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August 1, 2025 12:03 pm

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अनुचिंता-9(आत्मा की यात्रा ) By Anjali Nanda,(Anjali R Padhi) President Shree Jagannath Mandir Seva Sansthan (SJMSS),Daman

अनुचिंता-9(आत्मा की यात्रा ) By Anjali Nanda,(Anjali R Padhi) President Shree Jagannath Mandir Seva Sansthan (SJMSS),Daman

आत्मा स्वभाव से ही उर्ध्वगामी है I जैसे जैसे कर्मों की निर्जरा होती है, तव आत्मा आध्यात्मिक प्रगति करता है।, यदि कोई अन्य दखल नहीं है, तो मोक्ष की ओर आगे बढ़ ता है। आत्मा पर कर्मों के आवरण होते है, उसे जीव कहा जाता है। इसी सफ़र के दौरान जीव विकास की कई अवस्थाओं से निकलता है I
आत्मा की मुक्ति की यात्रा इतनी आसान नहीं है। स्वाभाविक रूप से अलग-अलग योनिओं से निकलना पड़ता है। इस संसार से मुक्ति के लिए आत्मा की प्रगति के तीन विभाग है।
१. निगोद आत्मा । इस अवस्था में, आत्मा न तो बिगड़ा है और न ही उसका नाश हो सकता हैं। आत्मा तो है लेकिन पूर्ण रूप से आवरण से ढका हुआ है। इसीलिए, आत्मप्रकाश की एक भी किरण बाहर नहीं आ पाती। ऐसा जीवन कि जिसकी कोई पहचान नहीं, वो संसार में प्रवेश करने की प्रतीक्षा कर रहा है। जीव का सांसारिक चक्र में प्रवेश करने से पहले, एक ऐसी अवस्था होती है, जिसमे आत्मा पर पूर्ण रूप से आवरण हैं।
२. जब इस दुनिया में से एक आत्मा मोक्ष प्राप्त करता है, तब निगोद में से एक आत्मा सांसारिक चक्र वह जीवन में प्रवेश करता है। जिसकी एक सांसारिक पहचान है। जब निगोद के आत्मा के ऊपर से सिर्फ, थोडा सा आवरण हटता है और थोड़ा सा प्रकाश निकलता हैं। वही से एक इन्द्रिय विकसित होती है। इसके साथ, एक विशेष जीव इस दुनिया में अपनी यात्रा शुरू करता है, और धीरे-धीरे एक से दो, तीन, चार और पांच इन्द्रिय तक विकसित होता है और फिर मनुष्यगति में आता है जहां उसका मन, बुद्धि, अहंकार विकसित होता है। जैसे-जैसे जीव स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं, आत्मा पर का आवरण कम हो जाता है। इन्हीं मन, बुद्धि और अहंकार से नए कारण उत्पन्न के आधार पर जीवों का पुनर्जन्म देवगति, मनुष्यगति, तिर्यंचगति या नर्कगति में होता है। प्रत्येक जन्म में जीव को पूर्व में किये गये कारणों का परिणाम भुगतना पड़ता है। अंत में, जब आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो जाता है, तब सांसारिक प्रगति रुक जाती है; नए कर्म चार्ज होना बंद हो देते हैं। जब सभी पुराने कर्म बिना किसी दखल से डिस्चार्ज हो जाते हैं, तब व्यक्ति सम्पूर्ण मोक्ष को प्राप्त करता है!
३. आत्मा की अंतिम मुक्ति (मोक्ष)। जो इस संसार से मुक्त हो गया है, वे इस संसार में वापस नहीं आते हैं। वे सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त हैं।
इस दुनिया में छह अविनाशी तत्व हैं; जो शाश्वत हैं। जब ये तत्व एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं तब यह अपनी अवस्था में स्वतः ही आ जाते है। आत्मा की यात्रा का संचालन करते है I

इन छह तत्वों में से एक तत्त्व आत्मा है। आत्मा केवल ज्ञान के सिवाय और कुछ नहीं है! अन्य तत्व भी शक्तिशाली हैं (उनके संबंधित गुणोंधर्म के संदर्भ में), लेकिन उन्हें कोई ज्ञान या समझ (गुण) नहीं है। जब जड़तत्व और आत्म-तत्व एक साथ आते हैं, तब आत्मा की विभिन्न अवस्थाएँ अपने आप ही हो जाती हैं।
जैसे जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक दूसरे के चारों ओर परिक्रमा लगाते हैं, तब हम चंद्रमा के जो अवस्थाएं देख सकते हैं – जैसे चंद्रमा का पहला दिन, चंद्रमा का दूसरा दिन, चंद्रमा का तीसरा दिन इत्यादि फिर पूर्ण चाँद, पूर्णिमा। हालांकि, आत्मा क्षणिक नहीं है।
हम एक शुद्ध आत्मा हैं। हालाकि, आत्मा को देखा नहीं जा सकता। जो हम देखते हैं वह एक अवस्था है। आत्मा की अज्ञानता के कारण हम सोचते हैं की, “मैं यह अवस्था (मनुष्य) हूं, मैं जॉन हूं, मैं एक भाई हूं, मैं एक डॉक्टर हूं, इत्यादि ।” असंख्य ऐसी गलत मान्यताओं के आधार पर सांसारिक व्यवहार शुरू होता है । “मैंने यह किया” की एक और गलत मान्यता के वजह
जब कोहरा छा जाता है, दिखना बंद हो जाता है। ऐसे ही इस आत्मा पर संयोगरूपी कोहरा छाया हुआ है, यानी कि इतने सारे संयोग खड़े हो जाते हैं। और ये अनंत प्रकार की परतें तो उस कोहरे से भी ज़्यादा हैं। ये इतने अधिक भयंकर आवरण हैं कि उसे भान ही नहीं होने देते। बाकी, आत्मा आया भी नहीं है और गया भी नहीं है। आत्मा खुद ही परमात्मा है! लेकिन भान ही नहीं होने देता, यह भी आश्चर्य है न! और यह ‘ज्ञानी’ ने देखा है, जो मुक्त हो चुके हैं उन्होंने देख
उसे किसीने नहीं बनाया। बनाया होता न तो उसका नाश हो जाता। आत्मा निरंतर रहनेवाली वस्तु है, वह सनातन तत्व है। उसकी बिगिनिंग हुई ही नहीं। उसे कोई बनानेवाला है ही नहीं। बनानेवाला होता तब तो बनानेवाले का भी नाश हो जाता और बननेवाले का भी नाश हो जाता।
इस जगत् में छह तत्व हैं, वे तत्व निरंतर परिवर्तित होते ही रहते हैं और परिवर्तन के कारण ये सभी अवस्थाएँ दिखती हैं। अवस्थाओं को लोग ऐसा समझते हैं कि, ‘यह मेरा स्वरूप है।’ ये अवस्थाएँ विनाशी हैं और तत्व अविनाशी है। यानी आत्मा को उत्पन्न होने का रहता ही नहीं।
आत्मा मोक्ष स्वरूप ही है, लेकिन इस पर ये दूसरे तत्वों का दबाव छूटेगा तो मोक्ष हो जाएगा, और खुद मोक्ष स्वरूप ही है।
आत्मा के पास अनंत ज्ञान है, लेकिन वह हमेशा कर्मों से ढका हुआ है। जब कोई अज्ञानता की कोई परत (विभिन्न मिथ्या मान्यताओं ) टूटती है, तब उतना ही आत्मा का ज्ञान (सांसारिक जीवन में) प्रकट होता है !

आत्मा सभी काल (भूतकाल, वर्तमान और भविष्य) में अपनी शुद्ध अवस्था में है। परंतु आवरण के कारण, उसकी वास्तिविकता हमारी दृष्टि की पहुंच से बाहर है। एक बार आपकी दृष्टि में आ जाने पर वह दृष्टि शुद्ध हो जाती है और फिर कभी अशुद्ध नहीं होती। तथापि, हर जन्म और हर काल में उत्पन्न होने वाली अवस्थाओं में आत्मा ने हमेशा अपनी वीतरागता और पवित्रता बनाए रखी है। अभी भी हमारा आत्मा शुद्ध है। हर एक का आत्मा शुद्ध ही है, परन्तु यह बाह्यरूप (अवस्था) खड़ा हो गया है, जिसके कारण, आत्मा की यात्रा में कई तरह की अवस्थाओं का समावेश होता है, लेकिन एक तत्व के रूप में आत्मा शुद्ध ही है।

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