श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! आज कन्हैया बनें हैं “गोपाल” !!
भाग 1
उद्धव, कालिन्दी के तट पर श्रीकृष्ण की दिव्यातिदिव्य लीलाओं को गा रहे हैं ………और गाते गाते ये देहातीत हो उठते हैं ……..श्रोता विदुर जी हैं जो मन्त्रमुग्ध होकर अपनें आराध्य की लीलाओं को सुन रहे हैं ।
तात ! कैलाश में गणपति गणेश आज बहुत प्रसन्न हैं ……..प्रसन्नता चरम पर है उनकी ……..वो नाच भी रहे हैं ……..उनका वो बड़ा उदर हिल रहा है ……….जिससे उनकी शोभा ही विलक्षण हो उठी है ।
वत्स ! तुम आज बड़े प्रसन्न हो ……? भगवती उमा नें अपनें लाडले पुत्र गणेश से पूछा था ।
माँ ! हाँ आज मैं बहुत प्रसन्न हूँ ……….क्यों की श्रीकृष्णचन्द्र जू का कल गौचारण होनें जा रहा है ……….वो गोपाल बनेगे माँ !
मेरे पिता का नाम और श्रीकृष्णचन्द्र जू का नाम फिर एक ही हो जाएगा ………खिलखिलाते हुये गणेश नें अपनी माँ से कहा था ।
कैसे ? भगवती उमा नें पूछा ।
पशुपति और गोपाल , इन दो नामों में माँ ! आपको समानता नही दिखती ? गणेश नें अब गम्भीरता से कहा ।
पशुपति यानि जो पशुओं का पति है ….और गोपाल यानि गो का पालक …..रक्षक ……..दोनों का अर्थ एक ही है ना !
गणेश नें अपनी माँ को आगे ये भी बताया ……….
मेरे पिता जी तो जब से श्रीकृष्ण चन्द्र जू का प्राकट्य हुआ है बृज में तब से वहीँ हैं …………..पर माँ ! मैं ?
हाँ …….मेरा एक अंश श्रीकृष्णचन्द्र जू की मण्डली में है ………वो मनसुख मेरा ही अंश है …………उसका पेट इसलिये मेरी तरह ही है ……वो भी मोदक खूब खाता है ………..और हँसता रहता है मेरी तरह ……ये कहकर गणेश खूब हँसें ।
उनकी माँ मेरे पिता जी की ही परम भक्ता थीं ……….और उनका जो पुत्र हुआ मनसुख ……….मैने अपना अंश उस मनसुख में स्थापित कर दिया था …………..क्यों की मैं भी श्रीकृष्ण चन्द्र जू का सान्निध्य पाना चाहता था …………अब सुना है मैने कि श्रीकृष्ण जू की बाँसुरी भी मेरे पिता जी ही बन रहे हैं ……………….
पर माँ! मैं उस समय दुःखी हो जाता हूँ……….मैं सबके संकट हरने वाला , मैं सबके विघ्नों को दूर करनें वाला ……किन्तु मैया बृजरानी और बाबा बृजराज जब दुःखी हो जाते हैं ………..तब मैं उनका संकट दूर नही कर पाता ……..क्यों की उनका संकट तो श्रीकृष्ण चन्द्र जू की अपनी मोहनी मुस्कान के द्वारा ही दूर होगी ……वहाँ मेरी नही चलती ।
चलती तो मेरी पूरे बृज में ही नही है ……………वहाँ मेरी चलेगी ?
वहाँ तो केवल केवल श्रीकृष्ण चन्द्र जू की कृपा की वयार ही चलती है …वाकी हम जैसे देवताओं की वहाँ क्या चले ?
फिर एकाएक खिलखिलाकर गणेश हँसे …………..विधाता ब्रह्मा जी की क्या दशा की है ये मुझ सब पता है माँ ! वो श्रीकृष्ण हैं ………समस्त तेज उन्हीं से प्रकट है ………हम सबमें भी जो तेज शक्ति है वो भी उन्हीं की देन है …………….वही सबकुछ हैं …..ये कहते हुए गणपति आनन्दित हो रहे थे ।
माँ ! कल श्रीकृष्ण जू गौचरण करनें वाले हैं …………….और उसमें प्रथम पूजन मेरा ही होगा …….और वो पूजन श्रीकृष्ण चन्द्र अपनें कोमल करों से करेंगें …………आहा ! मैं धन्य हो जाऊँगा !
माँ !
और एकाएक आनन्दित होकर उछलते हुए अपनी माँ उमा भगवती के गोद में बैठ गए थे गणपति गणेश ।
जिद्द की ……..बहुत जिद्द की कन्हैया नें ………..कि अब हम गौचारण करनें जायेंगे ……….बाबा नन्द जी नें मना किया ……पर ये कहाँ माननें वाले थे ।………गौएँ मेरी बात मानती हैं ……..बाबा ! बृषभों को अगर मैं कह दूँ तो लड़ाई भी नही करते …….और मेरे पास बाँसुरी भी तो है ना ! उसको बजाते ही सारी गौएँ दौडी चली आती हैं ……..।
कन्हैया नें अपनें बाबा से ये बातें कही थीं ………….बाबा को ये सब पता है ………..वो अब कोई और बहाना बना नही सकते ………।
बृजराज ! तभी आचार्य गर्ग वहाँ पर पधारे , साथ में महर्षि शाण्डिल्य को भी लेकर आये थे ।
आचार्य ! चरणों में साष्टांग प्रणाम करनें लगे थे बृजराज ।
चलो प्रणाम करो !
यही हैं वे पूज्य जिन्होनें तुम्हारा नामकरण किया था !
कन्हैया गए और चरणों में जैसे ही झुके…….आचार्य गर्ग नें उठालिया ……….ऋषि हैं ……..पर कन्हैया को देखकर सब अपनी मर्यादा भूल जाते हैं ………कपोल में चूम लिया था ।
क्रमशः …
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