श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! गौचारण प्रसंग – “गोपी प्रेम” !!
भाग 1
वो “रजनी” आज प्रातः से ही छटपटा रही थी ……पास के गाँव से ब्याही थी ……..बहु थी नन्दगाँव की ।
कन्हैया की बातें खूब सुनती रहती………”प्रातः गौचारण करनें जाते हैं ………अब तो जा चुके………कोई बात नही सायंकाल तो आएंगे” ….प्रतीक्षा में बैठी है……..पर साँझ होनें में भी तो देर हो रही है ।
चलिये साँझ भी हो गयी………..छज्जे में सब चढ़ गए हैं …….पूरा नन्दगाँव देख रहा है नन्दनन्दन को ।
वो रजनी भी दौड़ी दौड़ी गयी छज्जे पर …………आनन्दित होकर- अपनें आपको सम्भाल कर ……हृदय की धड़कनों को काबू में रखकर देख रही है नीचे ……….आहा ! आगये वे गौचारण करके ………श्याम रंग धूल से धूसरित हो गया है ……….पर ये तो और सुन्दर लग रहे हैं …..केश, वो घुँघराले केश बिखरे हुए हैं …….मुखमण्डल पर मुस्कान है …..फेंट में बाँसुरी……….वो बाँसुरी रजनी को देखकर फेंट से निकाल ली है …….उफ़ ! छुप जाती है रजनी ………..उसके हिय की धड़कन बढ़ गयी है………वो फिर हिम्मत करके नीचे देखती है ……पर ये क्या ! कन्हैया तो सबको छोड़कर रजनी की ओर ही बढ़ रहे हैं…….और मुस्कुराते हुए बढ़ रहे हैं ………रजनी का हृदय धक्क करके रुक रहा है………उसकी घबराहट और आनन्द बढ़ता ही जा रहा है ।
ओह ! ये क्या दोनों बाहों को फैला दिया है नीचे कन्हैया नें ……..और इशारा करके बोले ……”.कूदो, मैं बाहों में लेता हूँ”……रजनी कूद भी जाती ……रजनी कूदनें के लिए तैयार ही थी कि ………”सत्यनाश हो तेरा” ……..पीछे से सास आगयी थी और चोटी पकड़ कर खींच लिया था भीतर ।
बेचारी रजनी ………नींद खुल गयी उसकी …..सुबह के 4 बज गए हैं ।
ओह ! सपना था ये …….और सपना उसे कहते हैं जो सच्चाई से बहुत दूर हो ……..ये सोचकर कुछ देर आह भरती रही बिस्तर में ही रजनी ……..फिर क्या करे ! स्नान किया…….तैयार हुयी …….कलेवा सबके लिये बनाया ……पर सास तो सोलह श्रृंगार करके बाहर छज्जे में बैठ गयी है ।
*क्रमशः…
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