श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! गौचारण प्रसंग – “गोपी प्रेम” !! Part 2 : Niru Ashra
भाग 2
रजनी का पति तो गाय चरानें के लिये जाता ही था साथ में कन्हैया के ।
समय हुआ ………..प्रातः की वेला ……..कन्हैया अब गौचारण करनें के लिये वृन्दावन जा रहे हैं ……….कमरे में बन्द कर दिया था सास नें रजनी को ………और स्वयं सज धज के ………..
देखती रही सास …….उस रूप सुधा को अपनें नयनों के दोनों में भर कर पीती रही…….जब चले गए तब आह भरती हुयी आई आँगन में ।
क्या सुन्दर रूप धारण किया था नटखट नें …………सास आगे कुछ कहती कि ….रजनी बोल पड़ी ……”कल तो पीताम्बरी पहनी थी ….और मोर का पंख भी टेढ़ा ……और मुझे कह रहे थे ….कूदो ….मैं तुझे बाहों में भर लूँगा “……..रजनी ये कहते हुये भूल गयी कि ….सास के सामनें ऐसी बातें ।
हाय हाय ! मैने कितना सम्भालना चाहा इसे …..पर ये आखिर बिगड़ ही गयी ….देख लिया उस नटखट को इसनें ……..खानदान का भी असर होता है ………परपुरुष को देखकर कैसे खुश हो रही है……..देखो !
अजीब बिडम्बना है …….स्वयं देखो, तो कुछ नही ….और बहु नें देख लिया तो बिगड़ गयी ………हँसे उद्धव ये कहते हुए ।
रजनी को अब आदत पड़ गयी है ये सब सुननें की ……उसे कोई फरक नही पड़ता …….सास कुछ भी बोलती रहती है ……ये उसे पता है ।
शाम होनें को आयी………..अब गौचारण से लौटेंगे कन्हैया ……….
सास स्वयं तो कन्हैया को निहारना चाहती है ………पर बहु रजनी को निहारनें का अधिकार उसनें नही दिया है ।
आज घबराहट बढ़ रही है सास की ………..उसे लग रहा है ……मैं तो देखूंगी कन्हैया को …..पर रजनी को देखनें नही दूंगी ।
इसे कहाँ बैठाऊँ ………कमरे में ? सास फिर कहती है नही ….खिड़की से देख लेंगी कन्हैया को …………कहाँ छूपाउँ इसे …….
सोचते सोचते कन्हैया आगये………….सास बाहर खड़ी है ……….उसके पास रजनी है ……….आज इतनी जल्दी कैसे आगया नटखट !……..अब क्या करे वो सास ……….उसनें तुरन्त बहु रजनी का मुँह अपनी और मोड़ा ……और स्वयं निहारनें लगी कन्हैया को ……।
रजनी नें भी कोशिश नही की मुड़कर नन्दनन्दन को देखनें की ……..क्यों की उसे दिखाई दे रहे थे ……….सास कन्हैया को देख रही थी …..और सास की आँखों में रजनी अपनें प्रियतम को निहार रही थी ।
पर प्रेम में स्व का भान कहाँ रहता है ………..बोल पड़ी एकाएक रजनी ……माँ ! आपकी आँखों में तो कन्हैया और सुन्दर लग रहा है ………
योजना असफल हो गयी थी सास की………अपलक वो रजनी अपनी सास की आँखों में देखती रही ………..सास नें एक बार सोचा कि अपनें पलकों को बन्द कर लूँ .ताकि उसकी बहु कन्हैया को देख न सके……..पर ये वो कर न सकी …..क्यों की सामनें से वो अद्भुत सौन्दर्य सागर नन्दनन्दन आरहे थे ।
रजनी के नेत्रों में अब मात्र नन्दनन्दन ही थे …………वो प्रेम में डूब गयी थी …….उसे अब कुछ भी होश नही था ………इतना भी होश नही – वो अब अपनी सास को ही आलिंगन करनें लग गयी थी ।
उफ़ ! ये गोपियों का प्रेम ! उद्धव नें विदुर जी को कहा 🙏
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