श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “वेणु धर्म” के आचार्य “श्याम सुन्दर” !!
भाग 2
श्रीजी ये सुनकर हँसती हैं …….उन्मुक्त भाव से हँसती हैं …….
अरी मेरी सखी ललिते ! ब्रह्मा के तो चार ही मुख हैं …..इसके तो आठ मुख हैं…….ब्रह्मा तो चार मुख से ही वेदधर्म का उपदेश करते हैं …….ये तो आठों मुख से प्रेम धर्म का उपदेश ही नही …..जबरदस्ती पालन भी करवाती है …….और करना पड़ता है ………..न चाहनें के बाद भी .।
हँसती हैं श्रीराधारानी ये कहते हुए ।
पर – ब्रह्मा नें तो कमल पर बैठ सृष्टि की है ….इस बाँसुरी नें कौन सी सृष्टि की ? ललिता पूछती हैं ।
ब्रह्मा कमल पर बैठते हैं ……तो ये भी श्याम सुन्दर के कर कमलों पर विराजमान रहती है….और श्याम सुन्दर के मुखकमल को तकिया भी तो बनाती है …फिर बड़े आनन्द से प्रेम की सृष्टि ये निरन्तर करती है ।
ब्रह्मा तो हँस पर बैठते हैं …….ललिता बोलीं ।
अरी ! ब्रह्मा तो बेचारे एक ही हँस पर बैठते हैं……पर ये बाँसुरी तो हम जैसे हजारों लाखों कोटि कोटि प्रेमियों के मानस हँस पर विराजती है …….श्रीजी नें भाव में उत्तर दिया ।
ब्रह्मा वेद पढ़ते हैं……..तो ये बांसुरी प्रेम पढ़ती है और हम सबको पढ़ाती है ……………
पर इसे बंशी क्यों कहते हैं…………क्यों की ये फंसाती है ।
जैसे मछली को फंसाया जाता है …..बंशी ही डालकर……..ऐसे ही हम सबको इसनें फंसा लिया है ।
श्रीराधारानी मुस्कुरा मुस्कुरा के ये सब कह रही हैं ।
ये पुरुषों को भी फंसाती है या हम अबला स्त्रियों को ही ?
श्रीराधा जी कहती हैं…….नही, फंसाती तो ये सबको है ………पर हम स्त्रियाँ कोमल हृदय की होती हैं ना ……इसलिये हम ही पहले फंस जाती हैं ………ये तो हम अबलाओं से सबकुछ छीन लेती है ………हमारा कुल हमारी लज्जा ……………हाय ! सखी ! हमसे अच्छी तो ये वन की हिरणियाँ हैं …..मोरनी हैं …….कोयली है ……….आहा ! दिन भर ये श्याम सुन्दर को निहारती रहती हैं ………….दिन भर !
हाय ! हमारे तो भाग्य ही नही है …………हमसे ज्यादा भाग्यशाली तो ये सब हैं …..वन चरी ।…….श्रीराधारानी – हा, वेणुधर , हा मुरलीधर, हा श्याम सुन्दर – कहते हुए भाव में डूब जाती हैं ।
….इसे आप ध्यान , धारणा समाधि जो चाहे कह लो तात !
उद्धव बोले ……….और मौन हो गए थे ।


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