मा नें ……फिर द्वारपालों से बोले …….हम अगर नकली ब्रह्मा हैं तो असली ब्रह्मा कहाँ हैं तुम्हारे ?
द्वारपालों नें कहा ……भीतर हैं ……..उनकी ही आज्ञा है कि ……..नकली ब्रह्मा आएंगे तो उन्हे धक्के मारकर निकाल देना ………इसके बाद द्वारपाल ये भी बोले ………..हमें धन्यवाद करो कि हम धक्का नही दे रहे हैं …….नही तो ।
ब्रह्मा कुछ समझ नही पा रहे …..उनकी बुद्धि चकरा रही है ……….
वो वापस लौटे वृन्दावन में …..उन्हें अब लग रहा था कि …..कहीं कन्हैया की ही सब लीला तो नही है ।
हंस में बैठे चल रहे हैं ब्रह्मा वृन्दावन की ओर …………
तो सामनें दिखाई देते हैं कन्हैया , नन्हे कन्हैया …….हँस रहे हैं ……..ब्रह्मा को देखकर ठहाके लगा रहे हैं ………….
रुक गए ब्रह्मदेव……क्यों की कहाँ जाएँ अब….उन्हें तो सर्वत्र वही कन्हैया ही दृष्टिगोचर हो रहे हैं…..ब्रह्मदेव के पसीनें आ गए थे माथे में ।
साँझ हो रही है ……..वृन्दावन से लौट रहे हैं कन्हैया ग्वाल सखाओं के साथ…..बछड़ों को प्रेम से हाँकते हुये आरहे हैं ।
सर्वरूप हैं कन्हैया…….बछड़े भी वही बनें हैं ग्वाल सखा भी वही बनें हैं………घर पर लौटे सब ……उन ग्वालों की माताओं नें हृदय से लगाया अपनें बालकों को …..पर ये क्या उन्हें आज जितना आनन्द आरहा है ……उतना आज तक नही आया था ।
बछड़े गोष्ठ में लौटे हैं ………आज तक गायों को देखकर बछड़े दौड़ पड़ते थे ….दूध पीनें के लिये ……पर आज कुछ अद्भुत हो रहा था ।
बछड़ों को देखते ही गौएं दौड़ पडीं थीं…….उनके थनों से दूध अपनें आप बहनें लगा था…..इतनें प्रेम से चाट रही हैं अपनें वत्सो को गौएँ …. ये कोई एक दिन की बात नही थी……ये एक वर्ष तक चला था ………।
बलराम जी को कुछ सन्देह होनें लगा ………..एक दिन एकान्त में कन्हैया का हाथ पकड़कर दाऊ नें पूछा भी …….क्या लीला चल रही है कन्हैया ? कन्हैया हँसे ……..दाऊ ! बेटा अपनें बाप को बनानें चला था ……….वो ब्रह्मा ये भी समझते नहीं कि …….मैं उनका पिता हूँ ……तो मैं उनसे ज्यादा ही जानता हूँ ………ये कहते हुए हँसे थे कन्हैया ।
दाऊ भी अब प्रसन्न हुए ………मैं सोच ही रहा था कि ……..बछडों को गौएँ इतना प्यार क्यों कर रही हैं ……….अपनें बालकों को माताएँ इतना दुलार क्यों कर रही हैं ?
कुछ सोचकर फिर बोले बलभद्र – असली ग्वाल बाल कहाँ हैं ?
मेरी परीक्षा लेनें के लिये ब्रह्मा नें चुरा लिया है…….ग्वाल बालों को और मेरे बछड़ो को भी……कन्हैया नें गम्भीर होकर कहा ।
अच्छा ! अब सारी बातें दाऊ के समझ में आगयी थीं ।
तात ! ये लीला ऐसे ही नही रची कन्हैया नें ………….
उद्धव नें विदुर जी से कहा ।
वृन्दावन की हर माता जब यशोदा की गोद में कन्हैया को देखतीं तो अपनें भाग्य को कोसती……भाग्यशाली तो ये बृजरानी है ……जो कन्हैया को लाड लड़ाती है ………गोद में खिलाती है ………हे भगवान ! हमें ये सौभाग्य क्यों नही दिया !
तात ! कन्हैया सबकी सुनता है …..फिर इन परमप्रेमी बृजवासियों की नही सुनेगा ? सुनी ….और सब के बालक स्वयं ही कन्हैया बनकर एक वर्ष तक रहे ……ये सौभाग्य सबको प्रदान किया कन्हैया नें ।
सर्वरूप कन्हैया …………ब्रह्मा अब नभ से देख रहे हैं नीचे ……….वो अब शान्त नही हैं उनका हृदय अशान्त हो उठा है …………उनका अहंकार चूर्ण चूर्ण कर दिया है कन्हैया नें ……..ब्रह्मा चकित हैं …..ग्वाल बाल तो मेरे पास हैं ………पर नीचे वृन्दावन में ये कौन हैं …..बछड़े तो मैने चुरा लिए हैं …..फिर ये बछड़े कहाँ से आये ।
ब्रह्मा चकरा गये ………वो कुछ समझ नही पा रहे हैं ।
उद्धव अब आगे बताते हैं ।
क्रमशः …
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