श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! गोप गोपी कौ सम्वाद – “गौचारण प्रसंग” !! भाग 1
गौचारण करते करते थक गए आज कन्हैया ……..तो कदम्ब वृक्ष के नीचे सो गए …….. सखाओं नें देखा कि आज अपना लाला थक गया है ……तो उसे बिना जगाये गौओं को देखनें के लिये निकल गए थे ।
पास में था मनसुख ………सखाओं नें उसे वहीं कन्हैया के पास ही छोड़ दिया था ……ताकि उसकी नींद में कोई विघ्न न डाल सके ।
पर उसी समय कोई गोपी गा रही थी……….यमुना पास में ही थीं …..जल भरनें आगयी थी ये …….मनसुख नें जब ध्यान से देखा तो समझ गए, बरसानें की है …..और श्रीराधा की प्रिय सखी ललिता है ।
“जय राधे जय राधे राधे जय राधे जय श्रीराधे”
ललिता यही गाये जा रही है …………मनसुख नें सुना …….एक बार , दो बार पर बारबार यही – जय राधे जय राधे राधे …………
“जय कृष्ण जय कृष्ण कृष्ण जय कृष्ण जय श्रीकृष्ण”
मनसुख ललिता के पास में चला गया……और चिल्लाकर गानें लगा ।
झुंझला गयी ललिता सखी …………..
ललिता – अरे मनसुख ! तू क्यों बेकार में हल्ला करे है ?
वा कारे कनुवाँ कौ नाम मत ले, अगर तोहे भजन ही करनौ है तो हमारी राजदुलारी बृषभान की प्यारी राजराजेश्वरी श्रीराधारानी को नाम ले ।
मनसुख – अरी बरसानें वारी ! साक्षात् श्रीकृष्ण परमात्मा हैं …..अखिल ब्रह्माण्ड नायक हैं ……जा बृज में लीला करबे के ताईं अवतार लियो है , वाकूँ तू “कारो” कहे है …….मोहे तो लगे तेरी मति बौराय गयी है ।
ललिता – तू तो ग्वारिया है ……सुन ! तू हमारी प्यारी किशोरी जू के स्वरूप कुँ कहा जान सके ? बस माखन खानों और तान दुपट्टा सो जानों याके सिवाय तोहे आवे कहा है ? अपनें परमात्मा ते पूछ के देखियो …….हमारी किशोरी जू के पीछे पीछे डोले …..चाहें तेरो सखा पूरन ब्रह्म ही चौं न होय ……पर हमारी श्रीराधा रानी कुँ देखे बिना वाहे चैन नाँय परे ।
और कहा कह रो मनसुख ! कारो काहे कुँ कहें हैं हम ? अरे ! कारे ते कारो ही कहिंगी ……….गोरी तो हमारी किशोरी जू हैं ………और हाँ सुन ! कारे रंग कुँ देख के सब डरप ही जावें ।
( ललिता खूब जोर से हँसती हैं और कहती हैं )
कारो रंग अशुभ सूचक भी है ………..पर उज्वल रंग तो हमारी श्रीजी को है …..या लिये “भोजन भट्ट”! तू हमारी श्रीराधारानी को ही नाम लियो कर …..समझे ?
मनसुख – अरी गाम की गूजरी ! तू पढ़ी लिखी तो है नाँय, तोहे कहा पतो कि रंग तो कारो ही श्रेष्ठ होय है …….तोहे पतो है हमारे कन्हैया कुँ कारो ही रंग प्रिय क्यों है ? सुन –
( मनसुख आनन्दित होकर बता रहा है )
कारे रंग में कोई और रंग चढ़े नही है…..हाँ कारो रंग सब रंगन पे चढ़ जाए ….पर कारे में कोई रंग नही……( मनसुख हँस रहा है ये कहते हुए )
कारे रंग में सखी ! कोई जादू टोना मन्त्र तन्त्र को प्रभाव नायँ पड़े ….याते कारो रंग ही श्रेष्ठ है ……….और सुन ….गोरे रंग पे कारो तिल अगर लग जाए तो सुन्दरता बढ़ जावे……..पर काले रंग पे सफेद तिल अगर आजावे तो वाकुं सफेद रोग कहें हैं ……..समझीं ! याते मैं कहूँ कि सर्वश्रेष्ठ तो कारो ही रंग है ।
ललिता – अरे मनसुख ! तू काही कुँ जिद्द करे ……….चाहे तूं कछु कह ले ………पर गोरो रंग ही सबनपे भारी है ……और हमारी श्रीराधा रानी गोरी हैं ……..गौरांगी हैं ।
सूर्य के किरण ते प्रकाशित विश्व ही सबकुं प्रिय लगे है ……अँधेरी रात कौन कुँ अच्छी लगे ? हाँ ….तुम्हारे जैसे चोर उठाईगीर कुँ छोड़के ।
( ललिता हँसती हैं )
चमक तो सूर्य के प्रकाश में है ………….रात में कहा धरो है ।
याही ते मैं कहूँ कि हमारी रासेश्वरी श्रीजी गौर हैं सूर्य के समान आभा प्रभा है उनकी …..पर तुम्हारो कन्हैया तो कारो है ……….न आभा है ….न प्रभा ……….बस कारो ही कारो है ……..( ये कहते हुए ललिता सखी फिर खूब हँसी ) ।
मनसुख – अरी बाबरी ! कारो नही है मेरो सखा ……श्याम है श्याम !
( ये सुनकर फिर ठहाका लगाई ललिता सखी ने…….और बोली – अब लाईन में आरहे हो मनसुख लाल ! )
*क्रमशः …
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