श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! ज्ञान घास है – “गौचारण प्रसंग” !!
भाग 2
कन्हैया ! कन्हैया !
सामनें से श्रीदामा आरहा है दौड़ता हुआ ।
लो ! अब ये आगये बरसानें के युवराज !
श्रीदामा को देखकर मनसुख हँसते हुए कहता है ………और स्वयं हट जाता है ।
कन्हैया ! कन्हैया !
श्रीदामा हाँफ रहा है ………और सीधे उसनें अपनें सखा कन्हैया का हाथ पकड़ लिया है ।
हाँ श्रीदामा ! क्या हुआ ? बता ! क्या बात है ?
सस्नेह कन्हैया नें अपनें सखा को पास में बिठाया और पूछा ।
ज्ञान किसे कहते हैं ? श्रीदामा नें बैठते ही पूछा था ।
पता है मैं अभी यहाँ आरहा था ना ! तो मैने देखा ……..एक कोई बाबा जी ….लम्बी दाढ़ी उसकी थी ………उसनें हमारे महल का द्वार खटखटाया ………..तो मैने ही खोला ।
फिर ? कन्हैया नें श्रीदामा से पूछा ।
लाली है ? श्रीराधा लाली ! मुझे लाली से काम है ……….
मुझे अजीब लग रहा था वो बाबा जी ……..मुझे दाढ़ी से चिढ है ……पता नही ये बाबा जी लोग दाढ़ी क्यों रखते हैं ! कन्हैया ! तुझे दाढ़ी अच्छी लगती है ? श्रीदामा नें कन्हैया से ही पूछा था ।
सिर “नही” में हिलाया कन्हैया नें ……..
हाँ मुझे भी पसन्द नही है …………
दढ़ियल बाबा जी ………श्रीदामा बोला ।
आगे तो बता , आगे क्या हुआ ?
कन्हैया नें पूछा ।
मैने उससे कहा ……लाली क्यों चाहिये ! मुझे बोलो …….मैं युवराज हूँ इस बरसानें का …………मनसुख नें हँसते हुये श्रीदामा कि पीठ ठोकी ….वाह ! बहुत सुन्दर कहा तेने श्रीदामा ! मनसुख के पीठ ठोकनें पर श्रीदामा और फूल गया …….और बतानें लगा ।
उद्धव बोले – तात ! कन्हैया कि आयु इस समय 6 वर्ष कि तो है ……और सखाओं कि भी इतनी ही है……..लगभग ।
आगे क्या हुआ ? कन्हैया नें आगे कि बात जाननी चाही ।
पर वो बाबा जी तो माना ही नही ……..जिद्द पकड़ के ही बैठ गया ……लाली को बुला दो …..उन्हीं के चरणों में विनती करूँगा ।
अब तुझे तो पता है मेरी बहन राधा कितनी भोली और संकोची है ………फिर भी वो आही गयी …..ललिता उसके साथ में थी ।
बहन राधा को देखते ही वो तो धरती में लोटनें लगा ………गिड़गिड़ानें लगा ………….”मुझे ज्ञान का दान दो”……….
ललिता हँसी और बोली ……ये किसकी छाँछ माँग रहा है ….बकरिया या भैंसिया कि ?
मैं उस समय समझ गया कि मेरी बहन को भी पता नही है “ज्ञान” किसे कहते हैं …..क्यों कि वो सिर झुकाये खड़ी रही …………
और ललिता को तो पता ही क्या होगा ?
वो ज्ञान को छाँछ समझ रही थी ।
विदुर जी ये प्रसंग सुनकर खूब हँसे ……………
उद्धव नें अब नेत्र खोले अपनें……और बोले …..तात ! अल्हादिनी से भला कोई ज्ञान माँगता है…..उनसे तो प्रेम या भक्ति, या फिर कन्हैया….
उसे ज्ञान चाहिए तो वो बरसानें क्यों गया ? खीज उठा था कन्हैया ।
श्रीदामा नें कहा ……वही तो …………..
अच्छा तुझे पता है कन्हैया ! “ज्ञान” किसे कहते हैं ?
मनसुख नें ये बात सबके बीच में कन्हैया से पूछी ।
हाँ ….तुझे पता है तो हम सबको बता …….हम भी जानें कि ज्ञान किसे कहते हैं ? सब सखा एक स्वर में बोले ।
तुम लोग इतना भी नही जानते !
आश्चर्य से सबको देखते हुए कन्हैया बोले …………..
अरे ! अपनें बाबा कि गोठ है ना ………..उसके पीछे जहाँ कूड़ा डाला जाता है ……….वहाँ एक झाड़ उग आया है ……देख लेना …….उसे ही “ज्ञान” कहते हैं……..कन्हैया नें बताया ।
ओह ! सब सखाओं नें तालियाँ बजाईं …….और कहा ……हमें तो पता ही नही था उस कूड़े कि जगह में उग आने वाले झाड़ को कहते हैं “ज्ञान”……..सब सखा अब सन्तुष्ट हो गए थे ….श्रीदामा सोचनें लगा था बरसानें के महल में आने के बाद भी वो बाबा जी कूड़े में उगे घास कि याचना कर रहा था !………अबुझ होते हैं ये बाबा लोग भी …..श्रीदामा मन ही मन कह रहा है ।
बुद्दू था वो बाबा जी ….बेकार में अपनी लाली को कष्ट दे रहा था ……..हमारे यहाँ आजाता ……हजारों ज्ञान उसकी झोली में तोड़ तोड़ कर हम सब डाल देते……..ये कहते हुए कोई सखा हँस रहा था तो कोई झुंझला रहा था ।
आज विदुर जी बहुत हँस रहे हैं …..अपना उत्तरीय मुख में रख कर हँस रहे हैं……उद्धव नें प्रसन्नता पूर्वक विदुर जी को देखा ….और बोले …तात ! आप विवेकवान व्यक्ति हैं क्या आप भी इस बात को झुठला सकते हैं की…..नन्द गोठ के कूड़े की ढ़ेर में उगा घास “ज्ञान” नही है ?
ये प्रेम कि भूमि है ……यहाँ ज्ञान को पूछता कौन है …….हाँ, इधर उधर उगा हुआ , घास ही तो ज्ञान है ……….प्रेम तो पुष्प है ….जिसमें से सुगन्ध निकलती है ।
अतएव प्रेम ही सर्वोपरि है ………उद्धव बोले ।
विदुर जी अभी भी हँसे जा रहे हैं ……..सच है उद्धव ! नन्द गोष्ठ के पीछे कूड़े कि ढ़ेर में उगा घास ही ज्ञान है …….जहाँ परमात्मा इतना सरल होकर सर्व साधारण के लिये उपलब्ध है ……….वहाँ ज्ञान अगर घास के रूप में उग गया हो …….तो आश्चर्य क्या ! 🙏
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