श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! ज्ञान घास है – “गौचारण प्रसंग” !!
भाग 1
तात ! राजमार्ग वही है जो प्यारे के महल तक पहुँचा दे ……और प्रेम ही वह राजमार्ग है….हाँ….मैं अपनें अनुभव से ये सब कह रहा हूँ ।
इन्ही ग्वाल सखाओं सखियों नें ही मुझे मूंडा था …..इसी बृज कि भूमि से मुझे प्रेम कि दीक्षा मिली थी …….हाँ तात !, उद्धव विदुर जी को बता रहे हैं …….मैं तो ज्ञान कि ऊँचाई पर स्थित था ….देव गुरु बृहस्पति का परमशिष्य था ………ज्ञान विज्ञान में ही मेरा शोध था …..पर इस भूमि नें मुझे बताया कि प्रेम ही सबकुछ है ।
इस संसार सागर से पार लगानें वाला कुशल कर्णधार अगर कोई है तो वह है प्रेम ! तात ! प्रेम ही यहाँ नैया है और प्रेम ही खिवैया है ।
उद्धव कुछ देर के लिये मौन हो गए थे………फिर उन्होंने अपनें नेत्रों को बन्द कर लिया ………और मानसिक रूप से चले गए उसी स्थान पर जहाँ गौचारण करनें के लिये कन्हैया आये हैं ……उनके साथ उनके प्रिय ग्वाल सखा सब हैं ……….।
मध्य में कन्हैया में बैठे हैं ……………चारों ओर ग्वाल सखा घेरकर बैठे हुये हैं ……..मोरों कि पँक्ति अलग ही शोभायमान लग रही है ……कोयल कि कुहुक उस वातावरण को और संगीतमय बना रही है ।
पास में यमुना बह रही हैं ……उसके किनारे पर कमल के पुष्प खिले हुये है…….अनन्त कमल खिले हैं……..कमल नीले पीले हर रंग के हैं …….उनसे सुगन्ध बह रही है ।
कन्हैया अब थोडा लेट रहे हैं ………..अपनी कमर उन्होंने अच्छे से टिका ली है कदम्ब वृक्ष में …………चारों ओर सखा कुछ न कुछ बोल रहे हैं …………..मनसुख तो गुंजा कि माला बनाकर लाया है …….और बड़े प्रेम से कन्हैया को पहना रहा है …………..हाँ पहनाया नही है …पहना रहा है ……..धीरे धीरे पहना रहा है ।
“मनसुख ! जल्दी पहना” , मधुमंगल टोकता है ………क्यों कि ये कन्हैया के देखनें में विध्न डाल रहा है …………अरे ! इतनें परिश्रम से माला बनाई है …….अच्छे से पहनानें तो दे !
मनसुख नें पहना दी है अब माला ।
“अब अच्छा लग रहा है”……….मनसुख कहता है ।
हाँ तेरे ही माला से कन्हैया अच्छा लग रहा होगा ? मधुमंगल को चिढ हो रही है मनसुख से……….क्यों कि वो अभी भी हट नही रहा …..खड़ा है बीचों बीच ………अब तो हट जा भैया ! मधुमंगल को कन्हैया दीख नही रहे , दीख तो किसी को नही रहे अब ……क्यों कि बीचों बीच खड़ा हो गया है मनसुख ……..वो स्वयं ही निहारे जा रहा है कन्हैया को ।
कन्हैया ! कन्हैया !
सामनें से श्रीदामा आरहा है दौड़ता हुआ ।
लो ! अब ये आगये बरसानें के युवराज !
श्रीदामा को देखकर मनसुख हँसते हुए कहता है ………और स्वयं हट जाता है ।
*क्रमशः …


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