श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! नीलकमल के पुष्प और बृजराज की चिन्ता !!
भाग 2
लाल नेत्र हो उठे थे कन्हैया के …………..जब उन्होंने ये देखा कि उनके पिता बृजराज अपार चिन्ता के सागर में डूब गए हैं ।
कैसे ? कैसे आएंगे वो नीलकमल के पुष्प !
बृजपति कुछ नही बोल पा रहे…….क्या बोलते ।
दूत तो राजा कंस का सन्देश सुनाकर जा चुके थे ।
पर तभी आकाश की ओर देखा कन्हैया नें………पर ये क्या !
देवर्षि नारद ?
आकाश में खड़े होकर हाथ जोड़ रहे हैं देवर्षि कन्हैया को ।
अब मुस्कुराये कन्हैया …….क्यों की लीलाधारी तुरन्त सब समझ गए …….कि देवर्षि का ही सब किया धरा है ।
नारायण ! नारायण ! नारायण !
एकाएक देवर्षि उतरे थे उस दिन मथुरा में ।
राजा कंस नें स्वागत किया……..एकान्त में बैठ कर चरण धोये देवर्षि के……कब मारोगे कन्हैया को ?
देवर्षि नें ही राजा कंस के सिर में हाथ रखते हुए ये प्रश्न किया था ।
सारे उपाय निष्फल हो रहे हैं……….हे गुरुदेव ! मैने क्या नही किया …पूतना को भेजा पर मार दी गयी वो ………श्रीधर गया ……पर वो भी …….शकटासुर , कागासुर और तो और कल ही मैने सुना कि तालवन में रहनें वाला वो धेनुकासुर भी मारा गया ।
राजा कंस नें अपना दुःख सब सुनाया था देवर्षि को ।
मैं एक उपाय बताऊँ ?……….नयनों को नचाते हुए बोले थे देवर्षि ।
हाँ गुरुदेव ! अब बस आपका ही तो आसरा है ।
कंस नें हाथ जोड़कर कहा ।
श्रावण में रंगेश्वर महादेव की पूजा करो ………और उनके अभिषेक में नीलकमल के पुष्प अर्पित करो ………..देवर्षि बोलते चले गए ………एक करोड़ नीलकमल के पुष्प …………।
वो कहाँ मिलेंगें ? कंस अभी तक बात को समझा नही था ।
बृज में ….वृन्दावन में……यमुना में खिले हुए हैं नीलकमल के पुष्प…..
देवर्षि नें कहा …….पर कंस अभी भी समझा नही ।
यमुना में कहाँ हैं नीलकमल ? कंस स्वयं से पूछता है ।
नहीं हैं ………..पर वृन्दावन में यमुना का एक हृद है ………वहाँ कालिय नामक महाविषधर नाग रहता है …………..देवर्षि शान्त भाव से अब बोल रहे थे …………उसके विष का इतना प्रभाव है कि उस हृद के ऊपर से भी कोई पक्षी गुजर जाए तो वो विष उसे मार गिराता है ……..
कोई उस हृद का जल पी नही सकता ………….क्यों की विषैला है …..पीनें की बात छोड़ो उस हृद के जल को कोई छू नही सकता …….मर जाएगा जो छूयेगा भी तो ।
तो उसमें नीलकमल के पुष्प हैं ? कंस नें देवर्षि से पूछा ।
हाँ हैं …….क्यों की नीलकमल में विष का प्रभाव नही पड़ता …..
देवर्षि नें बताया ।
तो तुम मँगवाओ वृन्दावन से नीलकमल के पुष्प और एक करोड़ …..
बृजराज वहाँ के राजा हैं ….उनको पत्र लिखो …….और कहो कि तुम्हे एक करोड़ नीलकमल चाहियें ……….
कंस अब जाकर समझा.था …….तो खूब ठहाका लगाकर हँसा ।
और वो ला नही पाएंगे …….क्यों की वहाँ विष है ……..और नही ला पाएंगे नीलकमल तो मैं बृज में हिंसा का ताण्डव मचा दूँगा ………..कंस अपनें राक्षसी स्वभाव में आगया था ।
मैं अब जा रहा हूँ उपाय बता दिया है मैने….अब जो करना है तुम करो ।
इतना कहकर देवर्षि चले गए ।
तुरन्त कंस नें अपनें दूत बुलाये और पत्र देकर कर वृन्दावन में उन्हें भेज दिया था ।
कन्हैया को हाथ जोड़े हुए हैं अभी भी देवर्षि नारद जी ।
हे गोपाल ! हे बृजजनपाल ! यमुना की दशा अत्यन्त शोचनीय हो गयी है……कालिय नाग जब से आया है इस हृद में……तब से पशु पक्षी वृक्ष सब के लिये ये जल घातक बना हुआ है ……..हे बृज के राज दुलारे ! आप यमुना जल को शुद्ध करें ……….कालिय को हटायें यहाँ से …………मैने इसलिये ये सब किया है नाथ ! ये कहते हुए देवर्षि नतमस्तक हो रहे थे नभ से ही ।
कन्हैया चल पड़े थे अब अपनें महल की ओर ……….कन्हैया को अपनें बाबा का वो सचिन्त मुख मण्डल ही स्मरण में आरहा था ।
पर ये कालिय नाग है कौन ? कन्हैया एकाएक फिर गम्भीर हो उठे ।🙏


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