श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! उन दिनों बृज की हर कन्या ब्याही गयी थी… !!
भाग 10
ब्रह्मा नें कन्हैया की परीक्षा लेनी चाही ! कन्हैया की ?
जिनसे स्वयं ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं ..नही नही एक ब्रह्मा नही ….अनन्त अनन्त ब्रह्मा…..तात ! प्रत्येक ब्रह्माण्ड के अलग अलग त्रिदेव हैं ये सब कन्हैया से ही प्रकट होते हैं …….ऐसे कन्हैया की परीक्षा !
नन्दनन्दन के प्राणप्रिय सखाओं को गुफा में छुपा दिया ..मात्र सखाओं को ही क्यों बछड़ों को भी ….और योगमाया से सुला कर छोड़ दिया ।
उस समय स्वयं ही कन्हैया को सब बनना पड़ा ……एक वर्ष तक के लिये ………ग्वाल बाल कन्हैया बनें , बछड़े कन्हैया बनें …….।
अकेला रह गया था उस एक वर्ष के लिये हमारा कन्हैया ……..बिल्कुल अकेला…….क्यों की उन एक वर्ष में कोई नही था कन्हैया के पास ……न उसके सखा , उसके बछड़े न बछिया ……..क्यों की सब स्वयं ही तो बन गए थे ।
एक दिन राधिका नें अपनें भाई श्रीदामा को देखा ……तो वो चौंक गयीं………बिना कुछ बोले चली गयीं थीं अपनें महल में ।
राधे ! ओ राधे ! पहली बार श्रीदामा नें अपनी बहन का नाम लिया था ………पर ये श्रीदामा था कहाँ ……ये तो कन्हैया ही बना था ।
रो गयी थीं उस दिन राधिका ……………कुछ नही बोलीं ।
ललिता सखी नें बहुत पूछनें की कोशिश की ……..पर श्रीजी नें कोई उत्तर नही दिया था ………….।
हाँ…….एक दिन वृन्दावन में कन्हैया के कर पकडे थे राधिका नें ….
उस समय वहाँ सब सखा थे ……….पर इस रहस्य को राधिका नही समझेंगी ?
ये क्या लीला है ? आँखों में आँखें डाल कर पूछ रही थीं ।
सजल नेत्र हो गए थे कन्हैया के उस दिन …………मैं कभी क्षमा नही कर पाउँगा विधाता को हे राधे ! मेरे सखाओं से उसनें मुझे दूर किया है ।
मैं बिल्कुल अकेला अनुभव कर रहा हूँ इस समय ……………मैं ही सब बना हूँ …………मैं ही हूँ ये सब ग्वाल सखा …बछड़े सब ।
समझ गयीं श्रीराधा रानी ………..प्यारे ! अपनें हृदय से लगा लिया था उस लीलाधारी को श्री जी नें ।
विचित्र हैं वो तपस्विनी पौर्णमासी भी ………..आज ढिढ़ोरा पीट दिया पूरे वृन्दावन में …………….आनें वाले 12 वर्षों तक विवाह का कोई मुहूर्त नही है ………है भी तो ऐसा सुन्दर नही है ……………
इन दिनों कुछ ज्यादा ही प्रसन्न हैं ये पौर्णमासी …………ये परमतपस्विनी हैं ………..ये सब कुछ समझती हैं …………
क्रमशः…
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