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July 6, 2025 11:24 pm

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श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा संस्थान दुनेठा दमण ने जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा दुनेठा मंदिर से गुंडीचा मंदिर अमर कॉम्प्लेक्स तक किया था यात्रा 27 जुन को शुरु हुई थी, 5 जुलाई तक गुंडीचा मंदिर मे पुजा अर्चना तथा भजन कीर्तन होते रहे यात्रा की शुरुआत से लेकर सभी भक्तजनों ने सहयोग दिया था संस्थान के मुख्या श्रीमति अंजलि नंदा के मार्गदर्शन से सम्पन्न हुआ

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! जब शोकाकुल हुए बृजवासी – “कालीदह प्रसंग” !!-भाग 4 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! जब शोकाकुल हुए बृजवासी – “कालीदह प्रसंग” !!-भाग 4 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! जब शोकाकुल हुए बृजवासी – “कालीदह प्रसंग” !!

भाग 4

वो अवश्य कालीय दह में ही गया है ……बृजरानी के अश्रु बह चले थे ।

दाऊ ! तू कहता था ना ……..सर्पों के बिल में अपना हाथ डालता है कन्हैया ……………..मैने उसे एक बार डाँटा भी था …….पर वो नही माना ……….ये सर्पों को गले में लटका लेना उसका खेल था ये ……पर उस नादान बालक को क्या पता कि कालीय नाग साधारण नही है ……………यशोदा मैया हिलकियों से रो रही हैं ।

देवता प्रमाद नही करते ………..वे शकुन और अपशकुन के माध्यम से मानव को अग्रिम सूचना देकर सावधान करते रहते हैं ……….बृजरानी ! तुमनें देखा ना ………कैसे अपशकुन हो रहे हैं……..उसी समय बृजपति वहीं आगये थे ……उन्होंने भी आते ही यही कहा……..चलो ! मुझे भी लग रहा है वो कालीदह में ही गया होगा ………क्यों की बलराम ! कल से ही वो अत्यन्त चिंतित था ……..”नीलकमल के पुष्प लानें की” राजा कंस का आदेश उसनें सुना था………वो अवश्य !

बृजपति के मुँह में अपना हाथ रख दिया यशोदा नें …….ऐसा मत कहिये ……मेरा लाला कालीदह में नही गया है ………वो ठीक है …उसे कुछ नही हुआ है ।

बलराम ! चलो ! कालीदह में जाकर देखें …….की उधर ही तो नही गया कन्हैया ? बृजपति जब चलनें लगे तो मैया यशोदा रोहिणी अन्य सभी गोपी और गोप, चल दिए थे कालीदह की ओर ।


खोजते खोजते कालीदह में ही सब पहुँच गए थे……..

दूर देखा ……बृजरानी का ह्रदय काँप रहा है……..दूर से देखा पीताम्बरी पहनें कुछ बालक धरती पर अचेत पड़े हैं ……….

ये तो मनसुख मधुमंगल श्रीदामा ? बृजपति उन्हें धरती में पड़ा देखकर दौड़ पड़े थे…….बृजराज के पीछे बलराम यशोदा रोहिणी सब गोपी ग्वाल भागे………..

मूर्छित पड़े हैं ये बालक ……..क्यों ? इन्हें क्या हुआ ? बृजरानी सबसे पूछ रही हैं……..मेरा कन्हैया कहाँ है ? सामनें देखा कदम्ब वृक्ष पर ………..कन्हैया की पीताम्बरी अटकी हुयी है……..उसके नीचे हृद है ……….वो खौल रहा है …….मेरा कन्हैया ! चीत्कार कर उठीं मैया यशोदा ।

मैया की चीत्कार सुनकर मनसुख उठा …………वो उठते ही रोनें लगा था ………….कहाँ है कन्हैया ? मनसुख ! बता कहाँ है मेरा कन्हैया ?

मैया यशोदा काँप रही हैं पूछते हुए …………..

” वो ! उस कदम्ब में चढ़ गया था ….और कूद गया कालीदह में ।”

मनसुख नें रोते हुए कहा ।

क्या ! कूद गया इस विषैले हृद में ? मैया यशोदा दौड़ पड़ी उसी कालीदह में ………..मेरा बेटा ! मेरा लाला ! वो यही गिरा है ………

खौल रहा है उस “हृद” का जल …………..मैया यशोदा कूद पड़तीं …..कूदनें ही जा रही थीं ……….पीछे से बलराम नें आकर पकड़ लिया …………विलाप करते हुए बृजराज नन्द जी भी कूदनें जा रहे थे उन्हें भी बलभद्र नें पकड़ कर बिठाया ।

क्यों हमें पकड़ रहा है बलराम ! क्यों ? मेरा लाला कूदा है इस कालीदह में …………अब हमें भी मरनें दे ………मैया फिर चीत्कार करते हुये दौड़ीं …….पर बलराम नें फिर सम्भाला ।

….मेरा लाला ! कूद गया इस कालीदह में !…विष से भरा हृद है ये तो .ओह ! कितना कष्ट हो रहा होगा उसे …..और मैं अभी तक ज़िंदा हूँ । मैया बाबा सब रोये जा रहे हैं ।

पर बेचारी भोली वात्सल्य की मारी मैया यशोदा ।

उसे कुछ नही हुआ …….उसे कुछ हो नही सकता !

दिव्य गम्भीर वाणी गूँजी बलभद्र की ।

एक अद्भुत तेज मुख मण्डल में व्याप्त हो गया था बलराम के ।

हँसे बलराम……….शेष अनन्त प्रभु हैं ये …………इसलिये उसी आवेश में हँसे और बोले – मैं कहता हूँ उसे कुछ नही होगा ……….वो ? सहस्र फण वाले शेषनाग में शयन करनें वाला है ………….ये कालिय क्या बिगाड़ेगा उसका………मेरी बात पर विश्वास कीजिये माँ ! और आप सबलोग ……..मेरा कन्हैया आएगा…….हम यहीं बैठे हैं वो अवश्य आएगा ।

बलभद्र के उस रूप को देखकर सब शान्त हो गए थे………बलराम जी अब शान्त भाव से बैठे हैं कालीदह में ………अन्य समस्त सखा भी जाग गए जो मूर्छित हो गए थे ।

तभी ………दाऊ ! देखो ! लाल लाल रंग हो रहा है यमुना का …..!

मनसुख नें कहा ।

………बृजरानी तो मूर्छित ही हो गयीं थीं ।

पर बलभद्र मुस्कुरा रहे थे शान्त भाव से ………

*क्रमशः ….

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