श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! ब्रह्मा द्वारा नन्दनन्दन की स्तुति – “ब्रह्मस्तुति” !!
भाग 14
हंस में बैठे ब्रह्मा की इतनी भी हिम्मत नही हो रही कि वे कन्हैया से आँखें मिला सकें…….वो आँखें बन्द ही किये रहे कुछ देर…….फिर संम्भलकर हंस से उतरे……और साष्टांग कन्हैया के चरणों में प्रणाम किया उन्होंने…..प्रणाम मात्र नही किया , चरणों में लोट पोट हो गए थे ।
उस समय नन्दनन्दन के पास कोई नही था ………ग्वाल सखाओं को बछड़ों के साथ भेज दिया था ……वे मुरली मनोहर अकेले थे …….कदम्ब के वृक्ष में खड़े थे……..पर ब्रह्मा की ओर एक बार भी नही देखा कन्हैया नें ……..वे वृन्दावन की शोभा देखते रहे …..या कभी मोरों का नृत्य …………पर भूलकर भी ब्रह्मा की ओर तो देखा ही नही ।
ब्रह्मा को कुछ नही सूझ रहा …….वे डर रहे हैं ………..विधाता किससे डर रहा है …..एक 6 वर्ष के कन्हैया से ………..ब्रह्मा को अब कुछ दिखाई नही दे रहा …….बस दिखाई दे रहा है तो वो कन्हैया जो पीताम्बर धारण किये हुए है …..मुरली निनाद कर रहे हैं….और बीच बीच में खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं………….
नौमी ! हे नन्दनन्दन आपके चरणों में मेरा नमस्कार है ।
ब्रह्मा स्तुति कर रहे हैं……..
हे बाल कृष्ण प्रभु ! आप कितने अद्भुत रूप सौन्दर्य से भरे हुए हैं …..आपके हृदय में ये जो गुंजा की माला है कितनी शोभायमान लग रही है………और ये जो पीताम्बरी है ….जो वायु के कारण फहर रही है …….उससे तो हे शोभा सिन्धु ! आपका रूप दिव्यातिदिव्य हो गया है…….और हाँ …..ये आपके द्वारा बज रही बाँसुरी तो समस्त जीवों के ह्रद ताप को दूर करनें में समर्थ लग रही है …..हे पशुपांगज ! आपको मेरा बारम्बार प्रणाम !
ब्रह्मा स्तुति कर रहे हैं……..”.ये आपका प्रेमावतार है ……..प्रेम में भला क्या विधि और क्या निषेध ? मैं भी मूढ़ हूँ……..इस बात के लिये मैं आपकी ही परीक्षा लेनें चल पड़ा…….ऐसे ही जैसे कोई बालक अपनें पिता की परीक्षा लेता हो ।
पर आपको मुझे क्षमा करना ही पड़ेगा ।
क्यों क्षमा करना पड़ेगा ?
गुस्से से मुँह गेंद की तरह फूला हुआ है नन्हे कन्हैया का ।
क्यों की नाथ ! बालक जब अपनी माँ के गर्भ में होता है …..तब वो भी तो अपराध करता है ……अपनी माँ को पैरों से मारता है …….पर माँ कभी इन अपराधो पर ध्यान नही देती……ऐसे ही आप भी मेरे द्वारा किये गए अपराधों को क्षमा करें ।
इन लीलाओं का मुझे दिखाना ये भी आपकी कृपा ही है मेरे प्रति ।
नाथ ! आपकी कृपा तो निरन्तर बरस ही रही है…….इसलिये कृपा की प्रतीक्षा नही करनी …..समीक्षा करनी है ……क्यों की सब कृपा है ।
मूर्ख है ये जीव ………ये सुख को तो कृपा समझता है …पर दुःख को कृपा नही मानता …….. वो ये नही सोचता कि …….दुःख तो परमकृपा है आपकी ……इस दुःख से ही तो जन्मांतरों के पाप ताप हमारे नष्ट होते हैं …….तब प्रेम के पुष्प खिलते हैं…….ब्रह्मा जी स्तुति कर रहे है ।
जाओ हम तुमसे नही बोल रहे ……..नन्दनन्दन नें मुँह फुला कर कहा ।
क्रमशः …
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