दैवस्य मस्तकं कुर्यात्कुसुमोपहितं सदा ।
अर्थात् देवता का मस्तक सदैव पुष्प से सुशोभित रहना चाहिए।
पुष्पैर्देवां प्रसीदन्ति पुष्पैः देवाश्च संस्थिताः न रत्नैर्न सुवर्णेन न वित्तेन च भूरिणा
तथा प्रसादमायाति यथा पुष्पैर्जनार्दन।
-विष्णुनारदीय व धर्मोत्तर पुराण
अर्थात् देवता रत्न, सुवर्ण, भूरि द्रव्य, व्रत तपस्या एवं अन्य किसी भी साधनों से उतना प्रसन्न नहीं होते, जितना कि पुष्प चढ़ाने से होते हैं। पुण्य संवर्धनाच्चापि पापौधपरिहारतः । पुष्कलार्थप्रदानार्थं पुष्पमित्यभियीयते ॥
-कुलाणवतंत्र
अर्थात् पुण्य को बढ़ाने, पापों को भगाने और श्रेष्ठ फल को प्रदान करने के कारण यह पुष्प को चढ़ाया जाता है।


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