श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “वेणु धर्म” के आचार्य “श्याम सुन्दर” !!
भाग 1
दो ही तो धर्म हैं इस जगत में…….वेणु धर्म और वेद धर्म ………तात ! वेद धर्म ज्ञान का मार्ग है ….पर वेणु धर्म तो प्रेम का अद्भुत सुपथ है ।
वेद में सबका अधिकार कहाँ ? पर वेणु में तो ब्राह्मण या शुद्र की छोडो वन, पशु पक्षी नदी पर्वत सबका अधिकार है ……..इसमें जड़ भी चेतन हो उठते हैं……ये प्रेम है …….यहाँ वेणु बजती है …..तो यमुना उछलती हुयी नन्दनन्दन के चरणों के पास पहुँच जाती है…..उद्धव कहते हैं – तात ! बादल बरस जाते हैं इस वेणु को सुनते ही ……मोर नृत्य करनें लग जाते हैं……..हिरणियाँ बाबरी हो जाती हैं ……गौएँ तृण चरना छोड़ कर उन्मत्त सी श्याम सुन्दर को ही निहारती रहती हैं ……बछड़ों नें दूध पीना छोड़ दिया कानों को खड़ा करके वे प्रेम के स्वर को सुन रही होती हैं ।
हे तात ! इस वेणु धर्म को प्रकट श्याम सुन्दर नें ही किया है ….समस्त जगत को सरलतम मार्ग दिखाया है…..प्रेम का ! यही है ……वेणु धर्म ।
प्रेम को आप कुछ भी कह सकते हैं….ध्यान धारणा समाधि ……सब प्रेम ही है ……..देहातीत हो उठता है प्रेमी ………..वो क्या बोल रहा है उसे भी पता नही होता …….प्रेम ही उससे कुछ भी बुलवाता है ……….वो अपनें में है कहाँ ! वो प्रेम के नचाये नाच रहा है …….अद्भुत ।
श्रीकीर्ति किशोरी जब वृन्दावन में बाँसुरी सुनती हैं …..तब उन्मत्त सी होकर वो भावातिरेक में बोलनें लगती हैं –
“इस बाँसुरी नें तो पता नही क्या जादू कर रखा है……अरी ! ये तो ब्रह्मा से भी आगे निकल रही है……ब्रह्मा अपनी सृष्टि से जैसे सबको मोहित करके रखते हैं …..ऐसे ही ये है….अपितु ब्रह्मा से भी बढ़कर ।
पर प्रिया जू ! ब्रह्मा की उपमा इस बाँसुरी से ?
ललिता सखी पूछती है ।
ब्रह्मा के तो चार मुख हैं ……..और चारों से वे उपदेश देते हैं वेद धर्म का ।
श्रीजी ये सुनकर हँसती हैं …….उन्मुक्त भाव से हँसती हैं …….
अरी मेरी सखी ललिते ! ब्रह्मा के तो चार ही मुख हैं …..इसके तो आठ मुख हैं…….ब्रह्मा तो चार मुख से ही वेदधर्म का उपदेश करते हैं …….ये तो आठों मुख से प्रेम धर्म का उपदेश ही नही …..जबरदस्ती पालन भी करवाती है …….और करना पड़ता है ………..न चाहनें के बाद भी .।
क्रमशः ……


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