श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “वु टोटका वारी” – कन्हैया की नटखट झाँकी !!
वाकौ नाम कहा है पतो नहीं…….पर सब बृज में वाते “टोटका वारी” ही कहे हैं……बाल बच्चन के नजर टोटका उतारनौ, यामे सिद्ध है जे बूढी गोपी……या लिये याकौ नाम “टोटका वारी” ही पड़ गयो है ।
वैसे कहीं आवै जावै नही है …..पर आज सबेरे ही सबेरे पहुँच गयी नन्द भवन में…….याकुं कारी गैया कौ गोबर चहिये…….और वाके कछु बाल……टोटका करै तो आगयी गोबर और बाल लेवै कूँ ।
नैक ठहरो !
मैया बृजरानी नें उन्हें बिठायो फिर जल दैकें बृजरानी चली गयीं …….गोबर और कारी गैया के बाल लायवे कूँ गोष्ठ में ।
थोड़ी देर में आईँ बृजरानी……उनके हाथ में गोबर और कारी गैया के बाल है ।
पर जे कहा ?
“दारी !
कन्हैया नें मुँह फुलाए लियो हो …….और क्रोध में वा बुढ़िया कुँ देखकर कह रहे हैं ……..दारी !
हाँ जे गारी है ……..बृज की बड़ी प्रसिद्ध गारी है ……..आप कह सकते हो …….अश्लील गारी है जे तो ………हाँ पर जे गारी बृज में सब के मुँह में रहे है ……..”सारे” ” दारी” या “दारिके”……..अब गारी तो गारी है …….चाहे कुछ भी हो ……।
छोटा सो कन्हैया……सुबह सुबह उठते ही याकुं रोष आय गयो ……
बृजरानी नें देख्यो समझ नही पाईँ ………कहा भयो मेरे लाला कूँ ?
और आश्चर्य जे कि ………..वु टोटका वारी कन्हैया के चरनन में गिरी भई है …………..दुनिया कूँ आशिष देवै वारी …….अरे ! हाँ ……वा दिना कन्हैया कूँ भी तो लैं के गयीं हति बृजरानी ……..तब तो खूब आशीष दै रहीं ………पर आज कहा भयो !
आहा हा ! हे महादेव ! आप पधारे हो हमारे महलन में ……आओ ! मेरी दाहिनी और विराजमान है जाओ !
आहा हा ! हे भगवान विष्णु ! आज आप हूँ पधारे हो ……..महादेव के साथ ! आओ ! आप हूँ आसन ग्रहण करो !
ओहो ! गणपति गणेश ! पेट बडौ नाँय है गयो आपकौ ? लड्डुन कुँ खानौ कम करो …………पर आप आय गये हो तो आप हूँ आसन ग्रहण करो ……..बैठो !
अरे ! सप्त ऋषि ! आप सब एक साथ पधारे हो ……….आओ ! आप सबनकौ स्वागत है……..विराजमान है जाओ !
अब नींद में हैं कन्हैया ………..और नींद में ही बोले जा रहे हैं ।
बाहर बैठी है वु “टोटका वारी” ……..वाने सब सुन लियो है ……..”जे आवाज कहाँ ते आय रही है”………बस – वु तो महल में ही भीतर चली आयी ……..जब वानें देख्यो ……..आहा ! नीलमणी सोय रह्यो है ……..नेत्र बन्द हैं वाके ………..अद्भुत रूप माधुरी है ………लाल वर्ण के ओष्ठ हिल रहे हैं………आओ ! हे महादेव ! आओ हे भगवान विष्णु ! …………..
चकित ! वु टोटका वारी तो आश्चर्य में पड़ गयी ………..याके सामनें भगवान शंकर पधार रहे हैं ? और याकौ तेज तो देखो ? नायँ नायँ जे साधारण बालक नही है ……जे तो देवता है ………फिर विचार करे …..नहीं नहीं …..जे देवता भी नही ………महादेवता है ………भगवान है ………….
बस तुरन्त ही टोटका वारी नें लम्बी ढोग लगाई सोते भये कन्हैया के आगे……पर कोमल चरनन के स्पर्श करवे कौ लोभ त्याग न सकी ………छू लिये वाने कन्हैया के चरणारविन्द !
बस …….नींद खुल गयी कन्हैया की …………वु टोटका वारी के नेत्रन ते टप्प टप्प आँसू गिर रहे ……..वाने अपनें हाथ जोड़ लिए है …. ।
कन्हैया तुरन्त उठ के खड़े है गए …………रोष मुखमण्डल में स्पष्ट दिखाई दे रह्यो है ………नींद में विघ्न डाल लियो पाँव छू के या बुढ़िया नें ….।
बस – “दारी”…..अपनें मोती जैसे दाँतन ते वो गुलाबी अधर दवाय के ।
बृजरानी नें देख लियो और सब समझ भी लियो ………..।
कन्हैया अटपटो है ……याकुं ब्रह्मा भी नाँय समझ पामैं …..तो साधारण की बात ही कहा है !
तू गारी दे रह्यो है ?
बृजरानी कन्हैया के इस रूप पर तो मुग्ध हैं …..पर गारी देना ये तो अच्छे संस्कार नही है ।
तू या बुढ़िया मैया कुँ गारी दे रह्यो है ? बृजरानी नें फिर डाँट्यो ।
हाँ …..दई गारी ! ढिठाई से बोले कन्हैया ………” जे बुढ़िया मेरे सामनें सिर चौं पटक रही है ? मैं कोई पत्थर कौ देवता हूँ ?
मोय देवता कोई बनावै ना तो मैया ! मोय रिस आवै ……
मैं देवता नही ……मैं तो तुम्हारौ हूँ ……अपनौ हूँ ……….मोहे देवता बनाए के कोई परायो करे तो मैया ! मोहे बहुत रिस आवै ।
कन्हैया बोल दिए…….पर वु टोटका वारी ……….कन्हैया की जे बात पर भी …..”जय हो – जय हो”…….करवे लगी ………
कन्हैया नें फिर ……..”दारी ! गारी कूँ फिर दोहराय दियो ।
मैया भागी कन्हैया के पीछे ……..गारी दे रह्यो है …..मानें नही हैं ।
कन्हैया भागे ……….पर भागते हुए…….उस बुढ़िया टोटका वारी को जीभ दिखाते हुए …..सिगट्टा दिखाये के……”दारी दारी दारी” ।
पर वु टोटका वारी गदगद् है आज ……….पूर्णब्रह्म की ये छबि उसनें जो देखी है ……..वो समझ गयी कि हम जैसे सामान्य लोगों के बीच में प्रेम का सन्देश लेकर , वो पूर्णब्रह्म उतरा है ।
आहा ! विदुर जी के हृदय में ये झाँकी प्रकट हो गयी थी ………….
“दारी” – ये विदुर जी नें कहा ……और उद्धव और विदुर जी खूब हँसे ।🙏
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