श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जब ब्रह्मा का मोह भंग हुआ !!
भाग 12
कन्हैया अपनें से भी ज्यादा , प्रिय जनों का ध्यान रखता है ।
वो प्रिय जन, जो सबकुछ मानते हैं कन्हैया को ही ….कैसे ध्यान न रखें उनका अजी ! भक्त प्रिय हैं कन्हैया को ……….तात ! मुझ से स्वयं कन्हैया नें कहा था एक बार ……….मुझे ब्रह्मा इतनें प्रिय नही हैं …..न रूद्र, न मेरी अंगसंगा लक्ष्मी और न स्वयं मैं ……….मुझे तो मेरे प्रेमी जन सबसे ज्यादा प्रिय हैं ………और प्रेमी वह है …..जो स्वर्ग न चाहे ….न वैभव …..यहाँ तक की मुक्ति को भी ठुकरा दे……..वो चाहता है केवल मुझे ।
तात ! ब्रह्मा का अपराध अक्ष्म्य है ………..क्यों की एक वर्ष तक उनके प्रिय ग्वाल सखाओं को ब्रह्मा नें दूर रखा ।
पर आज बुद्धि काम नही कर रही विधाता की ……..उनकी बुद्धि मानों जबाब दे गयी है अब…….गगन से नीचे वृन्दावन की ओर देखा ब्रह्मा नें……….चारों सिर झुकाकर देख रहे थे……….
.ये क्या ?
ग्वाल सखा तो मेरे पास हैं ……..गुफा में छुपाकर आया हूँ उन्हें , फिर यहाँ कैसे ?
ब्रह्मा नें सोचा कहीं ग्वाल बाल गुफा से बाहर तो नही आगये ………..पर ऐसे कैसे आजायेंगे ? हंस को उड़ाया ब्रह्मा नें और गए उसी गुहा में ।
देखा …………पर वहाँ तो सब ग्वाल बाल गहरी नींद में सो रहे हैं …..माया का प्रभाव पूरा है उनके ऊपर ।
ब्रह्मा का चारों मस्तक चकराया ……..यहाँ हैं तो वहाँ कौन है ?
क्रमशः…
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