श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कन्हैया की प्रतिज्ञा !!
भाग 1
आज अपनें दोनों नन्हे हाथन कूँ उठाय के खडो है गयो कन्हैया ।
“दाऊ भैया ! मैं या पृथ्वी ते राक्षसन कूँ खतम कर दूँगा”
लाल मुखमण्डल है गयो हो वा समय कन्हैया को ………नेत्रन में जल भर आये ……..वु छोटो सो, अत्यन्त कोमल देह काँपवे लग्यो ।
बहुत बुरे होमें जे राक्षस …….सच में दाऊ भैया !
कन्हैया कुँ इतनौ गम्भीर काहूँ नें आज तक देख्यो नही है……”.इतनी चिन्ता मेरे अनुज कन्हैया कुँ !”……अब दाऊ भैया भी गम्भीर है गए…..
कन्हैया ! कहा भयो ? बोल ! काहूँ कूँ मारनों है ? काहूँ नें मेरे लाला को कछु अहित कियो है का ? बता ! वात्सल्य ते भर गए दाऊ ………और वैसे भी दाऊ जे कैसे सहन कर सकैं कि उनके प्रानन ते प्यारो कन्हैया आज चिंतित है ? दाऊ के रहते चिंतित ?
बता कन्हैया ! बता कहा भयो ?
दाऊ पूछ रहे हैं अपनें अनुज ते ।
कल कन्हैया , गैया चराय के जब अपने गोष्ठ में लौटे, तब –
झुकी कमर, काँपतों भयो अंग, पके केश झुर्रीयन ते भरो भयो शरीर ….हाथ में लठिया लेके वु बुढ़िया आय गयी ही……….वा के नेत्रन ते अश्रु बह रहे ……..वु बार बार अश्रुन कूँ पोंछ रही ।
कहा भयो ? बृजराज बाबा नें आय के पूछ्यो ……।
हे बृजराज ! मैं तालवन मैं रहूँ हूँ ……….वहाँ ताल के बड़े सुन्दर सुन्दर वन हैं ………और आस पास सरोवर भी हैं ……वहाँ ताल के बड़े मीठे फल लगें हैं ……..मै फलन कूँ तोड़ के ……..आस पास की गुफान में …..सन्त महात्मा की सेवा करती ……..और अपनी फूस की झोपडी में शान्ति ते रहती …भजन करती । पर ……..वा बुढ़िया नें अब अपनें आँसू पोंछे ………हिलकियाँ शुरू है गयीं हीं वाकी ………।
कहा भयो ! मो कूँ सब बताओ ?…..और धैर्य ते बताओ मैया ।
बड़े प्रेम ते बृजराज नें उन बुढ़िया मैया ते पूछी ही ।
दो वर्ष ते एक राक्षस आय गयो है तालवन में …….गधा है ……..नहीं नहीं मैं गारी नाय दे रही वा राक्षस कूँ ………वु सच में गधा ही है ………
गधा ? बृजराज के कुछ समझ में नही आया …….क्यों कि गधा कभी फल नही खाता ………….हाँ ……..बृजराज ! हाँ …..आप सच सोच रहे हो …….गधा फल नही खाता …..न खानें देता है ।
क्रमशः …
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