श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कालीदह में कूदे श्याम !!
भाग 2
कन्दुक ….गेंद……..है किसी के पास ? कन्हैया नें पूछा ।
मनसुख नें सिर ना में हिलाया …….मधुमंगल नें भी……..पर सुबल नें इशारे में कहा …….श्रीदामा भैया के पास है गेंद ।
श्रीदामा ! ओ श्रीदामा ! गेंद है ? कन्हैया नें पूछा ।
हाँ है तो सही ……..पर ………श्रीदामा गेंद होनें के बाद भी देता नही है ।
क्यों ! क्या हुआ ? गेंद है तो दे……हम अब खेलेंगे ……दे गेंद !
कन्हैया माँगते हैं गेंद ।
देखो खोना नही……ये बहुत कीमती है गेंद…….स्वर्ण खचित गेंद है……..ये देखो……..श्रीदामा नें गेंद निकाल के दिखाई …………
कन्हैया बोले ……..है तो खेलने के लिये ही ना ! फिर ?
श्रीदामा नें गेंद दे दी कन्हैया को……….बस …उसी समय कन्हैया नें गेंद हाथ में जैसे ही ली……..खेल शुरू हो गया ।
श्रीदामा को देते हैं …..फिर श्रीदामा मधुमंगल को ..मधुमंगल मनसुख को ….मनसुख सुबल को ….सुबल भद्र को……..इस तरह खेल चल रहा है ……..यमुना की रेती है …….धूप के कारण रेत चमक रही है ।
“मुझे दे अब गेंद”………….श्रीदामा के पास बहुत देर से गेंद जा नही रही है …..जानबूझ कर कन्हैया श्रीदामा को गेंद दे ही नही रहे ।
पर इस बार भी नही दी कन्हैया नें श्रीदामा को गेंद ……………
श्रीदामा कन्हैया के पास गया ……….पर कन्हैया नें गेंद मनसुख की तरफ फेंक दी ………..श्रीदामा चिल्लाया …..मेरी गेंद है…..अब मैं किसी को खेलने नही दूँगा ………….।
कन्हैया नें कहा ……तेरी गेंद है ? ले अब खेल तू अपनी गेंद से …….
अरे ! ये क्या किया !
………गेंद जान बूझकर कन्हैया नें उस कालीदह में फेंक दिया था ।
दौड़कर श्रीदामा नें कन्हैया की फेंट पकड़ ली ……..गेंद दे मेरी !
कन्हैया नें बड़ी लापरवाही से कहा…….कल दे दूँगा……….
ऐसे कैसे कल दे दूँगा ? अभी दे ….अभी ! तूनें गेंद फेंकी कैसे ?
फेंट कस के पकड़ रखी है श्रीदामा नें कन्हैया की ।
देख श्रीदामा ! दो गेंद की जगह चार ले ले …….पर कल दूँगा अब ……..क्यों की अब तो गेंद गयी तेरी कालीदह में ! कन्हैया समझा रहे हैं ………पर श्रीदामा भी क्यों मानें कन्हैया की बात ……जानबूझकर कालीदह में डाली है गेंद ।
देख उधर ! कन्हैया नें ध्यान बंटाया श्रीदामा का ……और अपनी फेंट छुड़ाकर भागे ……….श्रीदामा पीछे भगा ………मैं छोड़ूँगा नही तुझे …..तू कहाँ तक भागेगा ………..!
पर ये क्या ! कन्हैया तो कदम्ब वृक्ष पर चढ़ गया ।
सब सखा स्तब्ध होकर देखनें लगे थे ।
अपनी काँछनी और ऊपर की कन्हैया नें ……….चढ़े और ऊपर …..।
तुझे गेंद चाहिये ? बोल तुझे तेरी गेंद चाहिये श्रीदामा ?
कन्हैया कदम्ब की सबसे ऊँची डाली पर चढ़ गए थे …………..
नेत्रों से अश्रु गिरनें लगे श्रीदामा के ………………नही चाहिए गेंद ! तू आजा नीचे ! मनसुख चिल्लाया …………श्रीदामा को गेंद नही चाहिए तू आजा !
श्रीदामा नें जब नीचे देखा …..हृद में ……..खौल रहा था यमुना का जल कालीय नाग के विष के कारण ………….काँप गया श्रीदामा ………..ऊपर देखा उसनें उसका प्राणप्रिय सखा कदम्ब की चोटी पर चढ़ गया था ………..ओह ! ये अगर कूद गया तो ?
श्रीदामा नें अपनें आँसू पोंछे और जोर से चिल्लाया ………..गेंद नही चाहिये …….तू आजा ! तेरे लिये कल चार गेंद और ले आऊँगा ।
क्यों ! अब क्या हुआ ?
कन्हैया मुस्कुराते हुए कदम्ब के वृक्ष से चिल्लाये ।
श्रीदामा की ही नही …..समस्त सखाओं की हिलकियाँ शुरू हो गयीं …….तू आजा ! कन्हैया ! तू आजा !
मैं कूद रहा हूँ………कन्हैया जोर से बोले ।
नही……..ऐसा मत कर……हाथ जोड़ते हुए सब रोनें लगे……नही ! तू आजा ! हम अब तुझ से कभी रुठेंगे नही ….झगड़ेंगे नही ……..श्रीदामा के साथ साथ सब गिड़गिड़ा रहे थे ।
पर ये क्या किया कन्हैया नें ? कूद गया कालीदह में ।
खौलता हुआ जल कालीदह का ………उसमें ही कूदा था ।
सब ग्वाल सखाओं की साँसें रुक गयीं ………स्तब्ध हो गए सब ……..
क्या कन्हैया कूदा कालीदह में ? सबका हृदय चीत्कार कर उठा था ।
ग्वाल सखा सब मूर्छित हो गए थे वहीं पर ………………
*क्रमशः …


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