श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! सावन कौ झूला !!
भाग 2
सखियाँ गयीं………सच में एक सखी रोय रही ही ।
सब सखियाँ बाकुं लेकर आय गयीं श्रीजी के पास ।
नख ते सिख तक श्रीजी नें वा सखी कूँ देख्यो ……….बड़ी सुन्दर सखी है ……साँवरी है……..कटीले नयन हैं……..पतली कमर है ……..अद्भुत रूप सौन्दर्य की धनी है ये ………श्रीजी भी देखती रहीं ।
काहे कूँ रोवे है सखी ! श्रीजी नें वा सखी ते बड़े प्रेम ते पूछ्यो ।
“सावन आय गयो है …….पर मोकूँ झूला झुलाये वे वारो कोई नही है”,
बू साँवरी सखी फिर रोयवे लगी……….
अद्भुत करुणा ते भरी भई हैं हमारी लाडिली …….सजल नेत्र है गए इनके ………….कोई बात नही है …..मैं तो हूँ ना ! आओ ! मेरे ढिंग बैठो …… झूला में बैठो ………हम दोनों झूला झूलेंगे !
श्रीजी नें साँवरी सखी कौ हाथ पकड्यो और अपनें पास बैठावें लगीं ।
आप तो राजदुलारी हो …..और मैं कहाँ गोबर थापवे वारी ………नायँ नायँ आपके संग बैठनौं अपराध है………इतनौ कह के साँवरी सखी तो गीली धरती में ही बैठ गयी ।
पर श्रीजी की करुणा अनुपम है ……..हाथ पकड़ के अपनें पास ही बैठा लियो ……….बैठ गयी साँवरी सखी हू ।
अब तो सखियाँ झोटा दे रहीं हैं, साँवरी सखी प्रसन्न है …..हँस रही है …….पर कछु देर में ही साँवरी सखी होश खो बैठी ………श्रीजी के श्रीअंग कौ जैसे ही स्पर्श भयौ ………बू तो झूला में, श्रीजी के अंग में ही गिर पड़ी ……….वाके नेत्रन ते प्रेमाश्रु बहनें शुरू है गए है …….मुस्कुरा भी रही है ……….पर होश खो बैठी है वो सखी ।
तभी –
“अरे ! लाडिली ! जे साँवरी सखी नहीं है”…….सखियन नें झूला रोक दियो………और सब हँसवे लगीं, ताली बजाय के हँस रही हैं ।
ये सखी नही है ? श्रीजी के कन्धे में साँवरी सखी कौ सिर है ……वाही कूँ देख के श्रीजी चौंक के पूछ रही ।
सखी नहीं, जे तो सखा है……..सखियाँ हँस के लोट पोट हो रही हैं ।
क्या ?
श्रीराधा रानी फिर चौंक गयीं………..हाँ ……
…..ये देखो !
झूला, झुला रही थीं सखियाँ ……पवन बह रहे थे शीतल शीतल ।
हल्की हल्की बुँदे भी पड़ रही थीं ।
तभी ………..साँवरी सखी के लहँगा ते कछु गिर्यो हो …….
सखियन नें जब देखो ……….तो हँसवे लगीं …………बाँसुरी गिरी ही लहँगा ते……..अब तो सब सखियाँ लोट पोट हैं गयीं ।
श्री जी कूँ बतायौ …..लाडिली ! कोई सखी नहीं जे तौ कन्हैया हैं ।
क्यों बनें तुम ऐसे सखी ..प्यारे ! श्रीराधा रानी भाव में डूबकर पूछ रही हैं………..प्यारी ! मन नही लगे तुम्हारे बिना …………अब सखा भेष ते आउंगो तो मेरो प्रवेश नही हैं यहाँ ……जा लिये मैं सखी भेष में आयो ……………सजन नेत्रन ते कन्हैया बोले हे……..।
बस अपनें प्यारे के मुख ते जे सब सुनकर श्रीजी उठके खड़ी हैं गयीं और अपनें प्राण धन जीवन कन्हाई को अपनें ह्रदय से लगाय लियो ।
उसी समय काले काले बदरा घिर आये………मोर नाचवे लगे …..मोर बोलवे लगे ……..गहवर वन गूँज उठ्यो हो ।
“देखो सखी श्याम घटा घिर आई”


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