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July 7, 2025 5:54 am

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श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा संस्थान दुनेठा दमण ने जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा दुनेठा मंदिर से गुंडीचा मंदिर अमर कॉम्प्लेक्स तक किया था यात्रा 27 जुन को शुरु हुई थी, 5 जुलाई तक गुंडीचा मंदिर मे पुजा अर्चना तथा भजन कीर्तन होते रहे यात्रा की शुरुआत से लेकर सभी भक्तजनों ने सहयोग दिया था संस्थान के मुख्या श्रीमति अंजलि नंदा के मार्गदर्शन से सम्पन्न हुआ

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! उन दिनों बृज की हर कन्या ब्याही गयी थी… !!-भाग 11 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! उन दिनों बृज की हर कन्या ब्याही गयी थी… !!-भाग 11 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! उन दिनों बृज की हर कन्या ब्याही गयी थी… !!

भाग 11

इन दिनों कुछ ज्यादा ही प्रसन्न हैं ये पौर्णमासी …………ये परमतपस्विनी हैं ………..ये सब कुछ समझती हैं …………

जिधर इनकी दृष्टि जाती है ……सब तरफ कन्हैया ही कन्हैया ।

ग्वाल सखा कन्हैया …..बछड़े कन्हैया ………ग्वाल सखाओं की पीताम्बरी कन्हैया ……उनकी लकुट कन्हैया ………..बछडों के गले में लटकी घण्टी कन्हैया ।

पौर्णमासी आनन्दित है इन दिनों ……..उसनें ढ़िढोरा और पीट दिया है……वो चाहती है …….सबका ब्याह कन्हैया से ही हो जाए ।

आहा ! इससे बढ़िया संयोग और कहाँ मिलेगा ?

अच्छा ! क्या ये बात सच है ! सब बृजवासी आकर पूछनें लगे पौर्णमासी से …………….

हाँ …….बारह वर्षों तक एक भी मुहूर्त नही है ………..ये अद्भुत मुर्हूत है ……..अपनी अपनी पुत्रियों का ब्याह करा दो ……कुछ दिनों में ही ।

बृजवासी फिर पूछते महर्षि शाण्डिल्य से ……..क्या ये सच है ?

इस रहस्य से ये भी तो अवगत थे ………..तो ऋषि मुस्कुरा जाते …….वो समझ गए हैं ……पौर्णमासी प्रत्येक गोपियों का ब्याह कन्हैया के साथ में ही करवाना चाहती हैं ………..ये आनन्द का प्रसंग था …….जीवन की सफलता थी इन गोपियों के लिये ……..कन्हैया ही वास्तव में इनके भर्ता बन रहे थे ।

हाँ …….पौर्णमासी भला झुठ कह सकती हैं …………..करवा दो ब्याह इसी समय जो जो ग्वाला तुम्हे प्रिय लगे ……..उसके साथ में …….

पर ऋषि ! हमारी बेटी तो अभी छोटी है …………कोई कहता …..

तो पौर्णमासी बीच में ही बोल पड़तीं …..कुछ नही होगा ………बड़ी हो जायेगी तब गौना करवा देना …………अभी ब्याह करवा ही दो ।

उद्धव आनन्दित होकर कह रहे हैं …..तपश्विनी पौर्णमासी इस बात को भी समझ गयीं थीं कि … आनें वाले समय में रास लीला होनें वाली है …..तब क्यों न इन सबको कन्हैया की ही बहुरिया बना दिया जाए ।

और आनन्द का क्षण था वो ………..जब हर वृन्दावन की कन्या ब्याही ………उस समय जिन जिन गोपों के साथ गोपियों का ब्याह हुआ वो सब तो कन्हाई ही थे……….आनन्द छा गया वृन्दावन में ।

पर ऊपर से विधाता ब्रह्मा देख रहे हैं …………उनकी बुद्धि अब काम नही कर रही …….क्यों की कन्हैया नें दूसरी सृष्टि प्रकट कर दी थी ।

तात ! इसे हारना नही आता ….कन्हैया जिद्दी है ………..चाहे कुछ भी हो जाए जीतेगा …..ये कन्हैया है ………भले ही रोकर जीतेगा पर जीतेगा । ……..यहाँ तो साल भर तक इसे अकेले रहना पड़ा …………किन्तु ब्रह्मा को हरा कर ही माना …………ये अपना कन्हैया है …….अपनों का पक्ष पहले लेता है ……….इसे मतलब नही है देवताओं से ….इसे मतलब है अपनें जन से …….अपनें लोगों से ।

क्रमशः ….

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