श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! दावानल बिहारी !!
भाग 8
श्रावण मास में बुलवाया है मैने इस कालीय नाग को राधे ! इसी का झूला डालेंगे कदम्ब की डार पे…….सबके सामनें ही अपनी श्रीजी को हृदय से लगा लिया था उस नट नागर नें ।
रात हो रही है……..अब कहाँ जायेगें ! क्यों न आज की रात्रि यहीं बिताई जाए ? बृजराज नन्द जी नें समस्त गोपी गोपों से ये सलाह ली ।
कृष्ण से मतलब है इन सबको …………..इनके साथ कन्हैया है तो सब आनन्द ही आनन्द है ………..
मनसुख बोला – और आनन्द आवेगौ ! कन्हैया के साथ रात भर रहेंगे …….वाह ! इस तरह सब गोप और गोपी आनन्दित हो उठे थे ।
वहीं रोटी बनाई गोपिन नें ……………मैया यशोदा नें अपनें लाला और बरसानें की लाली को अपनें हाथों से माखन और रोटी खिलाई …….दाऊ बड़े प्रसन्न हैं ……..वो तो अपनें अनुज को देखकर ही गदगद् हैं आज ………….सबनें माखन रोटी खाई ………..माखन कुछ विप्र आगये थे उन्होंने ही दिया था ………..नन्द जी नें उस सब विप्रों को अपनें गले का हीरों का हार दक्षिणा स्वरूप दिया …….खूब आशीर्वाद देते हुये वो सब चले गए थे ।
रात्रि हो गयी थी ……….भोजन सबनें कर ही लिया था ……..कोमल पत्तों का विस्तर लगा दिया मैया नें ………..बाँसों का झुरमुट था यहाँ ….ऋतू ग्रीष्म थी …….गर्मी अच्छी पड़ रही थी ।
कन्हाई सो गए ……..पास में ही श्रीराधा भी सो गयीं ……
इस तरह सब निश्चिन्त होकर सो गए थे उस रात्रि को ।
पर –
लाला ! बचा ! कन्हैया बचा ! कन्हैया !
सब ग्वाल बाल एकाएक अर्धरात्रि को पुकारनें लगे थे ।
क्या हुआ ? क्यों चिल्ला रहे हो ? कन्हैया कच्ची नींद में उठ गए ……..आँखों को मलते हुए अपनें ग्वाल सखाओं से पूछनें लगे थे ।
देख ! सामनें देख लाला ! नन्द बाबा नें भी कहा ।
ओह ! गर्मी के कारण बाँस सूखे हुए हैं……..फिर उसपर हवा चली …..तो बाँस में रगड़ हुआ ……..चिंगारी प्रकट हुयी उससे ही इस वन में आग लग गयी थी……अब तो चारों ओर हाहाकार मच गया था ।
कन्हैया जैसे ही दौड़े उस आग के पास …………..उसी समय श्रीराधिका नें कन्हैया का हाथ पकड़ा और अपनी और खींचा ।
प्यारे ! ये दावानल है ………..ऐसे पी नही पाओगे इसे ……….भयानक आग है ये …………….अपनें से अत्यन्त निकट लाकर कन्हैया से कह रही थीं राधिका ।
फिर ? कैसे ? बस इतना ही बोल पाये थे कन्हैया ।
मेरे अधरों का पान करो …………ये अमृत है अधरामृत ! तभी तुम इस दावानल का पान कर सकोगे ………..नही तो झुलस जाओगे ….इतना कहकर राधिका नें अपनी ओर खींचा श्याम सुन्दर को ।
अग्नि के कारण धुँआ बहुत था वन में …..इसलिये कोई देख न सका …………इस दोनों सनातन प्रेमियों के अधर मिले ……….
शक्ति मिली शक्तिमान को………..
श्याम सुन्दर गए उस आग में ……..दावानल में ……….और अपनें स्वांस को जब खींचा अपनें भीतर ……….सारी की सारी अग्नि कन्हैया नें पी ली थी ……………..पी रहे थे ………..।
बिहार कर रहे थे दावानल के साथ ……….कन्हैया आज ………..
अग्नि शान्त हुयी ……अग्नि बूझ गयी………तभी वर्षा प्रारम्भ हो गया ।
झूम उठे थे सब ग्वाल बाल ……………
पर –
श्रीराधा रानी दूर खड़ी होकर अपनें प्यारे नन्दनन्दन को देख रही थीं ।
*क्रमशः …


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