श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! धन्य हैं ये गिरिराज पर्वत – श्रीराधारानी नें कहा !!
भाग 1
चलो स्वामिनी जू ! श्याम सुन्दर तो आगे अपनें गोष्ठ पर पहुँचनें वाले हैं ।
ललिता सखी नें श्रीराधा जू जी से कहा ।
तात ! मुर्छित हो जाती हैं सब सखियाँ भावातिरेक में ……..पर उन्हें सब भान रहता है ………श्याम सुन्दर का नाम लेते ही उनके कर्णरन्ध्र सक्रिय हो जाते हैं ………।
ओह ! श्याम सुन्दर आगे चले गए ?
श्रीराधा जी उठीं और गोष्ठ की ओर चल दीं ……उनके पीछे सब सखियाँ और चन्द्रावली की सखियाँ भी………उद्धव नें कहा ।
तभी श्रीजी को गिरिराज पर्वत दिखाई दिए …………उनमें से झर रहे झरनें …………हरियाली और पुष्पों से पटा पड़ा है गिरिराज !
गोष्ठ में प्रवेश करते हुए एक बार और बांसुरी बजाते है श्याम सुन्दर ।
ओह !
श्रीराधा जी आनन्दित हो उठती हैं …….गिरिराज के झरनें और तेजी से बहनें लगते हैं ………तृण खड़े हो जाते हैं ………..
ये गिरिराज सच में समस्त विश्व के प्रेमियों में सर्वश्रेष्ठ है ……….देखो तो ………..बाँसुरी सुनते ही इसे रोमांच हो रहा है , उसके रोम कैसे खड़े हो रहे हैं ….ये तृण वृक्ष सब इसके रोम ही तो हैं ……..झरनें बह रहे हैं ………….ये इसके आँसू हैं ……….प्रेम के आँसू सखी ! ये कहते हुए श्रीराधिका जू हँसती हैं …..।
इसके ऊपर श्याम सुन्दर चढ़ते हैं ……..ये कहते हुए श्रीराधारानी गिरिराज को प्रणाम करती हैं ।
*क्रमशः….


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