श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कन्हैया की प्रतिज्ञा !!
भाग 2
दो वर्ष ते एक राक्षस आय गयो है तालवन में …….गधा है ……..नहीं नहीं मैं गारी नाय दे रही वा राक्षस कूँ ………वु सच में गधा ही है ………
गधा ? बृजराज के कुछ समझ में नही आया …….क्यों कि गधा कभी फल नही खाता ………….हाँ ……..बृजराज ! हाँ …..आप सच सोच रहे हो …….गधा फल नही खाता …..न खानें देता है ।
उसे मात्र नष्ट करनें में ही सुख मिलता है ……..हे बृजराज ! उसनें वनों के फलों में अपना आधिपत्य जमा लिया है …….बृजराज ! इतनौ ही नही ……..मेरी कुटिया उजाड़ दियो वानें…….सन्त ऋषिन की गुफान कूँ बन्द कर दियो …..बेचारे सन्त ऋषि मार दिए वाने, बुढ़िया के अश्रु अब ज्यादा बह रहे हैं ।
पर जे है कौन ? बृजराज नें सचिन्त हो पूछा ।
मैनें सुनी है ………..राजा कंस को राक्षस है जे ।
लम्बी साँस लई बृजराज नें कंस कौ नाम सुनके………..और अपनें सेवकन कूँ आज्ञा भी दे दियो ………….एक सुन्दर कुटिया या मैया की हमारे महलन के निकट बनाय दो ।
वु बुढ़िया तो अति प्रसन्न है गयी ….नंदमहलन के निकट वाकौ निवास बन गयो……..पर या घटना ते कन्हैया बड़े दुःखी है गये ।
दाऊ भैया ! वा बूढी मैया के मन में अब राक्षसन के प्रति कोई रोष नही है ……….पर मेरे मन में है ……….
सब ग्वाल सखा वहीं आगये अब ……. आँखिन के इशारे ते, दाऊ ते पूछ रहे हैं ………कहा भयो ?
कन्हैया कौ आज मन नही लग रह्यो है खेलवे में ……..उदास है गयो है कन्हैया ।
सब शान्त हैं आज ……न मनसुख कछु बोल रह्यो है ………न श्रीदामा …न मधुमंगल ………दाऊ भैया तो बस सोच रहे हैं ………..ये सोचेंगे क्या ! ये अब अपनें लाड़ले कन्हैया को देख रहे हैं ……..कैसे मैं इसे सहज बनाऊँ , हाँ ये सोच रहे हैं ।
थोड़ी देर में अपनें छोटे भाई ते सटके बैठ गए दाऊ भैया ………..फिर कन्हैया के अलकन में हाथ फेरते हुए बोले………”हम सब राक्षसन कूँ मार देंगे” सच ! कन्हैया ये सुनते ही प्रसन्नता से उछल पड़े थे ।
हाँ हाँ ………मैं तो जा लाठी ते खोपड़ी फाड़ दुंगो राक्षस की…….मनसुख आनन्द ते उछल के बोल्यो …………क्यों की कन्हैया खुश है गयो है …….और इन सब सखान कौ एक ही लक्ष्य है ……..”अपनौ कन्हैया खुश रहनौ चहिये – बाकी तौ भाड़ में जाय” ….
मैं एक मुक्का ते मार दुंगो राक्षस कूँ ………..अब सब कहवे लगे …….चौं की कन्हैया आज ऐसी बातन ते बड़े खुश है रहे हैं………….
“पर बेचारे ऋषि मुनि …..गुफान में बन्द करके मार दियो”……….कन्हैया अभी भी उस बात को स्मरण करके दुःखी हैं…………
मेरे साथ कुश्ती लड़के तो देखे वो राक्षस ! चटनी बनाय दुंगो ।
तोक सखा बोल रहा है ।
पर कन्हैया नें गम्भीर हो, अब उस तालवन की ओर देखा ……….
फिर बोले……दादा ! दूर जो दीख रह्यो है वही है ना तालवन ?
हाँ ……दाऊ नें कही ।
उस दिशा में कन्हैया देखते रहे थे ………….बहुत देर तक ।🙏
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