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July 18, 2025 8:42 am

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श्री सीताराम शरणम् मम, भाग 151 भाग 3 तथा अध्यात्म पथ प्रदर्शक : Niru Ashra –

[] Niru Ashra: 🙏🥰 श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग 1️⃣5️⃣1️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,
भाग 3

 *(माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)*

🌱🌻🌺🌹🌱🥰🌻🌺🌹🌾💐

“वैदेही की आत्मकथा” गतांक से आगे –

मैं वैदेही !

विभीषण के नेत्रों से अश्रु गिरनें लगे …….मैं धन्य हो गया नाथ !

आपको क्या दूँ मैं मित्र विभीषण ! माँगिये ना आप ?

मुझे तो आप ! चुप हो गए विभीषण ।

बोलिये ना ! आपको क्या चाहिये ? मेरे श्रीराम नें फिर पूछा ।

नाथ ! आपके जो कुलपूज्य हैं श्रीरंग नाथ भगवान …………..मुझे इनका विग्रह चाहिये ……………..

सब स्तब्ध होगये थे विभीषण की बातें सुनकर …….।

कोई कुलदेवता का विग्रह कैसे दे सकता है ?

पर मेरे श्रीराम अद्भुत हैं …………..उन्होंने कहा ……….आपकी लंका में सात्विक देवता का विग्रह नही हैं ना ! और कोई मन्दिर भी नही है !

नही है नाथ ! नही है ……एक भी “हरिमन्दिर” नही है ……..हाँ भैरव के मन्दिर हैं ……महाकाली के मन्दिर हैं …..भूत पिशाच के मन्दिर हैं …..पर सात्विक देव श्रीहरि का एक भी मन्दिर नही है ।

तो आप ले जाएँ श्रीरंगनाथ भगवान के इस विग्रह को ।

कितनी सहजता से दे दिया था मेरे श्रीराम नें श्रीरंगनाथ भगवान का विग्रह ।

नेत्रों से अश्रु झरनें लगे थे विभीषण के …….सरजू में स्नान किया …….फिर विग्रह को हाथ में लेकर बोले – मैं स्वयं गरुण बनूंगा नाथ ! और मैं इन्हें पीठ में बिठाकर , उड़कर , इन्हें लंका ले जाऊँगा ।

मेरे श्रीराम के चरणों में प्रणाम करके विभीषण श्रीरंगनाथ भगवान की मूर्ति लेकर उड़ चले थे ।

कावेरी नदी के पास ही रुके विभीषण……..सायंकाल का समय हो गया था…….पूजित विग्रह साक्षात् चिन्मय होते हैं ………सच्चिदानन्दघन ही होते हैं ………..नियम ये है कि उनकी जो ….जिस समय सेवा होती है उसी समय वो सेवा होनी चाहिये ……..इस बात को विभीषण अच्छे से समझते हैं ।

मेरे श्रीराम नें तो गरूण जी का आव्हान कर दूसरा विग्रह “श्री रंगनाथ भगवान का” वैकुण्ठ से मंगवा लिया था ।

पर इधर कावेरी नदी के पास …..रुके हैं विभीषण ….सायंकाल का समय हो गया है …….अब श्रीविग्रह को भोग लगाकर आरती करना आवश्यक है ………ऐसा विचार कर वहीं पवित्र स्थान पर श्रीरंग नाथ भगवान को विराजमान कर ……..स्नान करनें चले गए विभीषण ।

जब आये ……..तब भोग लगाया ……आरती की ………….

फिर उठानें लगे तब श्रीरंगनाथ का विग्रह उठा नही ।

पूरी ताकत लगा दी विभीषण नें …….पर वो विग्रह नही उठा ।

“मैं अपनें प्राण त्याग दूँगा”………..विभीषण बिलख उठे ।

नही विभीषण ! तुम भक्त हो….इसलिये तो मैं तुम्हारे साथ चला आया !

आहा ! कितनी मधुर आवाज थी……अमृत के समान ।

अब मुझे ले जानें की जिद्द मत करो विभीषण !

मुझे यही रहनें दो ……..सामनें लंका है …….मैं यहीं से तुम्हारी लंका को देखता रहूंगा ……और तुम नित्य आजाया करो ना यहाँ ।

सागर को पार करके ही तो आना है ना …….तुम्हारे लिये कौन सी बड़ी बात है ………।

बस इतनी ही आवाज आयी उस विग्रह से ……….

विभीषण नें साष्टांग प्रणाम किया ………………वहीं पर राक्षसों से एक मन्दिर बना दिया ……..फिर धीरे धीरे तो एक विशाल मन्दिर बन ही गया ………..श्रीरंग नाथ भगवान का ।

** पर यहाँ अयोध्या में एक विचित्र घटना घटी……..मैं उसे कल लिखूंगी……..पर एक बात कह दूँ……मेरे श्रीराम नें विभीषण के पुत्र “मत्त गयंद” को अयोध्या का कोतवाल बनाया…..तो मैने भी विभीषण की पुत्री त्रिजटा को अपनें जनकपुर का कोतवाल बनाया ।

आपको पता है ना ! तीर्थ में कोतवाल के दर्शन किये बगैर तीर्थ का पूरा फल नही मिलता ।

( साधकों ! ये कथा आपनें सुनी होगी ….काशी में गो. श्रीतुलसीदास को एक रोग हो गया था ………कई दिनों तक रहा ….औषधि से भी नही गया ……तब किसी नें उन्हें कहा था काशी के कोतवाल “भैरव” का दर्शन किया ? तब उन्होंने दर्शन किया ……..और रोग मुक्त हुए थे …..ये सत्य घटना है ……..हर तीर्थ के अपनें कोतवाल होते हैं …….और तीर्थयात्री को उनके दर्शन करनें ही चाहिए……….नही कर सकें तो अपनी साधना , जप, तप, या दान का कुछ हिस्सा संकल्प करके उनको दे देना चाहिये । हमारे वृन्दावन के कोतवाल हैं गोपेश्वर महादेव )

शेष चरित्र कल ……!!!!

🌹जय श्री राम 🌹
[] Niru Ashra: 🌼🌸🌻🌺🌼🍁🌼🌸🌻🌺🌼

        *💫अध्यात्म पथ प्रदर्शक💫*

                       *भाग - ४१*

               *🤝 १२. व्यवहार 🤝*

   _*सुख-शान्ति का एकमात्र उपाय - धर्म*_ 

   आज जो दुःख के बादल हमारे ऊपर मँडरा रहे हैं, उनको विश्वयुद्ध दूर नहीं कर सकता। ऐटम बम, हाइड्रोजन बम, कोल्लाट बम अथवा इनसे भी भयंकर शस्त्र उनको दूर नहीं कर सकते। अनेकों प्रकार के कारखानों की स्थापना से दुःख दूर नहीं होता। संतति-नियमन के साधनों द्वारा भावी प्रजा का विनाश करने से भी दुःख दूर नहीं होगा। विपुल धनराशि तथा पुष्कल भोग सामग्री भी दुःख के बादलों को छिन्न-भिन्न नहीं कर सकेगी। चन्द्र, मंगल या शुक्रतक पहुँचने से भी दु:ख का अन्त न होगा। दुःख के बादलों को दूर करके सुख-शान्ति की स्थापना करने का एकमात्र उपाय है - धर्म । जबतक पुनः धर्म की संस्थापना नहीं होती, तबतक दूसरे किसी भी उपाय से इन दुःख के बादलों को दूर करके सुख-शान्ति नहीं प्राप्त की जा सकती।

   *हमने देखा कि धर्म की पुनः स्थापना किये बिना इस भयंकर दुःख से बचने का दूसरा कोई इलाज नहीं है। अधर्म और उसके तत्त्व-अनीति, दुराचार आदि बहुत जोर पकड़ेंगे और अपने से जब वे काबू में नहीं आयेंगे तब भगवान् अपने वचन के अनुसार अवतार लेकर धर्म की स्थापना करेंगे और इस प्रकार दुष्टों का संहार करके धर्म की संस्थापना करेंगे तथा स्वयं अविनाशी होनेके कारण अवतार का काम पूरा होनेपर अदृश्य हो जायँगे ।*

   यहाँ कुछ ज्ञानलवदुर्विदग्ध मानव प्रश्न करेंगे कि 'क्या भारतवर्ष ही ऐसा पापी है? और क्या यहीं बहुत अधिक पाप होता है कि जिसके निवारण करने के लिये भगवान्‌ को अवतार लेना पड़ता है? यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड आदि देशों में भगवान्‌ को क्यों नहीं अवतार लेना पड़ता? इससे सिद्ध होता है कि पापाचरण केवल भारतवर्ष में ही होता है।' इसके उत्तर में इतना ही कहना है कि भगवान् अवतार धारण करते हैं—धर्म की संस्थापना करने के लिये ही। भारत के सिवा दूसरे देशों में धर्म को स्थान नहीं होता; क्योंकि वहाँ मानव-जीवन के लिये कोई सुन्दर योजना नहीं है। जहाँ धर्म होता है, वहीं जीवन योजना के अनुसार चलता है। वह योजना है धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इस चतुर्विध पुरुषार्थ का सम्पादन करने की। इस योजना को पूरी करने के लिये दूसरे अनेक सिद्धान्त इसके साथ जुड़े हुए हैं। जैसे- (१) *कर्मफल का सिद्धान्त*, (२) *उससे उत्पन्न पुनर्जन्मका सिद्धान्त*, (३) *उससे निकली हुई चातुर्वर्ण्यव्यवस्था का सिद्धान्त*, (४) और *उसकी भूमिका में ब्रह्मचर्य आदि चार आश्रमों का सिद्धान्त*। इससे स्पष्ट हो गया कि उन देशों में धर्म को स्थान नहीं है, तब फिर धर्म का ह्रास कैसे होगा? और फिर उसकी पुनः संस्थापना के लिये भगवान्‌ को अवतार क्यों धारण करना पड़ेगा?

आहारनिद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम् ।
धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥

   आहार, निद्रा, भय और स्त्रीसंग - ये चार बातें पशुओं और मनुष्यों में समानरूप से होती हैं। मनुष्य में यदि कोई विशेषता है तो वह धर्म की है। अतएव जिस देश में अथवा जिस समाज में धर्म नहीं होता, उसको शास्त्र ‘पशु' कहते हैं । पशु के लिये तो ईश्वर ने एक ही नियम बनाया है कि जन्म लेना और प्रारब्ध के अनुसार सुख-दुःख भोगकर मर जाना। इन निकृष्ट योनियों में जीव की उन्नति के लिये कोई साधन नहीं होता, अतएव उनके लिये भगवान्‌ को अवतार नहीं लेना पड़ता। उनका जीवन तो भगवान् के बनाये हुए नियम के अनुसार चलता ही रहता है और इस कारण भारतवर्ष के सिवा दूसरी जगह कहीं भगवान्‌ को अवतार धारण करना नहीं पड़ता।
                *ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः*

   क्रमशः.......✍

  *🕉️ श्री राम जय राम जय जय राम 🕉️*
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